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मेरे प्रिय ब्लॉगर साथियों
फादर्स डे पर सभी पिता का हार्दिक अभिनन्दन
टी वी पर एक इन्वेर्टर का विज्ञापन देखा जिसमें बड़े उत्साह से पिता पुत्री साथ बैठ कर टी वी पर प्रसारित मैच देख रहे हैं पर बिजली जाते ही पुत्री बेहद अनुशासन हीनता से पिता को कहती है ,’क्या पापा यह बैटरी तो दो घंटे भी नहीं चली .” इस विज्ञापन में पुत्री का पिता से बात करने का सलीका बेहद खलता है .आज इंटरनेट सोशल साइट्स पर कितने भी सुन्दर सन्देश भेजे जा रहे हों पर यह सच है कि समाज में रिश्तों की गरिमा कुछ ना कुछ धूमिल अवश्य पड़ने लगी है . राजा जनक और सीता पंडित नेहरू और इंदिरा गांधी जैसे रिश्ते हमारी धरोहर हैं फिर भी अधिकांशतः पिता और संतान का रिश्ता सदियों से खारा ही रहा है .वृद्धावस्था तो और भी कष्टदाई हो गई है.
मित्रों ,अनुपम मंच पर पिता से जुडी यादों में से एक बहुत महत्वपूर्ण बात साझा करना चाहती हूँ.हर पिता की एक विशेष सलाह होती है जो संतान विशेष के लिए उनकी सिग्नेचर एडवाइस होती है .मेरे पिता अक्सर कहा करते थे ,” अपने अकेलेपन को कभी भी अपनी कमजोरी नहीं बनाना बल्कि उससे सदा समृद्ध होते रहना .” यह एक ऐसी सलाह थी जिसने मुझे हर उन पलों में जब मैं अकेली हुई …मज़बूत बनाया स्वस्थ प्रसन्न रखा और कुछ नया सीखने की प्रेरणा दी .पापा यही चाहते थे .आज मैं इसे अपनी पुत्री से साझा करती हूँ . हालांकि उसके पिता की सिग्नेचर एडवाइस उसके लिए बहुत करियर केंद्रित है “तुम्हारा लक्ष्य मछली की आँख की तरह स्पष्ट होना चाहिए .यह सलाह उसने बहुत शिद्दत से लेकर कर अपने करियर को चुना है .” पिता संतान से किस कदर जुड़ा होता है यह मैंने अपनी पुत्री और उसके पिता के बीच देखा .एक बार जब पिता ने उसे गोद में लिया उसे सिगरेट की बदबू आई और उसने रोते हुए कहा ,”मुझे आपकी गोद में नहीं आना मुंह से बदबू आ रही है .” पिता ने उस दिन के बाद कभी सिगरेट का कश नहीं लिया .
सागर तट पर बैठे-बैठे
खींचती रही प्रश्न लकीरें
कुछ सीधे कुछ आड़े-तिरछे
सहसा प्रश्न बिजली से कौंधे
‘क्यों कहलाते सागर खारे?
उम्र ने अपने अनुभव निचोड़े
घटाए कुछ और कुछ जोड़े
लम्बी राहें तय करते -करते
नदियां पीती अश्क़ सारे
और मिलते ही सागर से
टूट जाते बाँध सब्र के
छलक जाते किस्से सारे
संघर्षाभिव्यक्ति के सैलाब से
हो जाते हैं सागर खारे
कुछ अपने ,कुछ नदियों के
बहते खारे अंसुअन समेटे
कहलाते हैं सागर खारे .
अगर माँ स्नेह की सरिता है तो पिता प्यार का सागर है .माँ के स्नेह में मिठास दिखती है क्योंकि वह बिना शब्दों के भी मुखर होता है कभी बोलती आँखों से तो कभी प्यार भरे स्पर्श से तो कभी स्नेह भरे चुम्बन और आलिंगन से …..पर पिता का प्यार अनकहा रह जाता है वह कभी मुखर नहीं हो पाता है.उसका प्यार गहराई से अन्तः स्थल में दबा होता जो दिखाई भले ना दे पर यह प्यार की इसी गहराई की सतह से उठती भाप होती है जो बादल बन कर स्नेह बरसाती है और नदी में समा जाती है .माँ का प्यार शहद सा मीठा है तो पिता का चुटकी भर नमक सा होते हुए भी अत्यंत ज़रूरी होता है इसके बिना जीवन आहार के स्वाद की कल्पना ही बेमानी है. दरअसल पिता भी स्त्रैण पक्ष ममता स्नेह प्यार से समृद्धं रहता है पर एक तो बचपन से ही पितृसत्तात्मक समाज पुरुषों के इन भावों को सुप्तावस्था में पहुंचा देने की हर संभव कवायद करता है.दूसरे धनोपार्जन की वज़ह से पिता घर परिवार से शारीरिक और भावनात्मक रूप से सहज ही दूर हो जाता है .
लोग कहते हैं
होता है सागर खारा
क्योंकि सीखा नहीं कभी उसने
नदी सा प्यार बांटना
पर यह कहने वाले
विकसित ही कहाँ हैं कर पाते
अपनी दृष्टि को
ताकि निष्पक्ष देख सकें
उस भाप को जो उठती रहती
विशाल सागर के सीने से
बन जाते हैं जिससे
नीले सफ़ेद रूई से कभी
और कभी मेघ घन काले
यह सागर ही है
बनाया नदियों को जिसने
मीठा जल बांटने के काबिल
नदियों की मिठास में
होता सागर भी है शामिल .
आज कुछ पुत्र अगर बलात्कार जैसी वारदातों को अंजाम दे रहे हैं तो यह विचारणीय है कि उन्हें नैतिक जीवन के प्रति सजग कर एक सही दिशा में पिता ही ले जा सकते हैं .पौरूष ऊर्जा को सकारात्मक और विकासात्मक दिशा में किस तरह मोड़ा जाए यह माता से बेहतर पिता ही बता सकते हैं.और इसके लिए संतान के माता और पिता के आपसी सामंजस्य और सौहाद्र का होना ज़रूरी है.
सागर कितना भी विशाल हो जाए
सागर से महासागर बन जाए
सदा उसे रहता इंतज़ार
पहाड़ से आती नदी का
जानता है वह .हैं .नदी ही
वज़ह इस विशालता की
पहाड़ों से आती नदी भी
मानती है ये बात बखूबी
गर सागर न होए तो
सूख जाए उसके स्त्रोत ही
एक दूसरे के अस्तित्व के
इस गहन समझ ने ही
करने न दी कभी बेवफाई
नदी को सागर और
सागर को नदी से .
कुछ परिवारों में संतान पिता को महज भौतिक ज़रुरत पूरा करने के लिए एक ए टी एम सदृश मान लेते है. ऐसे में नौकरी से सेवानिवृति होते ही या आर्थिक रूप से पराश्रित होते ही पिता संतान द्वारा बदसलूकी का शिकार होते हैं .ऐसे में यह ज़रूरी है की पिता के हाथों को अपने हाथ में लेकर संतान उनके प्रति अपने प्यार की अभिव्यक्ति करे कि मेरी ज़िंदगी में आप का होना बहुत मायने रखता है … आप आज भी उतने ही महत्वपूर्ण हो जितने मेरे बचपन में थे. माता पिता से रिश्ता सिर्फ नाम का नहीं होता बल्कि गहराई से समाया होता है क्यों कि संतान में दोनों का ही अंश होता है.माता के आँचल में जीवन स्त्रोत है तो पिता के कांधों पर खेलकर कभी गिरने का भय नहीं होता .पिता बहुत संवेदनशील होते हैं वे संतान की उंगली थामते है हाथ नहीं क्योंकि वे उन्हें संरक्षण देना चाहते हैं उन्हें अधीन नहीं रखना चाहते हैं. मूवी ‘पीकू’ में अमिताभ जी और दीपिका के बीच का पिता पुत्री का रिश्ता बहुत ही सहज है ऐसा अमूमन कई घरों में होता है.पिता के प्रति आदर भाव रखना ,यह जानना कि वे जीवन में बहुत मायने रखते हैं संतान को उनके प्रति सदा कृतज्ञ रखता है.पर पिता भी एक इंसान है वह इस कृतज्ञता से ज्यादा अपने प्रति संतान का निर्भय प्यार ,अविरोध संघी भाव भी चाहते हैं .ज़रूरी यह है कि पिता के मार्मिक पक्ष और ममत्व से संतान सिर्फ इसलिए आँखें ना मूँद लें कि पिता एक पुरुष है जो ह्रदय से उठते उदगार को नहीं समझते .अगर संतान माता की तरह पिता के भी ममत्व भाव को समझें और पिता भी बाहें फैला कर संतान के प्रति प्यार को मुखर कर लें तो संतान प्यार का इस महासागर के महत्व को गहराई से समझ पाएंगे .शायद ही कोई संतान कहे “तू प्यार का सागर है तेरी एक बूँद के प्यासे हम ” क्योंकि इस महासागर में निहित सम्पदा को वे समझ पाएंगे ….सागर के खारेपन को अंगीकार कर सकेंगे क्योंकि जीवन को रसमय बनाने के लिए अल्प मात्रा में ही सही पर खारे पानी से बने नमक की अहम भूमिका होती है .
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