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१) आँखें
आंसू निकल आते हैं
रोते हुए और हंसते हुए भी
पर बहुत अंतर होता है
दुःख और सुख की छलकती आँखों में
अक्सर ही अति में होती हैं
दुःख के पल की आँखें
अतिवृष्टि या अनावृष्टि
कभी रूकते नहीं बहते आंसू …मानो बाढ़
कभी पथराई आँखों से ना बहते आंसू …मानो सूखा
ये तो सुख के पल की आँखें हैं
जो बेहद संतुलित होती हैं
छलकती भी हैं तो इंद्रधनुषी मुस्कान संग
सच है बहुत अलग ही होती हैं
दुःख और सुख की छलकती आँखें .
२)
बयान बाजी.
बयान बाजी…
मानो फेंक दे बेपरवाह कोई
छिलके केले के
ज़हमत भी उठाये ना
परिणाम जानने की
कोई फिसल कर गिरा तो नहीं
कोई चोटिल हो पड़ा तो नहीं
दरकार स्वच्छता अभियान की
बयानबाजी को भी है
इधर उधर फैले कचरे की तरह .
३)
डार्लिंग !!! ‘सेहत के लिए तू तो हानिकारक है ‘
तुम इतना भी ना रोओ
कि लगने लगे रोज ही
ज्यादा नमक दाल सब्जी में
अपनी आँखों के पानी को
व्यर्थ इतना भी ना कर
कि पतिदेव परेशान हो कह दें
डार्लिंग !!!
‘सेहत के लिए तू तो हानिकारक है ‘
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