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बेड नंबर __!!

V2...Value and Vision
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मैं लोगों की ये बात कैसे मान लूँ कि व्यक्ति ही सब कुछ होता है .वह चाहे जिस स्थान पर जाए उसका व्यक्तित्व कृतित्व एक सा ही रहता है .मसलन वक़्त का पाबन्द है तो प्रत्येक स्थान पर पाबन्द रहेगा , झुकना नहीं जानता तो किसी के समक्ष नहीं झुकेगा …वगैरह वगैरह उस पर स्थान स्थान का प्रभाव कुछ भी नहीं पड़ता .सच तो यह है कि प्रत्येक स्थान व्यक्ति पर अपना प्रभाव डालता है. स्थान बदलते ही व्यक्ति के मौलिक व्यवहार में बदलाव आ जाता है .कुछ तो आदतन और कुछ नियतिवश पर बदलाव ज़रूर आता है .
किसी सभा आयोजन में अपने ही वक़्त पर आने वाला व्यक्ति रेलवे स्टेशन या हवाई अड्डे पर वक़्त का कितना पाबन्द हो जाता है.ओजपूर्ण और कभी कभी दम्भ भरे भाषण देने वाला भी किसी संत महात्मा ज्योतिष के सामने कितना समर्पित हो जाता है.तराशे हुए गगनचुम्बी फाइव स्टार होटल में नकली जीवन जीता मांस पेशियों को हमेशा तनी रखने वाला व्यक्ति अपने घर की चारदीवारी में अकेलेपन की स्वाभाविकता में कितना लुंज पुंज कितना ढीला पड जाता है.कभी कभी तो नींद की गोली का मोहताज़ .अनाथालय वृद्धाश्रम में बड़ी बड़ी चैरिटी करने वाला अपने बच्चों के लिए मंदिर में कितना अकिंचन हो जाता है.अपने कार्यस्थल पर नाम पद और शख्शियत के बल पर शक्ति का प्रदर्शन करने वाला अस्तपताल में बेड नंबर बन कर कितना बेबस लाचार निरीह हो जाता है .मानो नन्हा सा शिशु जो करवट बदलने से लेकर कपडे बदलने तक के लिए एक मदद की आस में अपने बेड नंबर की तरफ आने वाले कदमों की आहट पर दिन रात गुज़ार देता है.अपने प्रत्येक जन्मदिन पर घर के ड्राइंग रूम को मोमबत्तियों से रोशन करने वाला कब्रिस्तान श्मशान के अंधकार में विलीन हो जाता है.
हर व्यक्ति स्थान के प्रभाव से वैसे ही तज़ुर्बे लेता है जैसा कि हिना को पीसने वाले के हाथ में हिना का रंग और सूखी दरिया के रेत पर तपती चट्टान तज़ुर्बे बटोरती है . उषा की चमक के वक़्त निशा के फीकेपन का भान रहना बहुत ज़रूरी है.यही वह एहसास है जो अच्छे और बुरे दिनों में समरस होकर ज़िंदगी जीने की राह दिखाता है .

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