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जागरण जंक्शन के अनुपम मंच से जुड़े अजीज साथियों
वर्ष 2016 कुछ खट्टी कुछ मीठी यादों और अनुभवों की सौगात देता हुआ अब विदाई के कगार पर पहुंच गया है । कहते हैं
विकल्प कई हैं ध्यान भटकाने को
पर संकल्प एक है मंजिल पाने को ।
हम सब ने मिलकर समाज को, एक दूसरे को अपनी लेखनी के प्रवाह से तर करने की कोशिश की है ।इस वर्ष मैंने एक जिम्मेदारी का निर्वाह किया है कि अपने घर काम करने वाली की बिटिया को सरकारी आवासीय विद्यालय मेें प्रवेश दिलाने के लिए प्रेरित करने के साथ प्रवेश परीक्षा की तैयारी करवाया और आरंभिक धन जो कि नाम मात्र की राशि ही थी उसकी व्यवस्था की ।अब उसकी पढ़ाई की पूरी व्यवस्था सरकार के द्वारा ही हो रही है ।इसी वर्ष मेरी बिटिया ने भी मेडिकल की प्रवेश परीक्षा बहुत अच्छे रैंक से पास किया अब वह सरकारी संस्थान से मेडिकल कर रही है .इसी वर्ष मैंने अपनी परम प्रिय सहेली को खोया . कुछ सीखा गया यह वर्ष .
जाने और आने वाला वर्ष बस डूबते और उगते सूर्य सा है .दोनों की सिंदूरी आभा एक सी है .जाने वाला वर्ष कुछ सीखा कर कुछ संजो कर जाता है तो आने वाला वर्ष कुछ नया करने का अवसर उपलब्ध करता है .सच तो यह है कि यह ज़िंदगी सांप और सीढ़ी का खेल है .मैं अक्सर बच्चों के साथ लूडो खेलती हूँ लूडो के खेल का संस्कार उन्हें बताता है कि खेल की तरह ज़िंदगी की राह में भी सांप की तरह असफलता और सीढ़ी की तरह सफलता प्राप्त होती है ..पर जब मैं खेलती हूँ तो बच्चे बहुत मज़े लेते हैं .दरअसल मैं खेल को उल्टे नियम से खेलती हूँ.सांप की पूंछ पकड़ कर चढना और सीढीयों से उतरना होता है खेल कुछ ही सेकंड में समाप्त हो जाता है .दोस्तों इस समाज की एक कड़वी सच्चाई भी है .कभी कभी सही और नेक राह पर चलने पर भी हमें ठोकर मिल जाती है .हम परेशान किए जाते हैं .जैसे हाइवे के सीधे सपाट राह पर उबड़ खाबड़ गड्ढों वाली सड़क की तुलना में ज्यादा दुर्घटनाएं होती हैं वैसे ही सच्चे ईमानदार लोगों को समाज का एक तबका जीने नहीं देता है ..जबकि कुछ कुटिल नीतियों कुछ राजनितिक कूटनीतिक चाल द्वारा कुछ लोग सफलता की सीढ़ियों पर तेजी से चढ़ पाते हैं .बच्चों को समाज की यह सच्चाई बताने समझाने के लिए ही मैं यह सांप सीढ़ी का खेल विपरीत नियम से खेलती हूँ .पर यह ज़रूर बताती हूँ कि यह खेल जैसे सेकंड में खत्म हो जाता है बस यही हश्र कुटिल चालों का भी होता है.सफलता ज़रूर मिलेगी पर क्षणिक जो दीर्घकाल के लिए घातक होगी .उन्हें समझाती हूँ की जीवन में असफलता और सफलता दोनों ही आएँगे पर क्षणिक सफलता के लिए अपने नैतिक मूल्यों से कभी समझौता न करना .
जाते और आते मेें फर्क बस ‘जा’ और ‘आ’ का
‘ ता ‘ तो दोनों ही शब्दों मेें बराबरी का हकदार
इस वर्ष का जिक्र भी उतने ही शिद्दत से करना
आगत वर्ष लिए हो जितना बेसब्र और बेकरार
कुदरत के रहस्य और लावण्य की यही तो खूबी
जिस सिंदूरी आभा संग नव वर्ष आने को तैयार
गहराई से अध्ययन करने पर तुम एहसास करोगे
इस वर्ष की विदाई मेें वही सिंदूरी आभा है शुमार।
प्राणी हो या स्थान वक़्त की दया पर ही निर्भर हैं .वक़्त कभी किसी के लिए अच्छा होता है तो कभी खराब होता है .सच है कि…..यह वर्ष भी कुछ वजहों से बहुत ग़मगीन हुआ होगा ….
मकान मंज़िलों के सलीब चढ़ एक दास्तान बन गए
आँगन अपार्टमेंट में तब्दील हो वन वीरान कर गए
वर्ष २०१६ के कुछ लम्हे ,कुछ तारीखें ,कुछ महीने
कुछ खट्टे तो कुछ मीठे तज़ुर्बे से आख्यान रच गए .
फिर भी हम उन लम्हों को भी याद रखते हैं और हमें अवश्य याद भी रखना चाहिए क्योंकि वे हमें खुशी के वक़्त अति उत्साही या उन्मादी होने से बचा लेते हैं.डायरी और कैलेंडर की शक्ल में वे कुछ खट्टी मीठी यादें हमारी धरोहर बन जाती हैं.
है दिन महीने और साल गुज़रते
पर कुछ कलेंडर कभी नहीं बदलते
वह डायरी भी बदलती नहीं कभी
जिनमें लम्हे हम ज़ज़्बाती सहेजते .
जब कभी कुछ कटु अनुभव मिले उनसे निज़ात पाने के लिए उनके बारे में सोचने की बजाय उनसे सीख लेना चाहिए .ताकि फिर कभी ऐसे लोग या घटनाओं से सामना ना हमारा ना ही किसी और का हो .
क्या कहूं जाते वर्ष के साथ विदा कर दिया मैंने
कुछ दोस्त जो डराने लगे थे दुश्मनों से भी ज्यादा
कुछ यादें जो चुभने लगी थी काटों से भी ज्यादा ।
कुछ घाव जो रिसने लगे थे नासूरों से भी ज्यादा
कुछ लोग जो बेगाने लगे थे बंजारों से भी ज्यादा ।
आगत वर्ष के लिए मेमोरी खाली कर लिया मैंने
अब जिन्दगी के ऐसे सवालों से उलझना नहीें मुझे
जिनके जवाब की धार पैनी तलवारों से भी ज्यादा ।
हम सब ने बहुत कुछ पाया और खोया होगा ज़िंदगी इसी का तो नाम है .एक ही धरा पर दो स्थान सिर्फ पृथ्वी के सूर्य के चारों तरफ परिभ्रमण की वजह से दो विपरीत मौसमों का अनुभव कराते हैं .एक ही कोख से जिनमें भाई बहन अलग अलग तकदीर से अलग अलग सुख दुःख की ज़िंदगी जीते हैं.फिर भी ज़िंदगी दोनों के लिए आनंददायी है बोझिल नहीं .यही जीवन दर्शन है .
एक वर्ष क्या क्या दिखा जाता है
एक ही धरा के भाग होते हुए भी
भारत जब ठंड मेें कंपकंपाता है
ऑस्टेलिया धूप मेें चिलचिलाता है ।
तारीखें ऐसी कि दक्षिण गोलार्ध मेें
22 दिसम्बर होती सबसे बड़ी रात
और उत्तर गोलार्द्ध मेें यह तारीख
होती सबसे लम्बे दिन की बात ।
वर्ष सिर्फ अतिशयता का नाम नहीें
इन दो अति के बीच और कुछ भी है
सुख और दुःख के श्वेत और श्याम
पर इन दो के बीच कुछ धूसर भी है ।
पूरा वर्ष रंग बिरंगे से कैलेण्डर के
महीनों के पन्ने पलटते बीत जाता है
और जीवन का गूढ सा एक मर्म
निर्ममता से कैसे क्यों छीन जाता है ।
वर्ष 2016 को मिल जुल कर कहें
धन्यवाद , शुक्रिया आपका आभार
ताकि 2017 का हर मौसम हो जाए
खुशगवार शानदार और सदाबहार ।
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामना
यमुना
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