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1) आफलाइन से बेहतर आनलाइन होली
आनलाईन होली की धूम है
आफलाइन कुछ कहीं गुम है
एक तरफ मोहब्बत की बोली है
दूसरी ओर नफरत की गोली है .
एक तरफ रंगे इश्क भीग रहा
तो कहीं लहजे अश्क खीझ रहा
एक तरफ गजब शोर शराबा है
दूसरी ओर अजब खून खराबा है .
आनलाइन संदेशे की भरमार है
तो आफलाइन अहम की मार है
एक पर इन्द्रधनुष उग आया है
दूजे पर लहू मासूम बह आया है.
जो रंग चाहो वह रंग तुम उछाल दो
थोड़ी इंसानियत की भी पर गुलाल हो
आफलाइन से बेहतर आनलाइन होली है
पर हम कहे कैसे “बुरा न मानो होली है. “
(ब्रुसेल्स की आतंकी घटना से क्षोभ है .)
2)” बुरा न मानो होली है ”
होली एक दिन क्यों रोज ही मैं खेलती
रंगों में सराबोर मदहोश रोज हूँ डोलती
बहकते न कदम हैं भावों को भी शरम है
रंगों में भीगा जबकि हर गांव औ शहर है .
अलसुबह सूर्य की सिंदूरी लहक
कदम तले शीत हरे तृण की दमक
दूर तक फैले नीले नभ की चमक
रंगीन तितलियों संग फूल की महक
खेतों की हरियाली और वासंती लचक
महकती माटी की सोंधी मटमैली महक
सुरमई सांझ की प्यारी सी धूसर धमक
और अंत में काली रात की स्याह सहन
कौन है जो मल देता सारे रंग मेरे चेहरे पर
बिठा रखे हैं सिपहसलार हुस्न ने पहरे पर
उषा से निशा तक मुझे रंगती और हंसती है
‘बुरा न मानो होली है ‘ कुदरत यह कहती है ।
यमुना
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