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बचपन में एक बहुत ही सरल और सहज सी कविता पढ़ाई गई थी …
“नहीं हुआ है अभी सवेरा पूरब की लाली पहचान
चिड़ियों के जगने से पहले खाट छोड़ उठ गया किसान “
आज पाठ्यक्रम से खेत किसान चिड़िया सब गायब हो गई हैं…कहाँ हैं …झूरी के दो बैल ….वे हीरा मोती …ऐसे में किसान की अथक परिश्रम ,कृषि प्रधान देश के रूप में देश की पहचान का संकट स्वाभाविक है.
चेस्टर वोलूस ने कहा था
“विकास कार्यों के अर्थशास्त्री तथा विशेषज्ञ कीचड से भरे छोटे -छोटे गाँव और कस्बों की हालत की बहुधा उपेक्षा कर देते हैं.किन्तु वास्तव में उन्ही से अगले वर्षों में एशिया अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका के आर्थिक और राजनैतिक इतिहास के स्वरुप का निर्धारण होगा .”
प्राचीन काल से ही कृषि मानव की एक मौलिक क्रिया रही है.औद्योगिक क्रान्ति के बाद से ही कृषि को वैज्ञानिकता से जोड़ना आवश्यक हो गया है. अनुभव ने सिद्ध कर दिया है कि कृषि और निर्धनता में बड़ा निकट का सम्बन्ध है.कृषि को व्यापारिक दृष्टिकोण से अपनाया जाना ज़रूरी है ना कि जीवन यापन के साधन समझना .प्रत्येक राष्ट्र की अर्थव्यवस्था में कृषि क महत्वपूर्ण स्थान है.बिना कृषि उन्नति के मानव जीवन कदापि सुखमय और समृद्धशाली नहीं बन सकता है.केवल भोजन ही नहीं बल्कि आधुनिक उद्योगों जैसे चीनी उद्योग ,खाद्य प्रसंस्करण ,सूती वस्त्र ,जूट,उद्योग ,वनस्पति तेल,बागान आदि के लिए अनेक प्रकार का कच्चा माल भी कृषि से ही मिलता है.
सुकरात ने भी कहा था
” खेती के पूर्ण रूप से फलते फूलते समय ही सब धंधे पनपते हैं.परन्तु भूमि को बंज़र छोड़ देने से अन्य धंधों का भी विनाश हो जाता है.”
कृषि उत्पादन में आवश्यक साधन भूमि सीमित है.इसका विवेकपूर्ण वैकल्पिक प्रयोग करके ही अधिकतम लाभप्रद उत्पादन किया जा सकता है.प्रत्येक कृषक के सामने साधनों के आदर्श तथा अनुकूलतम उपयोग की समस्या बनी रहती है.कृषि उपज स्वभावतः एक जोखिमपूर्ण काम होता है.अतः अनिश्चित और जोखिमपूर्ण प्रेरणाओं की आवश्यकता होती है.जलवायु ,तापक्रम ,भूमि की उर्वरता तथा बनावट सभी प्राकृतिक दशाएं सारे विश्व में कृषि का स्वरुप निर्धारित करती है.एक उद्योग में यह ठीक है कि प्रकृति का प्रभाव नगण्य होता है पर उद्योग के लिए आर्थिक प्रेरणाओं जैसे भी कई जोखिम होते हैं.मानव जनित आपदा मसलन आगजनी,गैस रिसाव ,व्यक्तिगत दुर्घटना आदि के अतिरिक्त गिरने से शार्ट सर्किट जैसे कई जोखिम होते हैं और इनसे निपटने के लिए बीमा के अतिरिक्त प्रतिरक्षात्मक उपाय भी किये जाते हैं. कृषि के लिए भी ऐसे उपाय कर इसे सुरक्षा कवच दिया जा सकता है.
भौतिकता कितनी भी बढ़ जाए …सोने चांदी कितने भी हों …रोटियां तो गेहूं के आटे की ही खाई जाएगी सोने चांदी की नहीं .अतः खेत बचने ज़रूरी हैं…कृषि उपज के बिना धरती पर जीवन की कल्पना ही नहीं है .
इसलिए …प्रत्येक व्यक्ति को कृषि के ककहरे …’क’ से किसान ‘ख’ से खेत…..को समझना और पढ़ना ज़रूरी है …
भूमि की उतपादकता तथा उर्वरता में वृद्धि कैसे की जाय …पशु प्रजनन..स्वस्थ नस्ल…पौधों की बीमारियां तथा फसल को नष्ट करने वाले विभिन्न कीटाणु कृषि उत्पादन से सम्बंधित यंत्र विधियों की जानकारी भी अनिवार्य है .भूमि चुनाव ,फसल का चयन ,श्रम पूंजी तथा देश के आर्थिक विकास के लिए यह आवश्यक है कि समाज में प्रगति की इच्छा हो और उसकी सामाजिक आर्थिक राजनितिक संस्थाएं इस इच्छा को कार्यान्वित करने में सहायक हो.
वर्ष २०१६-१७ के बजट में कृषि के विकास के लिए इच्छा और इस इच्छा को कार्यान्वित करने की दृढ़ता दिखती है.३५९८४ करोड़ रूपये कृषि क्षेत्र के लिए आबंटित किया गया.पशुधन और डेयरी को संजीवनी प्रदान की गई है.नकुल स्वास्थय पत्र जो पशुओं के स्वास्थ्य क कार्ड होगा..उन्नत ब्रीडिंग प्रोद्योगिकी जिसमें तकनीक की मदद से अच्छी नस्ल के पशुओं की प्रजाति तैयार की जाएगी.ई पशुधन हाट बनाने क प्रावधान भी किया गया है.ब्रीडर और किसानों को जोड़ने के लिए इ -मार्किट पोर्टल होगा .राष्ट्रीय जीनोमिक केंद्र होगा जिसमें देशी प्रजनन को बढ़ावा दिए जाने वाले केंद्र स्थापित किये जाएंगे.सिक्किम राज्य में जैविक खेती की सफलता से प्रेरित होकर देश के शेष भागों में भी जैविक खेती को बल दिया जाएगा.किसानों की आय के लिए बाज़ारों की सुलभता बेहद अहम है.सरकार ने इसके लिए राष्ट्रीय कॉमन एग्री मार्किट तैयार की है,जिसके तले समूचे देश के किसान अपनी उपज बेच सकेंगे.प्रत्येक देश अपनी नदियों का बहुत ऋणी होता है .कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था में तो नदियां यदि उनका समुचित उपयोग किया जाय तो जनता की समृद्धि का स्त्रोत होती है.वास्तव में नदियों को देश के लिए जीवन प्रदायिनी कहा जा सकता है.बजट में इस दृष्टिकोण से भी देखना अपेक्षित था .देश के असिंचित क्षेत्र में कम से कम पांच लाख तालाबों और कुओं का निर्माण मनरेगा से कराया जाएगा.अब किसानों को किस्मत पर नहीं छोड़ा जा सकता .फसल बीमा योजना,मृदा स्वास्थ्य कार्ड ,सिंचाई ,एकीकृत ग्रामीण बाज़ार के साथ ग्रामीण आधारभूत ढाँचे पर भी ध्यान दिया गया है.सडकों से गाँवों को जोड़ना ज़रूरी है .
एक अच्छी सोच के साथ बनाये इस बजट से कृषि का विकास तथा ग्रामीण सुदृढ़ता की आशा है.शहर ग्रामीण अन्तर्सम्बन्ध भी ज़रूरी हैं .प्रत्येक कृषक के परिवार के वे लोग जो शहर में कमाने गए हैं वे किसी भी परेशानी में गाँव में बसे अपने परिजनों की आर्थिक मदद ज़रूर करें ताकि आत्महत्या जैसे कदम की तरफ किसी भी किसान का ध्यान न जाए .
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