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हाँ हम प्रतीकों में जीते हैं

V2...Value and Vision
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देश प्रेम का भाव न हो जिसमें, वह नर के योग्य नहीं
मनुज कहावे पर दुनिया में , उसको कुछ भी भोग्य नहीं
देशप्रेमियों के चरणों पर , न्योछावर शत -शत वंदन
उन्हें समर्पित पराजित सब , करते उनका अभिनन्दन .
-राम नरेश त्रिपाठी

राम धारी सिंह दिनकर ,राम नरेश त्रिपाठी ,सोहन लाल द्धिवेदी जैसे कितने राष्ट्रवादी कवियों की पंक्तियाँ बेमानी साबित करते हुए हुए जब दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में भीड़ नारे लगा रही थी ….” कितने अफज़ल मारोगे …घर घर से अफज़ल निकलेगा…भारत तेरे टुकड़े होंगे इंशाअल्ला इंशाअल्ला …भारत की बर्बादी तक ,जंग रहेगी जंग रहेगी …तब वहां के वरिष्ठ शिक्षक ,भारतीय बुद्धिजीवी कहाँ थे ?प्रश्न यह भी है कि ऐसे कार्यक्रमों के आयोजक कौन लोग होते हैं ?
हाल के दिनों में शिक्षा संस्थान समाचार की सुर्खियां बन गए .पर वे जिन वजहों से सुर्ख़ियों में आएं हैं क्या वह भारतीय युवा वर्ग को दिशाहीन करने की सोची समझी साज़िश नहीं लगती क्योंकि मोदी जी देश विदेश में बार बार प्रत्येक भाषण में भारत की युवा शक्ति पर गर्व व्यक्त करते हैं.युवाओं पर सीधे आक्रमण या बम बन्दूक ना चलाकर उनके विचारों संस्कार को दूषित कर दो ताकि वे अपने लक्ष्य से भटक जाएं. कुछ युवाओं को इस तरह भड़काऊ शब्द उगलवा कर अध्ययन अध्य्यापन में व्यवधान डाल देना बस यही एक साज़िश है .यह एक विशेष प्रकार का छद्म आतंकवाद है . युवा की प्रज्ञा, बुद्धि ,तर्क शक्ति ,दक्षता को गलत दिशा में मोड़ दो और देश खुद ही मृतप्राय हो जाएगा ..इतनी घिनौनी साज़िश और देश के रहनुमाओं को इसका इल्म तक नहीं .तमाम बहसों में यही एक बात छूट गई .जो लोग देश विरोधी नारे लगाए जाने वालों को अभिव्यक्ति की आज़ादी के पैरोकार मान रहे हैं मुझे उनसे एक ही सवाल पूछना है क्या अगर उनके माता पिता को कोई भी सरे आम बुरा भला कहे तो वे बर्दाश्त कर लेंगे या वह ठीक कह रहा है …प्रजातंत्र में सब को अभिव्यक्ति का मौलिक अधिकार है ….ऐसा कह कर उसका समर्थन करेंगे ..अगर उनका ज़वाब हाँ है तो मुझे इस बात पर शर्मिंदगी होगी कि उन जैसे लोग इस देवभूमि भारत में रह रहे हैं.अगर उनका ज़वाब नहीं है तो फिर यही प्रश्न कि जब माँ का अपमान नहीं सह सकते तो मातृभूमि का अपमान करने वालों को किस जिगर से समर्थन दे रहे हैं .और यह अभिव्यक्ति की कैसी आज़ादी है जो अपनी ही सरज़मीं को शर्मशार कर रही है.”भारत की बर्बादी तक जंग रहेगी जंग रहेगी “…यह कैसी अभिव्यक्ति कि घर को घर के चिराग से ही आग लग रही है.ये युवा भारत की ज़मीन पर क्यों हैं अगर उन्हें अपनी मातृभूमि की बर्बादी देखनी है.दुनिया को हंसाने का मौका क्यों दे रहे हो .जिस देश का गौरव प्रधान मंत्री जी विदेश में स्थापित कर रहे हैं …उस पर बदनुमा दाग क्यों लगा रहे हो …इसलिए की दुनिया यह कहे …
उनके घर के अँधेरे बड़े भयानक हैं
जिनके सारे शहर में चिराग जलते हैं.
नहीं नहीं अब यह पक्ष विपक्ष …आरोप प्रत्यारोप …का घिनौना खेल बंद करना होगा .युवाओं की आहुति बंद करो .अपने स्वार्थ के लिए देश के निवासियों को सज़ा मत दो.हम शांत देश के निवासी हैं हम किसी भी समस्या का शांतिपूर्ण समाधान चाहते हैं.
जब मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी की सभी ४६ केंद्रीय विश्वविद्यालयों के कुलपतियों के साथ हुई बैठक में सर्व सम्मति से प्रस्ताव पारित हुआ की इन परिसरों में प्रमुखता और सम्मान के साथ रोशन राष्ट्रीय ध्वज फहराया जाएगा .तब भी लोगों को ये नागवार गुज़रा .एक नेता ने कहा “इस सरकार को प्रतीकों में जीने की आदत है .”कुछ ने कहा इस तरह के प्रतीकों से क्या होगा .मुझे याद है हमारे स्कूल के दिनों में राष्ट्र गान प्रातः कालीन प्रार्थना सभा का सबसे मुख्य भाग होता था .हम ५२ सेकंड में हारमोनियम में बजने वाले सुर के साथ गान गाते थे.और राष्ट्र प्रेम का भाव इतना गहरा होता था कि उससे सम्बंधित प्रत्येक कविता कहानी को कंठस्थ करते .फ़िल्मी गानों पर कार्यक्रम कम ही करवाये जाते थे.रामधारी सिंह दिनकर निराला जैसे कवियों की कविताओं को गीत सुर देकर संगीत शिक्षक तैयार करते और उस पर नृत्य नाटक नाटिका का अभ्यास होता था .यह उन दिनों के ही संस्कार थे कि आज भी राष्ट्र से जुडी हर बात पर गर्व होता है.अध्यापन के साथ ही राष्ट्रभक्ति का भाव भी जगाने का प्रयास किया जाए इसमें विरोध हो यह बात बिलकुल समझ नहीं आती है. ‘हिन्द देश के निवासी सभी जन एक हैं ..या मिले सुर मेरा तुम्हारा तो सुर बने हमारा ‘ जैसी पंक्तियों को कोई नहीं भूल सकता .इन गीतों से जुडी भावना देश के प्रति सम्मान से भर देती हैं.और फिर एक दिनके २४ घंटों में से कुछ वक्त अगर देश के प्रति प्रतीकों के माध्यम से ही सजगता जागृत की जाए तो इसमें क्या दिक्कत है ?यह भाव किसी पर थोपने वाली बात नहीं है.यह तो देश के प्रति प्रेम का सहज भाव है .प्रेम को व्यक्त करने के लिए प्रतीकों का सहारा युगों युगों से लिया जा रहा है ..फिर चाहे वह कान्हा की बंसी हो या सीता जी की चूड़ामणि …भक्त हनुमान के सीने में श्री राम और माँ सीता के चित्र हों या कलाई पर राखी के सूत्र हों . प्रतीकों का प्रयोग व्यर्थ है तो फिर धर्म से जुड़े स्वस्तिक ,क्रॉस,कृपाण,टोपी की भी ज़रुरत नहीं है.राष्ट्र ध्वज फहराना ना तो बी जे पी से जुड़ा है ना ही आर एस एस से जुड़ा है .इसे अखंड देश के एकीकरण के भाव से समझ जाए और पूरा सम्मान किया जाए .वर्त्तमान परिवेश का यही तकाज़ा है.
यहां मैं क्लार्क के कथन का उल्लेख कर रही हूँ
“एकीकरण एक क्रिया है.यह विषयगत एवं वैयक्तिक प्रक्रिया है.जो अभिवृत्ति के परिवर्तन और भय ,घृणा ,संदेह ,और भ्रम के त्याग से सम्बद्ध है.”
देश प्रेम वह पुण्य क्षेत्र है अमल असीम त्याग से विलसित
आत्मा के विकास से जिसमें मानवता होती है विकसित .

प्रतीकों में जीना हमें उस प्रतीक से जुडी भावना के प्रति गौरव का भाव देता है .दैनिक ज़िंदगी में मैं ऐसे ही एक प्रतीक माथे की बिंदी के प्रति बहुत सजग रहती हूँ.मुझे किसी के घर के बाथरूम के शीशे पर ,दरवाज़े पर पलंग पर चिपकी या जमीन पर गिरी बिंदी देख कर बहुत दुःख होता है .अपने घर पर मैं कभी ऐसा नहीं करती ना ही घर आये रिश्तेदारों को करने देती हूँ.माथे की बिंदी भारतीय सुहागनों का श्रृंगार होता है यह विवाह जैसी संस्था के प्रति गौरव के साथ जीवन साथी के मान को भी बनाये रखने का भाव भरता है.प्रतीकों में जीना भी एक संस्कार है और अच्छे संस्कार ही हमें पहचान देते हैं.राष्ट्र्रीय झंडे को देख कर देश भक्ति का भाव अवश्य उठता है.झंडे की आन बान शान को कायम रखना हमारा फ़र्ज़ है.क्या इसके तीन रंग युवाओं को चारित्रिक सौंदर्य बनाये रखने की प्रेरणा नहीं देते .
झंडा ऊंचा रहे हमारा

केसरिया बल भरने वाला
श्वेत असत ताम हराने वाला
हरा धरा की हरियाली का
चक्र प्रगति का चिन्ह हमारा.

इसकी रक्षा में बलि जाएं
हम इसकी ही महिमा जाएं
इसकी रक्षा में अर्पित हो
भारत का जन जीवन सारा

हम स्वतंत्र हों जग स्वतंत्र हो
जीवन का शुभ यही मंत्र हो
जीओ और जीने दो सबको
गूँज उठे अब हर घर नारा

झंडा ऊंचा रहे हमारा .

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