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सिर्फ अपाहिज नहीं … अपराध के शिकार भी

V2...Value and Vision
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मनुष्य ईश्वर की सर्वोत्तम कृति है.धरती पर उतरते ही उसे एक पहचान मिलती है और इस पहचान का सबसे अहम हिस्सा होता है …उसका अपना विशिष्ट चेहरा .कुछ सरफिरे अपराधी तत्व  पहचान की इस विशिष्टता को बहुत ही बेरहमी से समाप्त कर देते हैं और इसके लिए तेज़ाब को हथियार के तौर पर इस्तेमाल करते हैं..इस अपराध के पीछे कई अविवेकपूर्ण वजहें होती हैं जैसे ..लड़की के द्वारा .विवाह प्रस्ताव से इंकार करना , लड़की और लडके के वैवाहिक संबंधों को लेकर दोनों परिवार के आपसी रंजिश ,पुरुषों के द्वारा ज़बरदस्ती तलाक देने की कोशिश , भ्रूण के लिंग परीक्षण के लिए पत्नी का इंकार कर देना ,कार्य स्थल की पेशेवर प्रतिस्पर्धा से उपजा आक्रोश …इत्यादि पर इसमें सबसे मुख्य वज़ह है एकतरफा आकर्षण से उपजा प्यार ..और इस आकर्षण का अहंकार से गहरा रिश्ता होता है ..सामने वाले की इच्छा अनिच्छा की परवाह किये बिना स्वयं को उसके ऊपर थोपना…और बात ना मानने पर अहंकार इस कदर हावी हो जाता है कि आपराधिक शक्ल ले लेता है.सच्चा प्यार अपने प्रियतमा को कभी भी दर्द नहीं दे सकता .प्रेम तो कोमल बनाता है पर एकतरफा आकर्षण एक बीमारी है जिसे इरोटोमेनिआ भी कहा जाता है .सामने वाले को पाने की ज़िद जूनून किसी भी हद तक जाकर अपराध को अंजाम दे देती है. चूँकि पुरूष प्रधान समाज नारी को उसके रूप लावण्य पर ही तौलना जानता है अतः तेजाबी हमले कर रूप को विकृत कर अपने अहम को तुष्टि देता है. दूसरी बात यह भी कि वह जानता है कि ऐसे अपराध को अंजाम देकर भागना आसान होता है क्योंकि अपराध का शिकार इस स्थिति में नहीं होता कि वह ज़रा सा भी संभल सके .
यूं तो तेज़ाबी हमलों का शिकार अधिकांशतः महिलाएं ही होती हैं .मार्च २५ ,२०१५ में एक रिकॉर्ड के तहत इस प्रकार के ३०९ हमले की पुष्टि हुई जिसमें अधिकाँश महिलाओं पर किये गए हमले थे पर ऐसे हमले पुरूषों पर भी हुए हैं .पिछले वर्ष उत्तर प्रदेश राज्य से एक घटना भी रिकॉर्ड हुई थी जिसमें गहने को लेकर हुए विवाद में दो पुरुषों के ऊपर अन्य दो पुरुषों ने तेज़ाब फेंका था .
सोमवार ८ दिसंबर २०१५ को जस्टिस एम वाई इक़बाल तथा जस्टिस सी नागप्पन की बेंच ने यह कहा कि तेज़ाबी हमले के शिकार हुए व्यक्ति को अक्षम माना जाए ताकि वे भी शारीरिक रूप से अशक्त अक्षम व्यक्तियों को दी जाने वाली सरकारी योजनाओं का लाभ उठा सकें.जैसे सरकारी नौकरियों में ३ % का आरक्षण का लाभ आदि .साथ ही एसिड को ‘ scheduled substance  ‘मान कर उसके अनियंत्रित बिक्री को कठोरता से रोक जाए .एसिड कितनी मात्रा मेंऔर किसे बेचा गया उसका पूरा रिकॉर्ड रखा जाए .
एसिड अटैक की शिकार लक्ष्मी महज १६ वर्ष की थी जब २००५ में उसकी उम्र से दोगुनी उम्र वाले एक पुरूष ने एकतरफा प्यार के जूनून में उस पर हमला किया था .अब लक्ष्मी २६ वर्ष की है .उसने हाल में ही एक बेटी को जन्म दिया जिसे प्यार से पीहू नाम दिया है .वह २८ वर्षीय सामाजिक कार्यकर्ता पत्रकार आलोक दीक्षित के साथ लीव इन रिलेशनशिप में रह रही है .विवाह संस्था पर दोनों का भरोसा नहीं पर वे खुश हैं .आलोक शिक्षा के क्षेत्र में काम करना चाहता था पर लक्ष्मी के दुःख ने उसे स्टॉप एसिड अटैक  Stop Acid Attack ( SAA ) अभियान से जोड़ दिया .आलोक जिसने स्टॉप एसिड अटैक ( NGO  …छाँव ) अभियान चलाया है अपनी बेटी पीहू में आशा और उत्साह की किरण देखता है.लक्ष्मी बस यह सोच कर घबराती थी कि उसकी बेटी पीहू उसे देख कर भयभीत ना हो .लक्ष्मी को मैं यही सन्देश देना चाहूंगी ” संतान का माँ से गहरा रिश्ता होता है …संतान माता के चेहरे से ज्यादा उसकी आत्मा से जुडी होती है…क्योंकि वह उसी शरीर का अंश होती है .” २०१४ में लक्ष्मी को  अमेरिका की प्रथम महिला मिशेल ओबामा ने international women of courage award  भारत में चलाये जा रहे एसिड अटैक अभियान के लिए दिया .
लक्ष्मी की याचिका पर ही सुप्रीम कोर्ट ने एसिड अटैक को स्पेशल ओफ्फेंस माना . साथ ही सभी राज्यों और केंद्र शाषित प्रदेशों को आदेश दिया कि वे ऐसे शिकार व्यक्तियों को तीन लाख का मुआवज़ा दें साथ ही निजी अस्पतालों को एसिड अटैक के शिकार के लिए मुफ्त चिकित्सा व्यवस्था मुहैय्या करने का निर्देश दें जिसमें दवा भोजन  reconstructive surgery की भी सुविधा दी जाए.
कोलकाता की शबाना को जबरदस्ती एसिड पिलाया गया वह आज भी कुछ खा नहीं सकती .यह काम जिस लडके से वह प्यार करती थी उसके परिवार वालों ने ही किया उन्हें लगा की उनके लडके को शबाना ने फंसा लिया है..जब वह अचेत हो गई तब उसके कपडे फाड़ कर निजी अंगों पर भी तेज़ाब डाला और वह कथित प्रेमी सब कुछ चुपचाप देखता रहा.और आज तक वे आज़ाद घूम रहे हैं .झारखण्ड के धनबाद की .सोनाली मुख़र्जी को भी साधारण विवाद के बाद लड़कों ने रात में उसके घर की खिड़की से उस पर तेज़ाब फेंका जब वह सो रही थी . इसी तरह दो बहनों पर सिर्फ इसलिए मकान मालिक ने एसिड फेंका क्योंकि वे किराया नहीं दे पाई थीं.
ऐसी घटनाओं के शिकार व्यक्ति ना केवल शारीरिक पीड़ा बल्कि मानसिक और सामाजिक यंत्रणाएं भी झेलते हैं.उनके लिए कुछ अवसर तो सदा के लिए बंद हो जाते हैं.मसलन फिल्म उद्योग मॉडलिंग ऑफिस receptionist  या वे सारे अवसर जहां शारीरिक सौंदर्य भी एक अर्हता मानी जाती है .हालांकि हाल में ही एक फैशन शो के तहत लक्ष्मी और ऐसे ही अपराध का शिकार हुई लड़कियों को अवसर दिया गया था .बेलो कैलेंडर में भी ऐसी ही अपराध की शिकार लड़कियों की तस्वीर है .यह छाँव फाउंडेशन का प्रयास है जो स्टॉप एसिड अटैक अभियान चलता है.वे आगरा में sheros hangout के नाम से छोटा कैफ़े भी चलाती हैं.
कैलेंडर के जनवरी महीने में डॉली की तस्वीर है जो १२ वर्ष की थी और २५ वर्ष का युवक उसके साथ यौन सम्बन्ध बनाना चाहता था इंकार करने पर एसिड अटैक का शिकार हुई उसने एसिड attacker को लिखा.“You burnt my face, but not my will to live. You can’t throw acid on that,” .वह डॉक्टर बनना चाहती है.
फरवरी महीने में गीता की तस्वीर है .उसका पति दो बेटियों के बाद बेटा चाहता था जब वह सो रही थी तब उस पर और बेटियों पर एसिड फेंका .छोटी बेटी की मृत्यु हो गई और बड़ी नीतू पूर्णतः अंधी है.पति को सिर्फ दो महीने की जेल हुई .गीता अब भी उसी के साथ रहती है वह नहीं जानती इसके अलावा वह क्या करे .
मार्च महीने में ३० वर्ष की सोनिआ चौधरी की तस्वीर है वह ब्यूटी पार्लर चलाती है मामूली विवाद के बाद उसके पड़ोसी ने दो व्यक्तियों को पैसे देकर यह अपराध करवाया.
अप्रैल महीने में गीता की बेटी नीतू की तस्वीर है वह गायिका बनना चाहती है.
मई महीने में चंचल पासवान की तस्वीर है जिसने अपने गाँव (बिहार ) में अपने पर किये जाने वाले यौन उत्पीड़न के खिलाफ आवाज़ उठाई थी.उसकी बहन सोनम को भी शिकार बनाया गया .
जून में रीतू की तस्वीर है .उसकी बुआ का उसके माता पिता से संपत्ति विवाद था जिसकी सजा उसने रीतू को दी
जुलाई महीने में लक्ष्मी की तस्वीर है .उसके प्रयास से ही “acid को विष मान कर उसकी बिक्री को नियंत्रित करने का आदेश the stringent Poisons Act, 1919.” .के तहत दिया गया .
अगस्त महीने में गीता की ही तस्वीर है.
सितम्बर में रूपा की तस्वीर है जिस पर उसकी सौतेली माँ ने एसिड अटैक किया क्योंकि वह उसकी शादी पर पैसे खर्च नहीं करना चाहती थी.
ओक्टुबर में लुधिआना की राजवंत कौर की तस्वीर है वह फोटोग्राफर पत्रकार बनना चाहती है.
नवम्बर में सोनम की तस्वीर है जो बिहार की चंचल की बहन है और एसिड अटैक का शिकार हुई .
दिसंबर में रूपा सोनिआ और ऋतू की तस्वीर है.

हाल ही में बिहार में ऐसी ही दुर्घटना की शिकार एक लड़की चंचल  जिसका चेहरा ९० % और शरीर के बाकी भाग में ३० % जले जाने की पीड़ा से गुज़रना पड़ा साथ ही उसकी बहन सोनम भी आंशिक रूप से घायल हुई उसके लिए परिवर्तन नामक NGO  ने याचिका दायर कर सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि राज्य सरकार मुआवज़े की रकम मुहैय्या नहीं कर रही .सुप्रीम कोर्ट ने लड़की के लिए १० लाख तथा उसकी बहन के लिए तीन लाख मुआवज़े की रकम देने का निर्देश बिहार सरकार को दिया है.साथ ही मुफ्त इलाज़ रेकिंस्ट्रक्टिंग सर्जरी का निर्देश निजी हॉस्पिटल के लिए ज़रूरी किया गया है.सुप्रीम कोर्ट ने माना की ज्यादातर राज्य तथा केंद्र शाषित प्रदेशों ने उस दिशानिर्देशों का पालन नहीं किया जो उसने लक्ष्मी बनाम थे यूनियन ऑफ़ इंडियन केस ऑफ़ २०१३ में दिया था .उसने यह ही कहा की सिर्फ १७ राज्यों ने victims compensation fund बनाया  हैं कुछ ने तो इसे शुरू ही नहीं किया है.
अब अहम प्रश्न यही है कि ऐसे संवेदनशील मामलों में भी अगर राज्य सरकारें अपनी जवाबदेही सुनिश्चित नहीं करती तो अपराध के शिकार क्या करें .

ऐसे हमले के शिकार को डिसएबल माने जाने के आदेश की बात पर लक्ष्मी ने कहा “यह हमारे लिए सिर्फ आदेश है जब तक कि यह क्रियान्वन नहीं हो जाता …राज्य को ऐसे पीड़ित के लिए तीन लाख रूपये मुआवज़े और चिकित्सा सुविधाओं की बात कही गई थी पर वह भी तब मिला जब हम भूख हड़ताल पर बैठे .हमारी समस्या को समझा जाए …हम सिर्फ अपाहिज ही नहीं बल्कि अपराध के शिकार हैं .”

सुप्रीम कोर्ट का ऐसे हमले के शिकार पीड़ितों को शारीरिक अक्षम की श्रेणी में रखने का आदेश उसकी संवेदनशीलता का परिचायक है पर लक्ष्मी के कहे गए वाक्य की पीड़ा भी जायज़ है . शारीरिक अक्षमता कुदरत की देन होती है या कभी कभी मानवीय लापरवाही होती है . तेज़ाबी हमला मानव की पशुता होती है जो समाज के सभ्य होने पर सवाल उठाती है .इसे कठोर सजा , तथा क़ानून के द्वारा रोका जा सकता है. अभी ऐसे अपराधियों के लिए दस वर्ष की सजा का प्रावधान है …इसे और भी कठोर कर उम्र कैद में बदल दिया जाए ताकि दूसरों को संताप देने वाला भी जीवन भर संताप झेले .
एसिड अटैक करने वाले को यह एसिड कहाँ से उपलब्ध हो जाता है .क्या इसे बेचने वाले का यह फ़र्ज़ नहीं कि क्रेता की जांच पड़ताल कर ही इसे बेचने का कदम उठाये .उसकी एक मिनट की सजगता और संवेदनशीलता कुछ सेकंड में किये जाने वाले अपराध को रोक सकती है …अन्यथा इस का संताप अपराध के शिकार को ताउम्र सहना पड़ सकता है .आज डिजिटल क्रान्ति के युग में क्या कोई ऐसी व्यवस्था है कि एसिड खरीदने वाले का नाम पता आदि रिकॉर्ड सेकंड भर में उस क्षेत्र के पुलिस के पास महज जानकारी के लिए उपलब्ध हो जाए ताकि उसकी किसी भी संदिग्ध गतिविधि पर नज़र रख कर अपराध को होने से बचा लिया जाए .

ऐसी दुर्घटनाओं के शिकार कोई गलती ना होने पर भी आजीवन पीड़ा और संताप झेलते हैं ….

क्या गलती थी कि किया तेज़ाब से बेरंग
सरफिरे वहशी ने मुझसे रख लिया राब्ता
खुद ही जूनून इश्क में कहता फिरता था
तू मुमताज़ मेरे ख़्वाबों की मैं तेरा शाहजहाँ .

जानकारी नेट से साभार

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