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युवा…वायु जैसे हैं…

V2...Value and Vision
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हैवानियत का घृणित तांडव
भूल गया जीवन की कीमत
कई मासूम ज़िंदगियाँ यों ही
समयपूर्व ही हो गईं रूखसत .

आतंक का तांडव करते हैवानियत की खबर जहां एक तरफ मारे गए मासूम और निर्दोषों के लिए हमारी आँखों को नम कर देती हैं वहीं दूसरी ओर उन आतंकवादी हैवानों के प्रति क्रोध और उनके मनोविज्ञान पर प्रश्न उत्पन्न करती हैं. कोई भी इंसान जो ज़िंदगी को कृतज्ञता से जीता है वह कभी भी अपने लिए बदसूरत मौत नहीं चाहता .वह अपने प्रिय जनों के सामने ही अंतिम सांस लेना पसंद करता है. वह जानता है मौत तो अवश्य आएगी और जब आये तो आस पास अपने प्रियजन मौजूद हों ताकि उनके प्यार की छाँव में अपनी ज़िंदगी की अंतिम सांस ली जाए …पर अफ़सोस कि कुछ वहशी उन्हें बहुत ही बदसूरत मौत देते हैं .मैं सोचती हूँ …सैकड़ों …हज़ारों …को मारने के पहले क्या एक बार भी उनकी सोई आत्मा नहीं जागती ….क्या ऐसे कदम उठाने के पहले वे कई बार खुद नहीं मरते ….वे जानते है …पकड़े और ना पकड़े जाने दोनों ही हालात में परिणति उनकी मौत ही है…फिर भी उनका अंतःकरण उन्हें क्यों नहीं धिक्कारता ….क्या उनकी ज़िंदगी इतनी बेमक़सद या बुरी मक़सद से आकार ले रही होती है ….उस ज़िंदगी में इतनी वीरानगी होती है कि वे दूसरों की ज़िंदगी में भी वह वीरानगी बांटने को आमादा हो जाते हैं ….इस मक़सद के पीछे कौन सा मनोविज्ञान काम करता है !!!

पेरिस के इस भयावह आतंकी हमले में एक १५ वर्ष का नाबालिग भी शामिल था बाकी भी युवा थे….इन युवाओं और नाबालिगों को बरगलाना बहुत आसान तब हो जाता है जब इन्हे घर परिवार समाज के द्वारा ज़िंदगी जीने का कोई ठोस सकारात्मक मक़सद नहीं मिलता है.वे जान या समझ नहीं पाते कि ज़िंदगी बहुत सुन्दर होती है.इसे सुन्दरतर से सुन्दरतम बनाया जा सकता है.जिस समाज में रात दिन सिर्फ युद्ध हिंसा घृणा की विषैली हवा फैलाई जाए वहां ज़िंदगी में कब तक शुद्धता की कल्पना की जा सकती है.विश्व के कई देश निरंतर युद्ध और हिंसा से जूझ रहे हैं.इसका दंड मासूमों को मिल रहा है ….जिसका लाभ समाज का एक बेहद विकृत मानसिकता वाला वर्ग भरपूर उठता है और हिंसा के लिए कई रक्त बीज तैयार करता जाता है.ऐसे जगहों के बच्चे कोई भूत पिशाच …दैत्य राक्षस की कहानियां सुन कर बड़े नहीं हो रहे होते हैं बल्कि अफसानों की बजाय वे हकीकत में ऐसे हैवानों से रूबरू होते हैं जो कथा कहानियों के नर पिशाच से भी ज्यादा खूंखार होते हैं.

सच कहूँ तो घृणा युद्ध हिंसा को तब और भी बढ़ावा मिलता है जब समाज आपस में ही टुकड़ों टुकड़ों में बँट कर घृणा की राजनीति को जीवन का अंग बना लेता है.तब ऐसी सर ज़मी आतताइयों और आतंकियों के लिए बेहद उर्वर साबित होती जाती है और वे इस धरा को लहू से सींचते जाते हैं …धरा का रंग जितना सुर्ख होता जाता है इनकी गलत मंशा उतनी ही परवान चढ़ती जाती है.पर इस माहौल के लिए भी कहीं ना कहीं हम सब जिम्मेदार हैं .

श्री जे के कृष्णमूर्ति ने एक बार कहा था ..,

we , as individual are totally responsible for the whole state of the world .we are each one of us responsible for every war because of the aggressiveness of our own lives , because of our selfishness , our Gods ..our prejudices our ideals all of which divides us .

जब जब हमारे देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी मज़बूती के साथ आतंवाद की तरफ पूरी दुनिया का ध्यान लगभग प्रत्येक सम्बोधन के द्वारा आकर्षित किया तो अपने ही देश के कई नेताओं ने इसे एक ढोंग करार दिया …कुछ का कहना है मोदी जी असहिष्णुता पर देश में नहीं बोलते पर विश्व मंच पर बहुत बोलते हैं .अब उन्हें कौन समझाए देश में उनकी बातों को सकारात्मक ढंग से लेने वाले अच्छे श्रोता भी तो होने चाहिए जो अर्थ का अनर्थ ना निकालें . देश के राजनेता देश के प्रधान मंत्री जी के साथ एकता का परिचय दें .उनके भाषण /सम्बोधन के प्रत्येक अच्छे अंश पर ध्यान दें फिर चाहे वह विकास की राह का मुद्दा हो या आतंक के उम्मूलन का मुद्दा हो.

कोई भी आतंक या युद्ध इसलिए बुरा और भयावह है क्योंकि यह मानव जनित है जिसे रोका जाना भी मानव के वश में ही है …वही इसका सर्जक है तो वही इसको रोकने वाला भी है.पर यह रोकथाम कैसे हो !!!! आज आतंवादी ISIS  के ठिकाने पर बम बारी आरम्भ हो गई है .क्या यह तीसरे युद्ध के शुरूआत के आहट है जहां एक तरफ ISIS है तो दूसरी तरफ सभी देश जो एकजुट हो रहे हैं पर अमेरिका जैसे देश विरोधाभासी बयान देकर इस एकजुटता को छद्म भी बना रहे हैं. किसी भी तरह के बुराई को पनाह देना हर देश काल और स्थान के लिए सदा से ही आत्मघाती कदम रहा है . यह उस विष के तरह काम करता है जो अंततः विस्तार पाकर पूरे तंत्र क़ी जान ले लेता है.सीरिया के राजनीति क़ी गर्द से उठा गुबार आज वैश्विक मानवता क़ी सुरक्षा के लिए भयावह रूप से खतरा साबित हो गया है.

अभी तक के समाचार के अनुसार भारत में आई एस के प्रति लगाव रखने वाले १५० युवा सुरक्षा एजेंसी के रडार पर हैं.३० युवाओं को आई इस में शामिल होने से रोका जा चूका है.२३ भारतीय युवा आई एस में शामिल हुए उनमें से एक वापस लौट आया है.इन २३ में से इराक़ और सीरिआ में लड़ाई करने गए २३ में से छह मारे जा चुके हैं.जो भारतीय युवा आई एस में शामिल हुए हैं उनमें से अधिकाँश पहले से ही विदेशों में रह रहे हैं.(सूचना दैनिक जागरण १९ नवम्बर …साभार )हम यह कह कर कि सवा सौ करोड़ आबादी वाले देश से यह संख्या बहुत नगण्य है … गैर जिम्मेदार नहीं बन सकते क्योंकि श्वेत दीवार पर काले रंग की एक डॉट भी बदनुमा दाग बन जाती है. शुद्ध जल में एक बून्द विष भी जानलेवा साबित हो जाता है.

आज देश और विदेश में बसे प्रत्येक नागरिक को अपनी सरज़मीं को सुरक्षित करने के लिए उठाये जाने वाले कदम में सर्वप्रथम युवाओं को सुरक्षित करना है ताकि उनके जोश , उत्साह को गलत दिशा में ना मोड़ा जा सके .युवा वायु क़ी तरह होते हैं ….सही दिशा और सही गति से बहें तो प्राणदायिनी साबित होते हैं …ज़रा सी तेज़ी और गलत दिशा हुई तो उन्हें भयंकर आंधी तूफ़ान और चक्रवात बनने से रोका नहीं जा सकता .उन्हें उनके जीवन के साथ साथ औरों के जीवन के मह्त्व का पाठ पढ़ाना बहुत ज़रूरी है.युवा अपने घर परिवार समाज देश के लिए बेहद ज़रूरी हैं यह बात उनके दिल दिमाग में कई नैतिक कहानियों नाटक संगीत इत्यादि प्रभावकारी सकारात्मक विधि से बिठाना होगा .

“जीत ज़रूरी है ” युवाओं को सिर्फ यह बताना आवश्यक नहीं है .जीत किस तरह की हो… कैसे पाई जाए और उसका व्यक्ति परिवार समाज देश और विश्व के लिए क्या मह्त्व है इस बात से उन्हें अवगत करना भी ज़रूरी है .विजय तो बुद्ध ने भी प्राप्त क़ी हिटलर ने भी क़ी …. पर दोनों क़ी जीत में बहुत बड़ा अंतर है ….पहले ने मानवता को जीत लिया तो दूसरे ने मानवता को घायल कर दिया ….दुनिया दोनों को याद करती है….पर एक क़ी पूजा होती है तो दूसरे के लिए बस धरती के टुकड़ों को जीतने वाले विजेता के रूप में याद कर सम्पूर्ण मानवता युद्ध के प्रति वितृष्णा से भर जाती है. ज़रुरत है कि युवा एक सुशिक्षित सुसंस्कृत देश प्रेमी कर्मवीर और मानवता वादी विजेता बने .

शहीद भी मरता है आतंवादी भी …पर एक के जनाज़े पर लोगों का हुजूम शामिल हो फूलों की बारिश कर देता है तो दूसरे क़ी अस्थियां तक भी नहीं मिलती और मिल भी जाएं तो धूल और खून में सनी अपने होने पर शर्मशार हो रही होती हैं …इन अस्थियों को उठाने वाला भी कोई नहीं होता . मेरे ख्याल से हमारे युवा दिग्भ्रमित हो कर ऐसे किसी भी बुरी राह पर ना जाएं ….इसके लिए उन्हें यह समझाना बहुत ज़रूरी है कि …
ज़िंदगी महत्वपूर्ण है इसे सम्मान और कृतज्ञता के साथ जीना बहुत बड़ी इबादत है …पूजा है …प्रार्थना है ….और सम्मान के साथ मृत्यु को प्राप्त करना ही इस ज़िंदगी के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि है. इसे ना सिर्फ स्वयं के लिए बल्कि औरों के लिए भी सोचना होगा .

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