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1 ) दिल बड़ा तो तू बड़ा
नियम गुरूत्वाकर्षण का
हर नेक बड़े दिल इंसान ने
इस अध्याय को
है बखूबी पढ़ा
तभी तो जानते हैं वे सब
ऊंचाई पर पहुँच कर भी
जमीन पर टिके रहना .
2) भाषा
कितनी आशाएं उम्मीदें जगा जाता
बादलों के पीछे लुकता छिपता यह चाँद
सुख दुःख की हर भाषा समझाता
है कितना अपना सा लगता यह चाँद .
3) मापदंड
तुम बहुत अच्छी/अच्छे हो
यह कहना जितना आसान
सुनना उतना ही कठिन
क्योंकि….
परिस्थितियां हावी होंगी मुझ पर
और बदल जाएंगे
अच्छाई के तुम्हारे मापदंड भी
छुप जाता है अच्छाई का तेज सूर्य
परिस्थितियों के घने मेघों से
बदला बदला सा लगता है
स्वभाव ….अभाव में
सच है
घने काले मेघ हों
या
कड़ी तेज धूप हो
अपना ही साया भी
आता नहीं निगाहों में
नज़र नहीं आता कोई
दूर दूर तक राहों में
अच्छे/बुरे के मापदंड से
बहुत दूर …कोसों दूर
सम्पूर्णता से मौजूद होना
है महत्वपूर्ण कितना
कौन समझ सकता है
अपने अंतस के सिवा .
4) लब मेरे ज़िंदा है
एक दिन…
जब तुम सुनने के लिए होगे
पर कहने को मैं ना रहूंगी
या कि …
मैं सुनने के लिए रहूंगी
पर कहने को तुम न रहोगे
जब कल्पना दोनों ही बातों की
है इतनी दुखदाई
सोचो होगा …
कितना कठिन …कितना पीड़ादायक
जीना इस हक़ीक़त के साथ
इसलिए कहती हूँ
तुम कहो …मैं सुनूँ
मैं कहूँ …तुम सुनो
सुनो…क्योंकि
लब ज़िंदा हैं
कहो…क्योंकि
दिल संजीदा है.
5 )अाकाश..आँगन भर
आकाश था मेरे लिए
आँगन भर ही बस
जीवन में आये जब तुम
जाना मैंने
नहीं होता आकाश उतना
दिखता आँगन से जितना
तुम ने ही दिखाया
आकाश है अनंत
तुम ने ही समझाया
विस्तार है निरंतर
कह कर यह कि …
खुलता है दरवाज़ा आँगन का
अनंत आकाश की ओर
आँगन की सीमा के बाहर
है नए विकास की भोर .
-यमुना पाठक
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