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मैं तुम्हे पहचानती हूँ

V2...Value and Vision
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प्रि
य ब्लॉगर साथियों
आज daughters डे के अवसर पर आप सभी को हार्दिक शुभकामना


शाख से टूटने का गम उन्हें भी बहुत था
पर फूल मज़बूर थे गुलदानों में मुस्कराने के लिए .
अपने माता पिता का घर आँगन छोड़ कर दूसरे घर जाने पर बेटियों पर क्या बीतती है यह वे ही समझ सकती हैं.ज़रुरत है कि माता पिता अपनी बेटियों को शिक्षा संस्कार साहस देकर बड़ा करें और नए घर आँगन में नए परिवार उनका पूरा सम्मान करें उन्हें अपना मानें .दहेज़ के नाम पर बलि ना चढ़ाएं. आधुनिक तकनीक का गलत प्रयोग कर कन्या के जन्म की सूचना पाकर भ्रूण हत्या ना करवाएं.

यह प्रार्थना मैं इसलिए कर रही हूँ क्योंकि मैं एक बेटी होने के नाते उस प्रत्येक बेटी को पहचानती हूँ जो एक तरफ हौसला उत्साह जोश उमंग के साथ प्रगति पथ पर आगे बढ़ रही हैं और उन्हें भी जो छींटा कशी , यौन उत्पीड़न,दहेज़ प्रथा जैसे दानवों से जूझते हुए किसी चमत्कारिक शक्ति के लिए रोज़ ईश्वर से प्रार्थना करती हुई घर और घर के बाहर की हवा में डरती डरती सांस लेती हैं.
मैं अक्सर सोचती हूँ अगर प्रत्येक पिता/ भाई अपनी पुत्री/ बहन की सम्मान और सुरक्षा को लेकर सजग है तो फिर वे कौन पिता और भाई हैं जिनकी क्षणिक गलती किसी भी बेटी और बहन के लिए उम्र भर का दर्द बन जाती है.मुझे इस बात का जवाब भी सहज ही मिल जाता है .दरअसल यह सम्मान और सुरक्षा की चिंता बहुत संकीर्ण होती है जो अपनी दहलीज़ तक ही सीमित रहती है और कभी कभी तो दहलीज़ पर ही दम तोड़ देती है.

बेटियों के साथ दोहरे व्यवहार में एक पुरूष के साथ स्त्री भी जिम्मेदार होती है .स्त्रियां इस दोहरे व्यवहार का अंत कर घर से ही इस दिशा में एक सार्थक शुरुआत कर सकती हैं. यह किस प्रकार संभव है ……इसे कुछ सच्ची घटनाओं से समझ जा सकता है.

तीन वर्ष पूर्व की बात है.हमारे एक रिश्तेदार की बेटी के विवाह के लिए लडके देखने की रस्म जारी थी .लड़की की माँ चूँकि सामाजिक मुद्दों से सरोकार रखने वाली सुलझे विचारों की सभ्य महिला हैं.अतः वे बिना दान दहेज़ के विवाह पर बल दे रही थी . मुझे याद आता उनकी.बिटिया हमेशा यह गीत गाती थी “दूल्हा बिकता है बोलो खरीदोगे “और माँ बेटी दोनों हंस पड़ती थीं .वैवाहिक संबंधों से सम्बंधित वेबसाइट पर एक लडके की प्रोफाइल थी जो सरकारी अफसर था परन्तु उसके पैर में विकृति थी …दोनों पैर की लम्बाई समान नहीं थी और वह एक पैर में काफी ऊंची हील के जूते चप्पल पहन कर चलता था पर फिर भी चाल में थोड़ी लड़खड़ाहट आ जाती थी.लडके के पक्ष वाले विज्ञापन के अनुसार बिना दान दहेज़ के शादी को तैयार थे. हमारे रिश्तेदार की बेटी एम बी ए कर चुकी थी और एक निजी संस्थान में कार्यरत थी.जब विवाह से सम्बंधित सारी बात अंतिम फैसले पर आ गई तब लडके की माँ ने लड़की की माँ से फोन कर पूछा ‘आपकी लड़की में ऐसा क्या दोष है जो आप मेरे आंशिक अपाहिज बेटे से विवाह को राज़ी हो गईं हैं ?और अगर शादी करनी है तो कम से कम एक अच्छी कार तो दहेज़ में चाहिए .” इस मानसिक बदलाव पर पढ़ी लिखी लड़की ने लडके से बात की तो उसका सीधा जवाब था “माँ जो कहेगी घर पर वही फैसला अंतिम होगा .”लड़की ने पूछा अगर तुम्हारी बहन के साथ ऐसा होता तो भी आप ऐसे व्यवहार करते .लडके ने फोन काट दिया .लड़की ने माँ से कहा कि वह ऐसे विचार के परिवार और ऐसे आर्थिक स्वतंत्र पर मानसिक परतंत्र लडके के साथ जीवन नहीं बिता पाएगी.एक सुशिक्षित सुसंस्कृत बेटी का यह फैसला उसे इतना दृढ बना गया कि उसने एक वर्ष तक बैंक के परीक्षा की तैयारी कर प्रोबेशनरी अफसर का पद पा लिया और उसी बैंक में कार्यरत एक सुशिक्षित सुसंस्कृत लडके से बगैर दान दहेज़ के वैवाहिक सूत्र में बंध कर सुखी जीवन गुज़ार रही है.

यह ज़रूर है कि बेटी दिवस मनाना एक दिन का जश्न नहीं है .पर यह भी सत्य है कि इस एक दिन हम विशेष तौर पर अपनी बेटियों के लिए सुरक्षित सुशिक्षित जीवन की दिशा में कार्यक्रम तय कर सकते हैं उन्हें उनकी महत्ता का एहसास दिल कर आत्मसम्मान आत्मविश्वास के साथ जीवन जीना सीखा सकते हैं.

एक दूसरी घटना बताती हूँ.एक शादी शुदा लड़की ससुराल में रहने के दौरान एक दिन डॉक्टर के पास चेक अप कराने जाती है और घर लौट कर नहीं आती .उसका अपहरण हो जाता है.घर पर सभी बहुत परेशान थे.चूँकि ससुराल पक्ष ही ऐसे में सबसे पहले शक के घेरे में रहता है अतः सब के शक की सुई सास ससुर और पति पर गई.जबकि वे अपनी इकलौती बहू के गायब होने से स्वयं बहुत परेशान थे.पूरे शहर में उसकी तस्वीर लगा कर गुमशुदा का इश्तहार लगाया गया .चूँकि नवरात्र के दिन चल रहे थे अतः दुर्गा माँ की आराधना घर पर चल रही थी .ठीक अष्टमी के दिन लड़की का फोन आया.हल्की आवाज़ में माँ कह कर फोन बंद हो गया .कुछ मिनट के बाद एस टी डी के मालिक ने फोन कर बताया एक लड़की यहां बेहोश गिरी है.आप सब तुरंत आइये .जहां से फोन आया वह शहर दूर था पर शहर के नज़दीक एक परिचित का घर था तुरंत उन्हें फोन किया गया .वे सपरिवार पुलिस को लेकर वहां पहुंचे .चूँकि लड़की बचपन से उन्हें पहचानती थी अतः पुलिस ने उनके साथ उन्हें जाने दिया .दो दिन बाद घर वाले(मायके और ससुराल दोनों पक्ष ) पहुंचे और जो बात सामने आई वह हैरान करने वाली थी.उस डॉक्टर के क्लीनिक से ही लड़कियां बेहोश करा कर मुम्बई भेज दी जाती थीं .रास्ते भर उनकी आँखों पर काली पट्टी बंधी होती थी. एक बंद कोठरी में उसे मारा जाता बहुत ही कम खाना दिया जाता ताकि वह टूट कर उनकी बात मान ले .वहां एक अन्य लड़की ने उसे ४०० रूपये देकर वहां से भागने में मदद की क्योंकि वह नहीं चाहती थी कि कोई और लड़की उसकी तरह दुःख सहे और इस प्रकार वह भागने में सफल हो पाई.बाद में पुलिस हिरासत में पूरा गैंग पकड़ा गया .यहां सबसे ज्यादा बहादुरी बेटी ने दिखाई और उसकी ससुराल वालों ने अपनी बहू को घर ला कर सभी को निवेदन किया कि इस घटना का ज़िक्र कभी भी लड़की के सामने कर कोई उसका दुःख नहीं बढ़ाएगा .आज इस घटना को सात वर्ष हो गए हैं .एक बेटे के साथ वह बेटी खुशी से ससुराल में रह कर नौकरी भी करती है.हालांकि उस दर्द को वह भुला तो नहीं पाती उसके चेहरे पर उस भय का साया कभी कभी आज भी देखा जा सकता है .पर उसकी सासु माँ ने उसे स्वीकार कर उसके सम्मान को बढ़ाया यह बात उसके दर्द को दूर करने के लिए काफी है.

PicsArt_1443347221406दोस्तों यह दोनों घटना मेरे अपने रिश्तेदार की बेटियों की है मैं उन्हें पहचानती हूँ और उनके ज़ज़्बे को सलाम करती हूँ.एक बेटी होने के नाते बेटियों के सही साहस पूर्ण परवरिश में यकीन करती हूँ.साथ ही यह भी चाहती हूँ कि बेटियों की परवरिश सुरक्षा और शिक्षा के लिए बात बात पर पुरुष वर्ग को कटघरे में खड़ा करना ही समाज की जिम्मेदारी न हो बल्कि समाज के स्त्री पुरुष दोनों मिल कर बेटियों की उत्तम यथोचित परवरिश ,शिक्षा और सुरक्षा निश्चित करें.बेटियां बहुत प्यारी होती हैं..उन्हें .फूल की तरह खिलने ,तितलियों की तरह उड़ने ,चिड़ियों की तरह चहचहाने ,हिरणों की तरह कुलांचे भरने का पूरा अधिकार है. उनकी सुरक्षा एक सभ्य और जिम्मेदार समाज का अहम कर्तव्य है.

सभी बेटियों को यमुना का बहुत सारा प्यार और आशीर्वाद .

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