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सब पढ़ें…सब बढ़ें…सब गढ़ें. (विश्व साक्षरता दिवस )

V2...Value and Vision
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PicsArt_1441538912907“किसी भी भाषा को संपूर्ण बोध और समझ के साथ लिखना और पढ़ना ही साक्षरता है ”

गांधी जी के अनुसार “साक्षरता ना आदि है न अंत .यह तो अनेक साधनों का एक साधन है जिसके द्वारा मनुष्य को शिक्षित किया जा सकता

है .साक्षरता स्वयं शिक्षा नहीं है .”

UNESCO के द्वारा नवम्बर  17,1965  को इस दिवस को विश्व व्यापी स्तर पर मनाने की घोषणा हुई और पहला साक्षरता दिवस 8 सितम्बर 1966 को मनाया गया .साक्षरता को वृहद ज्ञान ,कौशल मूल्यों के ज्ञानार्जन का सशक्त माध्यम मानते हुए वर्ष 2015  के लिए‘ LITERACY AND SUSTAINABLE SOCIETIES का थीम रखा गया है.UNESCO  ,DIRECTOR GENERAL    ने कहा…

“New technologies including mobile telephones also offer fresh opportunities for literacy for all.we must invest more and I appeal to all members states and all our partners to redouble our efforts political and financial to ensure that literacy is full recognized as one of the most powerful accelerators of SUSTAINABLE DEVELOPMENT the future states with the ALPHABET .”

साक्षरता और शिक्षा में फर्क है शिक्षित होने के लिए किसी विशेष प्रयास की ज़रुरत नहीं होती है यह एक स्वतः प्रक्रिया है .मनुष्य प्रकृति ,वातावरण ,घर ,परिवार समाज से सहज रूप से ही सीखता जाता है और सामाजिक ,सांस्कृतिक ,आर्थिक,रूप से शिक्षित होता जाता है.जितना ग्राही मस्तिष्क होगा मनुष्य उतना ही शिक्षित होगा .हाँ , सुशिक्षित होने के लिए इस सहज ज्ञान में संस्कार और परिष्करण एक अनिवार्य शर्त है .शिक्षा जीवन पर्यन्त चलने वाली प्रक्रिया है जो मानव जीवन को बेहतर बनाने का सर्वाधिक महत्वपूर्ण साधन है.अपनी समस्याओं का समाधान खोजना अपने अधिकारों और कर्ताओं का बोध रखना अपने वातावरण से सामंजस्य स्थापित कर प्राकृतिक परिस्थितियों का जिसमें मनुष्य रहता है सर्वोत्तम उपयोग करना ही शिक्षा है.

साक्षरता सहज स्वतः प्रक्रिया नहीं बल्कि एक प्रयासरत प्रक्रिया है .इसके लिए प्रत्यक्ष रूप से सीखने और सिखाने वाले का संसाधनों के साथ उपलब्ध होना ज़रूरी हो जाता है.आड़ी लाइन,  तिरछी लाइन, गोल आकृति बनाने के लिए और फिर उन आकृतियों की समझ और बोध करना यह एक अभ्यास है. और यही अभ्यास ज्ञान के अनंत सागर में स्वयं ही डुबकी लगाने की शक्ति क्षमता और दिशा देता है.मुझे याद है मुझे अपनी बिटिया को  vertical line ,horizontal line ,slant line ,round समझाने में जिस धैर्य की ज़रुरत पडी उतनी उसकी सातवीं और आगे की कक्षा में कभी ना पडी .उसे माचिस की तीलियों से या छोटी छोटी लकड़ियों से खेल खेल में A B C D …Z  और क ख ग .. .ह रंगीन ऊन या मोटे धागे से सीखाती थी.

सब पढ़ें सब बढ़ें के आगे सब गढ़ें जोड़ना होगा ताकि साक्षर अपने जैसे और कईयों को गढ़ सके .


निरक्षरता एक सामाजिक कलंक है यह व्यक्ति ,परिवार समाज के विकास में बाधक है..जिस दिन पवित्र मन से देश का प्रत्येक साक्षर व्यक्ति एक निरक्षर को साक्षर बनाने के लक्ष्य को स्वीकार कर ले उसके ठीक तीसरे महीने भारत में शत प्रतिशत साक्षरता हो जाएगी .
साक्षरता sustainable  समाज के लिए बहुत ज़रूरी है .महान शाषक अकबर शिक्षित थे परन्तु साक्षर नहीं थे.उनका पुस्तकालय बहुत विशाल था जिसमें विभिन्न ज्ञान विज्ञान की पुस्तकें रहती जिन्हे वे विद्वानों से पढवा कर सुनते समझते और गुनते थे .पर मैं सोचती हूँ अगर वे साक्षर भी होते तो बाबर और जहांगीर की तरह आत्मकथा लिख पाते और ऐसे महान सम्राट की आत्मकथा प्रमाणिकता के साथ सुशाषण का नया इतिहास रच देती.शिक्षित होने के लिए साक्षरता उन्होंने आवश्यक नहीं माना होगा पर अगर उनकी शिक्षा साक्षरता के साथ कितनी सम्प्रेषणीय हो जाती और मध्यकालीन इतिहास कितना सम्पन्न हो जाता …आधुनिक युग को कितना समृद्ध कर देता ….इस बात का किंचित भी आभास वे नहीं कर सके थे.

autoप्राचीन मध्यकालीन तमाम वीरांगनाएँ या प्रभावशाली व्यक्तित्व की शिक्षित नारियों में से किसी की आत्मकथा उपलब्ध नहीं है .इसके पीछे दो ही वजहें हो सकती हैं या तो वे साक्षर नहीं थीं या फिर तत्कालीन समय में उन्हें आत्मकथा लिखने की इज़ाज़त नहीं थी.पर वर्त्तमान युग इस बात का खामियाज़ा भुगत रहा है .आज वे स्त्रियां आत्मकथा के रूप में और भी प्रमाणिकता के साथ वर्त्तमान समाज की महिलाओं का मार्गदर्शन कर पातीं इतिहास गवाह है कि स्त्रियों के चरित्र की गाथा किसी स्त्री ने नहीं बल्कि पुरुषों ने ही लिखीं फिर चाहे वह रामायण हो महाभारत वेद पुराण या फिर भगवद गीता हो.अगर किसी स्त्री ने इन चरित्रों को आत्मकथा या जीवनी संस्मरण के रूप में लिखा होता तो संभव था कि इन स्त्रियों की व्याख्या इतिहास में तनिक अलग होती.शिक्षित के साथ साक्षर होना सोने में सुहागा की कहावत चरितार्थ करता है.
मैं कभी कभी यह भी सोचती हूँ आज हमारी माता या सासु माँ की पीढ़ी की स्त्रियां साक्षर होती तो अनुभव के भण्डार लिपिबद्ध होते .पीढ़ी दर पीढ़ी मौखिक और व्यवहारिक ज़िंदगी का हिस्सा बन कर कुछ ज्ञान तो प्रत्येक पीढ़ी के साथ अवश्य ही छोट जाते हैं .सच है…..

‘अक्षर ज्ञान ‘ ये दो शब्द हैं एक मज़बूत यन्त्र

इसमें समाया अ से ज्ञ (तो z )तक का अद्भुत मंत्र .”

अगर व्यक्ति साक्षर नहीं है तो उसे कोई कहीं भी धोखा दे सकता है.किसी भी गलत दस्तावेज़ पर अंगूठा लगवा सकता है .आज मोबाइल युग में तो साक्षरता परम अनिवार्य हो गया है .सन्देश स्वयं टाइप करना स्वयं को ज़रुरत के हिसाब से औरों से जोड़े रखना ज़रूरी हो गया है.मैं जब भी अपनी माँ के पास जाती हूँ वे एक ही बात कहती हैं ,” बिटिया ,हम भी पढ़ी लिखी होइत तो झट से तोहरे लोगन के पास आये जाइत “मैं कहती हूँ “माँ पर आप तो बहुत अनुभव लिए हो” वे कहती हैं “नाहीं,थोड़ी पढ़ी लिखी होइत तो झट से टिकट कटाइत जब ट्रैन तोहरे वाले स्टेशन में रूकत हम स्टेशन के नाम पढ़ के उतर जाइत केऊ से पूछे के ज़रुरत ही नाहीं पडत ….बोला बिटिया केऊ गलत बताये दे और हम गलत जगह उतर गए तो मुश्किल हो जाई ना !!! पढ़ी लिखी होए से दुकानों के नाम पढ़ सकित है.”

माँ सही कहती हैं….

गंवाया जिसने अक्षर ज्ञान का मौका

खाता ही रहेगा वह उम्र भर का धोखा

सच है दोस्तों ये निरक्षर होने से जुड़े दुःख की इबारतें हैं जिसे दुःख कभी पढ़ नहीं सकता .एक बार पूछा था ,”माँ, आप क्यों नहीं पढने गईं ?”इन्होने बताया था, ” गई थी पर पहले दिन ही मास्टर साहब ने छड़ी से ऐसा मारा कि गदोरी (हथेली )लाल हो गई थी और लिखना मुश्किल हो गया था बस माँ के पिता और भाइयों से उनकी वह शारीरिक पीड़ा देखी ना गई और वह एक घटना माँ के लिए उम्र भर के लिए मानसिक पीड़ा बन कर रह गई .उनकी शादी के बाद घर के कामों ने उन्हें व्यस्त रखा …वे जाँता (चक्की) चलाती …धान कूटतीं और दिन कब निकल जाता पता ही नहीं चलता था .शायद इसीलिये उन्होंने हम बहनों को शिक्षा के क्षेत्र में भाइयों के समकक्ष ही रखा . माँ को हमने उनका नाम और कुछ वर्ण पढ़ना लिखना सीखा दिया था पर वे ऐसी स्थिति में नहीं थीं कि सब कुछ सरलता से पढ़ और समझ सकतीं.उनकी कई लोकोक्ति गीत को मैंने अपने कुछ ब्लॉग्स में लिपिबद्ध किया है.

एक परम ज्ञानी अनुभवी शिक्षित व्यक्ति की छटपटाहट तब बढ़ जाती है जब वह लिखित अभिव्यक्ति नहीं कर पाता है.जब भी सर्व शिक्षा अभियान के लोगो की पेंसिल को देखती हूँ एक छोर पर स्वयं को और दूसरे छोर पर माँ को पाती हूँ . उस दूरी को ना पाट सकने का अफ़सोस आज भी होता है. हाँ दावे के साथ आज भी कह सकती हूँ माँ मुझसे ज्यादा शिक्षित और अनुभवी हैं ……. “काश वे साक्षर भी होतीं !!! ” आज उनसे संचार की नई तकनीक (व्हाटस ऍप ,मोबाइल सन्देश ) के माध्यम से जुड़ना कितना आसान हो जाता .

साक्षर समाज हो जब पहली शर्त

समस्या समाधान हो पर्त दर पर्त .

1947   में भारत देश में साक्षरता दर 12% थी जो सामाजिक ,आर्थिक वैश्विक परिवर्तन के कारण 2011 में 74.04% हो गई .जिसमें पुरूष साक्षरता 82.14 % और स्त्री साक्षरता 65.46 % है.केरल एक ऐसा राज्य जहां शत प्रतिशत साक्षरता है इसके बाद गोवा,त्रिपुरा,मिजोरम हिमाचल महाराष्ट्र सिक्किम का नाम आता है.युवा साक्षरता से प्रौढ़ साक्षरता 9 %अधिक है.बिहार में साक्षरता दर निम्नतम है. निरक्षरों को ज्ञान के अल्प प्रकाश में लाने का कार्य अति विशाल है.5 मई  1988  में भारत सरकार ने राष्ट्रीय साक्षरता मिशन प्रारम्भ किया.15  से 35  आयु वर्ग के सभी निरक्षरों को साक्षर बनाने का लक्ष्य रखा गया … जिसके अंतर्गत सायंकालीन शिक्षा ( साक्षरता और गणित की कुशलता बढ़ाने के लिए) पुस्तकालय की व्यवस्था,वाचनालय चर्चा मंडल,प्रशिक्षण कार्यक्रम मनोरंजन और सांस्कृतिक कार्यक्रम तथा संचार केंरों और साधनों का लाभ उठाने जैसे कदम को सम्मिलित किया गया.

आज भी शत प्रतिशत साक्षरता के लक्ष्य से हम कोसों दूर हैं .जन जन की जागरूकता साक्षरता का कारण भी है परिणाम भी है.

अगर देश को है प्रगति की चाह
हर कदम बढे साक्षरता की राह .
विकास का होगा सुगम रास्ता
जन जन में जब फैले साक्षरता
सुनहरे भारत का सपना
ज़रूरी है सब का पढ़ना

सब पढ़ें …सब बढ़ें …..सब गढ़ें .

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