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मैं सकुशल घर वापस आना चाहती थी #SaveKidsLife

V2...Value and Vision
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एक पाती माँ के नाम
प्यारी माँ
मैं तुम्हारी गोद… पिता की ऊँगली ……छोड़ पञ्च तत्त्व में विलीन हो ईश्वर की गोद में समा गई हूँ .माँ ,मैं सकुशल सुरक्षित घर वापस आना चाहती थी .ऐसा क्या हुआ कि मेरे माथे पर तुम्हारे लगाए काजल का टीका,तुम्हारे लब से निकली दुआ ,पिता के कथन ‘अपना ख्याल रखना ‘सब बेअसर हो गए …माँ मैं अपना ख्याल नहीं रख पाई .तुम निष्ठुर तो नहीं पर इतनी बेपरवाह कैसे हो गई कि मुझे सड़क पर उस ऑटो में रोज बिठा कर स्कूल जाने को छोड़ देती थी जिस पर ज़रुरत से ज्यादा बच्चे बैठे होते थे. उसमें कोई केयर टेकर भी नहीं होता था .तुमने कभी भी चालक का पता नहीं लिया .पिता ने कभी उसका license तक चेक नहीं करवाया .जब-जब मैंने स्कूल से घर वापस आकर ऑटो में बैठे बच्चों की शरारतों का ज़िक्र किया तुम हंसती मुस्कराती कहती रहती थी …यही बचपन है .माँ बचपन की मासूम शरारत को तुमने कभी भी मेरी और अन्य बच्चों की सुरक्षा से जोड़ने की संवेदनशीलता क्यों नहीं दिखाई ?तुम कितनी ममतामयी और विवेकपूर्ण हो…. पर मुझे स्कूल भेजना तुम्हारे लिए महज एक काम क्यों था….. जिम्मेदारी क्यों नहीं थी ? बहुत याद है मुझे जब तुमने स्कूल बस जिसमें दूसरे बच्चे जाते थे ..उन बच्चों को हाथ हिला कर बाय बाय किया था .पर तुम्हारा ध्यान तब भी इस बात पर नहीं गया कि उस बस की खिड़कियों पर लोहे की जालियां नहीं लगी थीं बच्चे खिड़कियों से ना केवल अपना हाथ बल्कि अपना सिर भी बाहर निकाल रहे थे .बस के अंदर बजते फ़िल्मी संगीत और चालक के मोबाइल पर बात करते हुए बस चलने को भी तुमने कभी गंभीरता से नहीं लिया था …तुमने बस इतना कहा था ‘ मेरी बिटिया तो ऑटो में जाएगी ‘शायद बस के आर्थिक बजट को तुम ऑटो से ज्यादा आंक रही थी .तुमने एक दिन यह भी देखा था कि एक बच्चे को बस के खलासी ने उतरने में कोई मदद नहीं की थी और वह ठीक से उतर नहीं पाया था …इसके पहले ही चालक ने बस चला दिया था …उस दिन वह बच्चा बाल बाल बच गया था ….पर तुमने स्कूल प्रबंधन या फिर पुलिस को इसकी सूचना क्यों नहीं दी थी ?? माँ क्या तुम भी स्वार्थी हो गई थी ‘क्या फर्क पड़ता है ‘की भावना से प्रभावित थी क्योंकि वह बच्चा तुम्हारी संतान नहीं थी…. पर वह किसी माँ की तो संतान थी ...शायद मेरे लिए भी किसी ने ऐसा (क्या फर्क पड़ता है) सोचा होगा तभी आज मैं वक़्त से पूर्व ही पञ्च तत्व में विलीन हो गई हूँ. अक्सर सोचती हूँ पिता के साथ मोटर बाइक पर जाने पर तुम मुझे हेलमेट क्यों नहीं पहनाती थी ….कार में बैठ कर मैं बगैर सीट बांधे भाई के साथ पिछली सीट पर मस्ती करती थी पर तुम पिता के बगल में बैठी किसी भी बहस में उलझी होती या आँखें बंद कर संगीत सुन रही होती थी .पिता कार चलाते हुए मोबाइल पर भी बात करते थे पर तुमने उन्हें कभी नहीं रोका .पिता भी स्वयं सुरक्षा के इन नियमों से बेपरवाह क्यों रहते थे.?? मैं जब तीनचार साल की थी तुमने मुझे कभी अपने बाईं तरफ लेकर चलने की आदत नहीं डाली ..तुम्हारे दाईं तरफ चलती मैं हमेशा डरती थी कहीं कोई गाड़ी मुझे हिट ना कर दे …. मुझे साइकिल चलाने का बहुत शौक था ..पर तुमने मुझे कभी भी ऐसी सुरक्षा बेल्ट नहीं पहनाई जिससे मैं किसी भी वहां के चालक को आसानी से दिखाई दे जाऊं और वे अनजाने ही मुझे ठोकर ना मार दें.और मैंने तुम्हारे ममता की गलत पराकाष्ठा तो तब देखी थी जब भाई के पंद्रहवीं साल गिरह पर तुमने पिता से ज़िद कर उसे स्कूटी दिला दी थी जबकि यह क़ानून के सर्वथा विरूद्ध है …यह तुम्हारा किस तरह का प्यार था माँ ??? मैं आज भी यह समझ नहीं पाई हूँ. …जब तेजी से भागते स्कूल बस को ऑटो ने ओवरटेक करने की कोशिश की थी मैं बहुत डर गई थी तुम्हे जोर से याद किया था …तुम्हारी पहनाई ताबीज़ को मुट्ठियों में भींच लिया था …माथे पर लगे टीके को ऑटो के साइड मिर्रर में देखने की कोशिश की थी …सब सही सलामत था फिर भी मैं सही सलामत क्यों ना बची ????? अगर किसी भी माँ से पूछा जाए कि ‘सबसे प्रिय क्या है ‘तो वह कह उठती है ‘मेरी संतान ‘पर माँ अक्सर ही बच्चों की सुरक्षा को लेकर क्यों लापरवाह हो जाती हैं?जबकि वे हर रोज बड़े बड़े छड़,सामान ढोते वाहन ,सड़क के किनारे खड़े असुरक्षित बच्चे, समय से स्कूल पहुँचने की ज़द्दोज़हद में तनाव युक्त चेहरे देखती हैं .. स्कूल से घर …घर से स्कूल हर रोज़ की यात्रा में डर समाया होता है. माँ ही क्यों प्रत्येक व्यक्ति ,समाज ,सरकार बच्चों को पसंद करते हैं ,उनके लिए योजनाएं बनाते हैं उनमें अपना अपना भविष्य देखते हैं ,उनके सबसे बड़े हितैषी होते हैं …पर फिर भी विसंगति यह कि उस वर्त्तमान और भविष्य की सुरक्षा के प्रति संवेदनशील नहीं हो पाते हैं .ऐसा क्यों है माँ ??तुम अक्सर कहती थी “बच्चे होते घर का गहना “मैं उसमें एक पंक्ति जोड़ना चाहती हूँ “अधिकार उनका सुरक्षित रहना
मेरी प्यारी माँ ,मैं जानती हूँ…कुछ रूटीन वर्क बेहद दुखद हो जाते हैं पर इन्हे दुखद होने से बचाया जा सकता है . मेरे सदा के लिए चले जाने के बाद तुम इन सारी बातों का मन ही मन विश्लेषण कर रही होगी ….तुम्हारी आँखों की अश्रु धाराएं प्रत्येक माँ को भिगो रही होंगी पर सोचती हूँ काश !!! कोई माँ तुम्हारी तरह और दुःख ना उठाये असमय ही उनके नन्हे मुन्नें उनसे दूर ना हों ..हर बच्चा मेरी तरह ही सोचता है .पर उम्र में छोटा होने की वज़ह से कह नहीं पाता कहीं यह उसकी धृष्टता ना मान लिया जाए .सड़क पर इस लीडर किलर (असुरक्षित यात्रा ,खराब सड़क,नशे में मदहोश चालक , तेज गति,)से रोज़ रूबरू होता है ….कभी बच जाता है …कभी मेरी तरह मारा जाता है.

बच्चों ने है ली जिम्मेदारी
तोड़ेंगे अब बड़ों की खुमारी
सड़क सुरक्षा करें मनोहर
जो कहते हमें भावी धरोहर .

मेरी एक विनती है कि तुम हिम्मत रख कर मेरी यह पाती सभी अभिभावकों के लिए पढ़ दो . यही मेरे प्रति तुम्हारी और पिता की सबसे अनमोल श्रद्धांजलि होगी .’अपना ख्याल रखना माँ”
तुम्हारी बिटिया
खुशी
रक्त की नहीं होती कोई जाति
होता नहीं कोई इसका धर्म
अपना कोई घायल हो तडपे
तभी समझ आता यह मर्म

दोस्तों यह ईमानदार ,सच और बेहद अर्थपूर्ण पाती पढ़कर आप सब की आँखें भीग गई होंगी पर यह सच है कि सड़क दुर्घटना के सबसे ज्यादा शिकार बच्चे और युवक ही होते हैं .पाती में लिखी एक एक बात सच है.हम सब बच्चों की सुरक्षा के मामले में बहुत ही लापरवाह होते हैं .हर चार मिनट में सड़क दुर्घटना की वज़ह से एक बच्चा समयपूर्व दुनिया से विदा लेने को मज़बूर कर दिया जाता है.प्रत्येक वर्ष 186,000 बच्चे (18 वर्ष से नीचे )रोड दुर्घटना में मारे जाते हैं .2010 में मारे जाने वालों में 6% साइकिल सवार बच्चे थे…14% बाइक सवार …पदयात्री बच्चे 38%…शेष कार,अन्य वाहनों में सवार बच्चे थे.इसमें भी 95% बच्चे निम्न और मध्य आय के परिवारों से सम्बंधित बच्चे होते हैं.

कई बार सड़क पर साइकिल के पीछे करियर पर लापरवाही से बिठाये हुए असुरक्षित नन्हे बच्चों और बाइक पर अपने नन्हे हाथों से पिता या किसी बड़े की कमर को असफलता पूर्वक घेरे बैठे , कभी बाइक की  पेट्रोल टंकी पर नन्हे हाथ रख बैठे बच्चों ,दोपहिया वाहन पर बिना हेलमेट पहने माता की गोद में बैठे बच्चों  , कार में बगैर सीट बेल्ट बांधे और कभी कभी तो पिता (चालक) के गोद या उसके बगल की सीट पर माँ की गोद में बैठे अठखेली करते , स्कूल बसों में बड़े बड़े बस्तों को पीठ पर लादे आधी सीट पर आगे की ओर झुके बैठे बच्चों को देख कर मन बहुत भयभीत होता है …कितने असुरक्षित ढंग से अपनों द्वारा ही बच्चे वाहनों में बिठाये जाते हैं. एक वाक्या याद आ रहा है.बात रायपुर की है.एक पिता ने अपने तीन वर्ष के बच्चे को वैगनर कार में कुछ खिलौने देकर बिठा दिया था ताकि वह बहल जाए और उन्हें अपने साथी से ज़रूरी बात करने के बीच व्यवधान ना डाले .पर वे बातचीत में इतने व्यस्त हो गए कि कार को लॉक कर साथी के साथ पैदल ही अपने वर्कशॉप तक चले गए .चूँकि बच्चा खेलते-खेलते सो गया था अतः उन्हें उसका ध्यान ही नहीं रहा .जब उनकी धर्मपत्नी ने फ़ोन कर बच्चे के बारे में पूछा तब उन्हें ध्यान आया कि उन्होंने बच्चे को गाड़ी के अंदर बंद कर दिया है.उन्होंने यह बात पत्नी को बताई पर तब तक बहुत देर हो गई थी .बच्चे की मृत्यु हो चुकी थी.
अक्सर ऐसा होता है कि बच्चे को अपना सब कुछ मानते जानते हुए भी हम उसकी सुरक्षा के लिए बहुत बेपरवाह हो जाते हैं.बातें बहुत छोटी-छोटी हैं पर परिणाम बहुत भयंकर हैं.हम व्यस्कों की ज़रा सी लापरवाही बच्चों को असमय मौत की राह पर धकेल देती है.

john F Kennedy ने कहा था “Our most basic common links is that we all inhabit this planet .we all breathe the same air .and we all cherish our children’s future .” “सड़क पर दुर्घटनाओं की वज़ह से बच्चों के असमय मौत को मानव जनित महामारी करार दिया गया है जिसका वैक्सीन सुरक्षा नियमों का पालन ,सुरक्षित फुटपाथ ,गति नियंत्रण,सुरक्षित क्रासिंग और वेल डिजाइनेड एजुकेशन प्रोग्राम और सजग संवेदनशील जीवन शैली के रूप में पहले से मौजूद है .ज़रुरत है ‘be safe and let be safe ‘ को शिद्दत से समझ कर अमल में लाया जाए .2011-2021 Global Plan for the UN  Decade of Action for Road Safety  घोसित किया गया है . १७-१९ नवंबर 2015  को सड़क सुरक्षा के मुद्दे को लेकर ब्राज़ील में विश्व भर की कई सरकारें बैठक करेंगी जिसमें बच्चों से सम्बंधित इस दुःख को आने से पहले ही ख़त्म किया जा सके .इस ‘ #SaveKidsLlife ‘ अभियान में बच्चों को विशेष रूप से जोड़ा जा रहा है .जो UN Global Road Safety Collaboration के द्वारा cordinate किया जा रहा है .बच्चे अपने साथ होने वाली घटनाओं के प्रति बेहद संवेदनशील होते हैं.इसके लिए सिग्नेचर कैंपेन की शुरआत की गई है.इसके लिए WHO ने set of infographics के द्वारा दस सूत्री सुरक्षा सूची बनाई गई है…जिसमें वाहनों धीमी गति ,नशे में वाहन चलाने पर कठोरता से रोक,साइकिल मोटर बाइक चलाने पर हेलमेट का प्रयोग ,चार पहिया वाहनों में सीट बेल्ट बाँध कर बैठने की अनिवार्यता,सड़क पर साइकिलसवार या पैदल चलने पर आसानी से दिख जाने वाली फ्लूरोसेंट बेल्ट का प्रयोग ,सड़क में सुधार ,वाहन की डिज़ाइन ,चालक के लाइसेंस की जांच ,दुर्घटना होने पर उचित तथा त्वरित इलाज़ ,सड़क पर बच्चों की सुरक्षा के प्रति उचित पर्यवेक्षण की नीति पर जोर दिया गया है. स्वर्गीय नेल्सन मंडेला की पुत्री ज़ोलेका मंडेला ने अपनी 13 वर्षीया बिटिया ज़ेनानी को सड़क दुर्घटना में उस वक़्त खो दिया था जब ज़ेनानी २०१० फीफा विश्व कप के दौरान हुए एक कॉन्सर्ट से वापस आ रही थी .उन्होंने अपने दुःख को एक एक्शन में बदल दिया और सड़क पर बच्चों की सुरक्षा के अभियान से जुड़ गईं Huffington पोस्ट में ‘ One Story One World ‘ के नाम से पोस्ट लिखा है…….

.When I visited the Sivile Primary School in South Africa’s Western Cape, I was struck by a feeling. It was a feeling of the vulnerability of the children all around me, who are put at huge risk every single day. It is a threat and a risk they face for what should be a simple journey. Yet, they are placed in harm’s way just for trying to get to their school to gain an education.

बच्चों की सुरक्षा हमारी जिम्मेदारी है .ज़रुरत है ‘क्या फर्क पड़ता है ‘जैसे गैरजिम्मेदाराना प्रवृत्ति को छोड़ा जाए और ‘फर्क पड़ता है ‘को अपनाया जाए .हमारी एक नैनो सेकंड की सावधानी किसी बच्चे को सालों साल की उम्र/आयु का तोहफा दे सकती है.

चलो सडकों को सुरक्षित बनाएं
नागरिक होने का फ़र्ज़ निभाएं

Give  Your children very  Careful ,Joyful &  Safe life Everywhere Everytime Everyway .

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