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रामधारी सिंह दिनकर जी की कविता ‘शक्ति और सौंदर्य ‘ की पंक्तियाँ याद आ रही हैं …
तुम रजनी के चाँद बनोगे या दिन के मार्तण्ड प्रखर
एक बात है मुझे पूछनी , फूल बनोगे या पत्थर
तेल फुलेल क्रीम कंघी से नकली रूप बनाओगे
या असली सौंदर्य लहू का आनन पर चमकाओगे
पुष्ट देह, बलवान भुजाएं , रूखा चेहरा , लाल मगर
यह लोगे या लोगे पिचके गाल, सँवारी मांग सुघर
जीवन का वन नहीं सजा जाता कागज़ के फूलों से
अच्छा है दो पात जो जीवित बलवान बबूलों से .
ये पंक्तियाँ प्राकृतिक जीवन शैली और इसकी परिणति के रूप में सुन्दर स्वस्थ शरीर के महत्व को बताती है साथ ही कृत्रिम जीवन को अस्वीकार करने को प्रेरित भी करती हैं.
पर जिस तरह से कुछ लोगों ने इस के प्रथम आयोजन को लेकर विरोध के बिगुल बजाने शुरू कर दिए हैं वे भूल रहे हैं कि योग जीवन जीने की शक्ति से जुड़ा है यह किसी धर्म विशेष से जुडी कोई भक्ति नहीं है .यह जीवन को समझने और जीने का मर्म है ;कोई धर्म नहीं है.
मैं प्रतिदिन योगासन करती हूँ यह मुझे पिता से वंशानुगत आदत के रूप में प्राप्त हुआ है.शारीरिक और मानसिक परेशानियों को दूर रखने के प्रतिरक्षात्मक और प्रतिरोधात्मक रूप में इसका अनुभव करती हूँ.मैंने ताज़ा समाचारों में जब यह पढ़ा कि कुछ इस्लामी विद्वानों के अनुसार यदि योगासन सूर्य की ओर देखे बिना किया जाए तो इसमें धार्मिक अंश नहीं रहेगा और इसे अपनाने में भी कोई दुविधा नहीं रहेगी तब मैं यह सोचने पर विवश हूँ कि जो सूर्य धरती पर सभी प्राणी .पादप के लिए ऊर्जा स्त्रोत है उसे धर्म से जोड़ देना जबरन विरोध का हास्यास्पद उदाहरण नहीं तो और क्या है.शरीर की प्राकृतिक रोग प्रतिरोधक शक्ति को प्रबल बनाने के लिए सूर्य की प्रथम रोशनी का स्नान ज़रूरी है .सूर्य नमस्कार पृथ्वी पर ऊर्जा के स्त्रोत अर्थात जीवन शक्ति के प्रति हमारी कृतज्ञता है जिसका किसी धर्म विशेष से कोई सरोकार नहीं है. दरअसल सूर्य नमस्कार योगासन नहीं है. जो व्यक्ति गृहस्थ जीवन व्यतीत करते हुए आसनों या ध्यान के लिए वक़्त नहीं निकाल पाते या किसी निर्बलता ,विकार के कारण कठिन योग साधना नहीं कर पाते उनके लिए सूर्य नमस्कार की पद्धति है.इसकी बारह अवस्थाएं है जो करने में आसान भी हैं और मन और तन स्वस्थ ,शांत और प्रसन्न कर सहजता से मानसिक और शारीरिक सबलता देती है .इसे करने के दौरान जपे जाने वाले मन्त्र से विरोध भी बेजा ही है .प्रथम अवस्था में ओम मित्राय नमः ,दूसरी में ओम रवये नमः ,तीसरी में ओम सूर्याय नमः,चौथी में ओम मानव नमः , पांचवी में ओम खगाय नमः , छठी में ओम पुष्णे नमः , सातवीं में ओम हिरण्य गर्भाय नमः , आठवीं में ओम मरीचये नमः , नौवीं में ओम आदिव्याय नमः , दसवीं में ओम सुविये नमः , ग्यारहवीं में ओम अर्काय नमः और अंतिम बारहवीं अवस्था में ओम भाष्कराय नमः मन्त्रों के जाप में असीम ऊर्जा के प्रतीक सूर्य के प्रति कृतज्ञता है जो इस धरती पर जन्म लेने वाले प्रत्येक प्राणी को व्यक्त करना चाहिए .मूक पशु पक्षी अपनी भाषा में रम्भाकर ,चहचहा कर ,पेड़ -पौधे फूलों को खिला कर झूम कर इस ऊर्जा के प्रति कृतज्ञ हो उठते हैं …सूर्य उगते ही कमलिनी अपने दल खोल देती है …कमल खिल उठते हैं फिर हम मानव जिन्हे बोधगम्य वाक्शक्ति की अनमोल नेमत मिली है वे सूर्य नमस्कार और जाप से गुरेज़ क्यों और कैसे कर सकते हैं.!!!!!!!!!!!!
आज आधुनिक शैली ने शहरों में महंगे जिमखाने की स्थापना कर दी है मुझे इससे कोई विरोध नहीं पर योगासन एक ऐसा व्यायाम है जिसे किसी भी आयु वर्ग के लोग बिना किसी उपकरण के साफ़ ताज़ी हवा वाले किसी भी स्थान में कर सकते हैं चाहे वह घर का कोना हो ,बाहर मैदान या उद्यान …‘.हल्दी लगे ना फिटकरी ,रंग चोखा आये ‘ की कहावत सही मायनों में योगासन सत्य कर देता है.सच है ‘ एक तंदरुस्ती हज़ार नियामत’ के मह्त्व को जो लोग योग से जोड़ कर देखते हैं वे प्रसन्न चित्त और स्वस्थ तन के साथ सकारात्मकता से भरे होते हैं .ऐसा नहीं कि वे बीमार नहीं पड़ते या समस्याओं से परेशान नहीं होते पर वे जल्द ही मानसिक और शारीरिक स्वास्थय लाभ लेने में सक्षम हो जाते हैं.वर्त्तमान युग में पश्चिम देशों के देशों ने भी इस तथ्य को स्वीकार किया है की जीवन शक्ति को असाधारण रूप से विकसित करने में योगासन और साथ ही प्राणायाम जैसी श्वसन क्रिया एक उत्तम विधि है.
प्रथम अंग ‘यम ‘पांच नियम …अहिंसा,सत्य,अस्तेय,ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह से जुड़ा है जो नैतिक जीवन के लिए सार्वभौमिक रूप से स्वीकार्य होने ही चाहियें . दूसरा अंग नियम है जिसके अंतर्गत …शौच,संतोष, तप ,स्वाध्याय , ईश्वर – प्राणिधान की बात है इसकी उपयोगिता और अपरिहार्यता से कौन इंकार कर सकता है.तीसरा अंग आसन से जुड़ा है…जो शरीर को लचीला ,सुन्दर स्वस्थ और सुगठित बनाने में मदद करते हैं.चौथा अंग प्राणायाम है जिसका शाब्दिक अर्थ है’जीवनी शक्ति का नियंत्रण ‘ श्वासः ही जीवन शक्ति है और श्वास लेने और छोड़ने की प्रक्रिया को ही प्राणायाम कहते हैं .पांचवा अंग प्रत्याहार है अर्थात अपनी इन्द्रियों को बाह्य विषयों से मुक्त कर अंतर्मुखी कर देना .यह जीवन के भाग दौड़ उहापोह से शान्ति की ओर ले जाने के लिए अत्यंत ज़रूरी है.छठा अंग धारणा है …निर्मल मन को अपने इष्ट या आराध्य में रमा देना ही धारणा है.यह चित्त के केन्द्रीयकरण एकाग्रता के लिए ज़रूरी है और इसका किसी धर्म विशेष से कोई लेना देना नहीं क्योंकि आराध्य किसी भी सम्प्रदाय के लोग की स्वेच्छा पर निर्भर है.यह ब्रह्माण्ड की रहस्यमयी शक्ति और स्वस्तित्व के आभास का एहसास है.सातवां अंग ध्यान है जिससे मन के सत्व गुणों को प्रबल और राजस और तामस वृत्तियों को दूर करने का प्रयास किया जाता है.अंतिम और आठवां अंग समाधि है सांसारिक क्रियाकलापों को निभाते हुए भी उसकी असारता का बोध हमें समाधिस्थ रखता है .हम धरती पर कुछ वर्षों के लिए किसी महान प्रयोजन के लिए हैं उस प्रयोजन के पूरा होने के बाद किसी अनदेखी दुनिया में जाना हर जीवन की नियति है इसे समझना ज़रूरी है.धारणा, ध्यान और समाधि ही जीवन में संयम लाते हैं.
पशु भी उठते ही अपने शरीर को खिंचाव देते हैं ;बिल्ली सोकर उठते ही चारों पैर पर खड़ी होकर बीच का पेट उठकर अपने पीछे की और खींचती है . दो चार सेकंड ऐसा करने के बाद अपना काम करने लगती है.कुत्ता पिछले और अगले पांवों के सहारे शरीर को खींचता है.
अतः योग की शक्ति को भक्ति विशेष से ना जोड़ा जाए .यह धर्म से जुडी पूजा पाठ की रस्म नहीं नहीं बल्कि स्वस्थ तन मन वाले सवा करोड़ भारतीयों के प्रिय भारत देश की सशक्त पहचान है . आज मोदी जी के प्रयास से इस भारतीय विरासत को अंतराष्ट्रीय पहचान मिली है.
स्वास्थ्य का संभव होवे भोग
क्योंकि योग से दूर होवे रोग
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