V2...Value and Vision
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जीती जागती …दौड़ती भागती
रंगीनियों से भरी सड़कें
बड़ी बेनूरी खामोश सी हो जाती हैं
जब…अर्सों बाद
उस शहर को लौटने पर
नहीं दीखता वह शोखे गुलमोहर
वो नीम जिससे थी शीत दोपहर
वह गली के कोने वाला ठेला
जब छूट जाए वह प्यारा मेला
तब सड़कें उदास हो जाती हैं
यहां यादें ही पास हो जाती हैं
बातें आम से ख़ास हो जाती हैं
वीरानगी आस पास हो जाती है
आज को बीते कल से जोड़ देती हैं
कदम अनाम गली में मोड़ देती हैं
मन को खंडहर में छोड़ देती हैं
और बस ….
सड़कें कुछ यूँ दम तोड़ देती हैं .
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