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हम गृहणियां कुछ बातें रसोई में भोजन पकाते वक़्त भी सोचती रहती हैं ….कभी राशन की डायरी तो कभी कैलेंडर पर और
फिर कभी फुर्सत में यूँ ही संभाल कर रखी डायरी में इन्हे लिख कर संजो लेती हैं …….
कुछ कविताएँ
1)
पारदर्शिता
ज़िंदगी होनी चाहिए
एक खुली किताब सी
क्लब लाइब्रेरी में
कहा एक वयोवृद्ध ने
पर कहते हैं… …
चली जाती है विद्या
किताब खुली रख छोड़ने से
वहीं पास खड़ी
मासूम किशोरी बोल उठी
पारदर्शिता ‘पर ब्लॉग लिखती
मेरी लेखनी भी ठिठक गई
…..!!!!!……
मानूं किस बात को मैं
परिपक्व विश्वास को
या
मासूम अन्धविश्वास को
2)
वक़्त धारा नहीं ; बूँद है
लोग कहते हैं
बहे जा रहे हैं
हम वक़्त की धारा में
पर वक़्त धारा में
होता ही नहीं
यह तो है टूटा बूँद बूँद में
बिन्दुओं में टूटी ……
किसी पंक्ति की तरह
ज़िंदगी में घटनाएं तो
घटती हैं क्षण क्षण में
वक़्त नहीं है मेरे पास
कुछ भी गैर ज़रुरी
कहने और करने के लिए
क्योंकि
मुझे वक़्त धारा में नहीं
बल्कि बूँद में दिखता है
3)
सर्वाधिक आकर्षक-चार स्थान
कब्रिस्तान…रेलवे स्टेशन
बस स्टॉप और हॉस्पिटल
सर्वाधिक आकर्षक
मिलन-बिछडन के केंद्र
जीवन को रूलाते-हँसाते
पुनर्जीवित -पोषित करते
उजागर करते
जीवन के दो विपरीत पक्ष को
और साम्यता के कटु सत्य को.
यह सच है ….कि ये चार स्थान
वक़्त के साथ बहते
इस जीवन के
सबसे बड़े साक्षी हैं
4)
अपना ख्याल रखना
स्कूल जाने को कदम बढ़ाते ही
माँ ने कहा “अपना ख्याल रखना”
दूर कॉलेज के गेट पर छोड़ते ही
भाई ने कहा “अपना ख्याल रखना ”
विदाई वक़्त सर पर हाथ फेरते ही
पिता ने कहा”अपना ख्याल रखना ”
घर को रोज़ सहेजते देखते ही
हमसफ़र ने कहा “अपना ख़्याल रखना”
हॉस्टल जाते नमी आँखों में देखते ही
बिटिया ने कहा”अपना ख्याल रखना”
बहुत सुकून दते हैं ये तीन शब्द
हम नहीं अकेले कहते ये तीन शब्द
जब जब सुना मैंने यह तीन शब्द
हाथ जोड़े देखा आकाश को औ कहा
“प्रभु ,इन सब का तू ख्याल रखना ”
5)
अंतिम एक प्रश्न ….
नारी …
धर्मग्रन्थ के पन्नों पर
है अत्यंत पवित्र
संगमरमर की दिव्य मूरत सी
फिर रोज़ रोज़ उसे
रेत के घरौंदों सा
बनाने और तोड़ने का कसूर क्यों ???
नारी….
हर रिश्ते के फ्रेम में
सलीके से फिट
आकाश में जड़े सितारों सी
फिर किस असावधानी से
कांच के टुकड़ों सी
टूटती होती चकनाचूर यों ???
नारी…..
वक्ता के भाषण में
है अत्यंत उन्नत
पर्वत के शिखर सी
फिर एक नदी सी मज़बूर
नीचे घाटियों में
बहने का दस्तूर क्यों ????
नारी….
अपनी लेखनी में
है बेहद मज़बूत
दरख़्त की जड़ों सी
फिर हकीकत में पत्तियों सी कमज़ोर
हल्की हवा से ही
काम्पने को मज़बूर क्यों ??
अंतिम एक प्रश्न ….
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते
रम्यते तत्र देवता (जहां स्त्रियों की पूजा होती है वहां देवता निवास करते हैं )
फिर सारी गालियां
माँ,बहन,बेटी के
रिश्तों से जुडी क्यों ??
6)
पहचान की पहचान
अपनी पहचान होती है
उस हाथी की तरह
जिसे ….सात अन्धे
अपने अपने ही ढंग से
पहचानने का करते प्रयत्न
अज्ञानता की चरम सीमा तो यह
कि उन सात अंधों में
एक स्वयं ही गिने जाते हैं हम
क्या इतनी मुश्किल है
पहचान की पहचान में
फिर प्रश्न तो यह भी
रह जाएगा अनुत्तरित ही
“पहचान की वास्तविक पहचान कौन करे ?”
-यमुना
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