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मेरे प्रिय ब्लॉगर साथियों /पाठकों
महिला दिवस पर सभी को प्यार भरा नमस्कार
दोस्तों ,महिला दिवस महिलाओं को सम्मान घर परिवार समाज या यूँ कहूँ इस धरती पर उन्हें समुचित सम्मान दिलाने की दिशा में एक सशक्त कदम है .यह बहुत ताज़्ज़ुब की बात है कि जो शब्द अंग्रेज़ी (woman )और हिन्दी (नारी)दोनों ही शब्दकोष में महिलाओं को महत्वपूर्ण और आगे साबित करता है वही शब्द अपने मूर्त रूप में अपने हक़ और महत्व के लिए एक विशेष दिन ‘महिला दिवस’ मनाने को विवश हो जाता है.हिन्दी शब्दकोश में एक नहीं दो दो मात्राओं के साथ नारी ही नर से भारी है .पूर्वी संस्कृति ने राधाकृष्ण ,सीताराम,लक्ष्मीनारायण जैसे शब्दों से जहां देवियों के नाम देवों से आगे रख कर महिलाओं का सम्मान बढ़ाया .यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रम्यते तत्र देवता कह कर उनके महत्व को स्वीकार करने का सन्देश दिया . वहीं लेडीज फर्स्ट कह कर पश्चिमी संस्कृति ने भी उन्हें सम्मान देने में कोई कसर ना छोड़ी .अंग्रेज़ी के WOMAN शब्द में WO उपसर्ग ही MAN के आगे जुड़ कर शब्द को WOMAN के रूप में नयी शक्ल देता है .यानी यहां भी WOMAN ही MAN से आगे है .हाँ यह ज़रूर है कि MAN शब्द स्वतंत्र अस्तित्व में है पर WO…MAN शब्द के लिए MAN की ज़रुरत पड़ गई.और फिर इस में अपनी सोच और समझ के अनुसार नए अक्षर जोड़ कर को कुछ भी समझ लिया गया .अच्छी सोच समझ वालों ने इसे कुछ सकारात्मक अर्थ WO….nder , WO…rship ,WO…rld के रूप में समझा तो गलत सोच समझ रखने वालों ने नकारात्मक अर्थ के रूप में WO…rm , WO…w , WO…rry ,WO..e समझा . फिर पुरुष प्रधान समाज ने कहावत भी कह दी “औरत एक पहेली है उसे समझना बहुत मुश्किल है.” जबकि स्त्री यह मानती है कि पुरुष के आगे रह कर भी वह हमेशा उसके साथ ही है चाहे वह राधाकृष्ण के रूप में हो या फिर wo …..man के रूप में हो.
मैं प्राचीन काल से मध्यकाल की तमाम ऐतिहासिक महिलाओं के विषय में पढ़ कर तत्कालीन समाज में उनकी स्थिति से वाकिफ होने के बाद में जब आधुनिक काल में प्रवेश करने वाली महिला को देखती हूँ तो उन्हें भी आज एक पतंग के रूप में ही पाती हूँ जो समाज में स्वतंत्र रूप से उड़ने का सिर्फ भ्रम पाले रहती है .एक महीन सी डोरी उसे किसी और हाथों की पकड़ में रखती ही है .जब वह आकाश में ऊंची उड़ती है तो बहुत कम लोग हैं जो उसकी उड़ान पर खुश होते हैं शेष उसके कटने और जमीन पर धराशायी होने के इंतज़ार में रहते हैं और जब एक पतंग कट कर कभी किसी वृक्ष पर किसी छत पर या जमीन पर गिरती है प्रत्येक व्यक्ति उसे हासिल करने की दौड़ में शामिल हो जाता है.
स्त्री ने पुरुषों का हमेशा मान बढ़ाया है पर पुरुषों ने कभी उसे देवी का रूप देकर अति सम्मानित किया तो कभी माँ ,बहन बेटी के नाम पर ही गालियां रच कर या कभी डायन बता कर अपमानित किया .पर कभी उसे अपने साथ अपने बराबर अपने समकक्ष समझना उचित नहीं समझा .कन्धा से कन्धा मिलाने की बात कही ज़रूर पर यह तो तभी सार्थक है जब दिल और दिमाग भी मिलें वरना सब कुछ महज़ कवायद के सिवा कुछ भी नहीं …जब कि यह सत्य है कि विद्या, बुद्धि,स्मृति प्रज्ञा ,दक्षता ,शक्ति ,समृद्धि,प्रतिष्ठा ,जैसे सारे महत्वपूर्ण शब्द जिनके बिना पुरुष का परिवार और समाज में कोई स्थान नहीं वे सब स्त्रैण शब्द हैं .
जिस तरह पृथ्वी सूर्य के चारों और परिक्रमा और परिभ्रमण करती है जिसकी वज़ह से ही मौसम बदलते और दिन रात होते हैं समाज परिवार घर में भी स्त्री पुरुष को महत्वपूर्ण मान उसी के चारों और अपने सारे क्रिया कलाप को सम्पूर्ण मानती है ताकि विकास का क्रम आगे बढ़ता रहे .
“समाज में जितनी महिलाएं होंगी औरतों के लिए ज़िंदगी उतनी ही सुरक्षित और सरल होगी अतः बेटी को जन्म दें “तो यह सन्देश मन को छूता है . एक बच्चे को जन्म देना माँ का यह सन्देश है कि वह भविष्य के लिए आशावान है फिर वह बच्चा पुत्र है या पुत्री यह बात महत्वपूर्ण नहीं है .वह बच्चा एक संतान है समाज परिवार के लिए अनमोल जिसे संवारना निखारना और पृथ्वी पर एक आदर्श इंसान बनाना मुख्य कर्त्तव्य है.इस बात का संज्ञान ज़रूरी है .अगर स्त्री इस दिशा में तैयार हो जाए तो उसे कोई ताकत रोक नहीं सकती है .
“पुरुषों के आगे फिर भी साथ हूँ “के भाव से अपने कर्तव्य निभाएं .
जय महिला शक्ति Happy Wo….men’s DAY .
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