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१)बेहद ज़रूरी है ..इज़हार प्रेम का (२) बैसाखी-कुछ तारीखों ;कुछ घटनाओं की

V2...Value and Vision
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1)बैसाखी-कुछ तारीखों;कुछ घटनाओं की

हमारी खुशियाँ
बहुत निरीह हो गई हैं
इतनी…कि
वे इंतज़ार करती हैं
कुछ तारीखों का
जन्म दिवस
विवाह वर्षगाँठ
देता है सहारा इन्हे .
ज़रुरत हो गई इन्हे …
वैलेंटाइन डे ,प्रॉमिस डे रोज़ डे
किश डे ,प्रोपोज़ डे ,हग डे
जैसे ना जाने
कितनी बैसाखियों की
ये इतनी असहाय
ऐसी पंगु क्यों हो गईं ?
खुशियाँ हो गई हैं…..
बिलकुल मृतप्राय
इतनी …कि
ज़रुरत इन्हे
कुछ घटनाओं की
प्रमोशन ,सफलता
देती हैं संजीवनी इन्हे
चलो खुशियों को बनाएं
इतना जीवंत कि
इन्हे सहारा लेना ना पड़े
कुछ तारीखों …कुछ घटनाओं का

ये महकती रहे
सहजता से
बिना किसी वज़ह के
कुदरत में खिले
फूलों की तरह
और हो इसमें
हर हाल में खिलखिलाते
बच्चों का सा असर .Copy of Copy of Desktop76

2)पेड़ बन जाएं

बहुत उड़ लिए
पंख फैला
अब डर लगता है
अपनी ही उड़ान से
चलो अब हम
कहीं ना जाएं
क्यों ना हम
एक पेड़ बन जाएं !!!

3) बरगद से बोनसाई Desktop46

ज़िंदगी के सोपान
एक के बाद एक चढ़ते हुए
यह ज़रूर है कि
हम जंगल से आ जाते हैं उपवन में
पर अफ़सोस यह कि बन जाते हैं…
बरगद से बोनसाई .
सवाल यह कि …
इस अधोगामी उन्नति का
कौन होता जिम्मेदार ???
अपने अहम में दूसरों को
दिन ब दिन छोटा करने वाले
अंध स्वार्थ से भरे लोग
या फिर हमारी ही पलायनवादिता
हमारा ही आत्मसमर्पण !!
मैंने भी एहसास किया दर्द …
बरगद से बोनसाई बन जाने का
जिस दिन करीब से देखा…
घर के बाहर बैठे बुजुर्ग प्रहरी को
फर्म के रिटायर्ड अधिकारी को
गली के परिचित से भिखारी को
सब दांव पर लगाए एक जुआरी को
सच है कोई भी इंसान
नहीं बनना चाहता
बरगद से बोनसाई….क्योंकि
वह महरूम हो जाता है
पक्षियों के मधुर कलरव से
दूर तक घने अपने फैलाव से
स्व बड़प्पन के वृहद घेराव से
आते जाते राहगीरों के लगाव से
पर यह बरगद की मदहोशी है
देख नहीं पाता वक़्त की कैंची
यह तो उसकी ही बेहोशी है
समझ नहीं पाता हवा की गति
ये उसकी बेइंतहा शोखी है
जो हर लेती उसकी मति
हाँ ,यह वक़्त की भी बेरहमी है
कि भिखारी बन जाता है
बीते कल का करोड़पति
बन जाता है बरगद …से …बोनसाई
कभी स्वेच्छा से …तो
कभी वक़्त के हाथों मज़बूर
पर …..यह सच है कि
बहुत दर्द है इस
अधोगामी परिवर्तन में .Desktop77

4)बेहद ज़रूरी है इज़हार प्रेम का

बेहद ज़रूरी है ..
इज़हार प्रेम का
ना हो इंतज़ार किसी
अवसर विशेष का
प्रेम का इज़हार ना हो
ताजमहल की तरह
देश दुनिया करती
जिस प्रेम का दीदार
उसे स्वयं प्रेम ही
जीते जी देख न सका
गैरों से नहीं
प्रेम का इज़हार
अपने प्रेम से ही करो
खुशियाँ दामन में
उनके जीते जी ही भरो
अन्यथा….
कला की गोद में टपके
अश्क की तरह
प्रेम भी हो जाएगा मृत
ताज की तरह .


-yamuna

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