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जब तुम से है प्रेम तो ‘मैं’ कहाँ

V2...Value and Vision
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प्रेम क्या है इसे शब्दों में बांधना मुश्किल है.प्रेम अपने प्रिय के लिए ही जीता है.और अपना व्यक्तित्व अहंकार सब भूल जाता है.
द्वारका में एक बार भगवान कृष्ण अस्वस्थ हो गए.सारे नगर में हाहाकार मच गया.सब इलाज़ निष्फल हुए .अंत में एक वैद्य ने कहा,”किसी व्यक्ति के पैरों की धूल चाहिए ,उसी से उपचार करने पर श्रीकृष्ण को स्वास्थय लाभ मिल सकता है.”पैरों की धूल (चरण रज)लाने की जिम्मेदारी नारद जी को सौंपी गई.वे रुक्मिणी सत्यभामा सहित ऋषि मुनियों के पास भी गए पर श्रीकृष्ण जैसे ईश्वर तुल्य को अपने पैरों की धूल दे कर कौन नरक जाना चाहेगा !! थके हारे नारद श्रीकृष्ण के पास लौट आये और आप बीती सुनाई.कृष्ण मुस्कराये और कहा एक बार ब्रज चले जाओ शायद वहां से मिल जाए .
नारद ब्रज पहुंचे श्रीकृष्ण के अस्वस्थ होने की सूचना सुन सभी चिंतित हो गए .राधा और गोपियों ने जब सुना कि श्रीकृष्ण पैरों की धूल से स्वस्थ हो जाएंगे तो वे धूल देने को तैयार हो गईं.नारद जी ने पूछा ,”अपने पैरों की धूल को श्रीकृष्ण के लिए देकर तुम्हे नरक जाने का भय नहीं है ?? राधा और गोपियों ने कहा ,”हमें तो हमारे कृष्ण के अलावा कोई बात सूझ ही नहीं रही है उनकी और तकलीफ हमसे सही नहीं जाएगी आप ये धूल जल्दी से ले जाओ और उन्हें स्वस्थ करो .”नारद ने राधा की चरण रज ली और जाकर वैद्य को दिया .श्रीकृष्ण स्वस्थ हो गए.
प्रिय के सुख में ही सबसे ज्यादा आनंद होता है.प्रेमी को प्रिय के आगे सभी मूल्य और विचार महत्वहीन लगते हैं.व्यक्ति अपने प्रिय के लिए जीवन का बड़े से बड़ा त्याग करने में हमेशा तत्पर रहता है और इस अवस्था में स्व को भूल जाता है फिर राधा और गोपियों जैसे प्रेमियों को नरक का भय कैसे हो?स्व को भूल जाने का यही गुण उसे अलौकिक सौंदर्य देता है .
स्व को भूलने और प्रेमी को सब कुछ मानने की यह भावना किसी और का कोई नुकसान ना करे यह ध्यान रखना भी अत्यावश्यक है .

1 ) सेलिब्रेशन

नहीं करती नज़रअंदाज़…
तुम्हारी किसी बात को मैं
तुम्हारी छोटी से छोटी खुशी
हैं मेरी ज़िंदगी के हार के
छोटे-छोटे फूल की मानिंद
जब-जब पिरोती हूँ
उन छोटे-छोटे फूलों को
हाथ चलते हैं
पर मन….
उस हर खुशनुमा पल को
करता है सेलिब्रेट
बन जाता है जब पूरा हार
जीवन स्वयं हो जाता है

‘एक सेलिब्रेशन’.

2)

सुवासित लम्हे

एक रात जब भर लिया था
मैंने
अपनी हथेलियों को
रातरानी के फूलों से
और….
महक उठी थी दरो-दीवार
तुमने पूछा….
भाते नहीं क्यों तुम्हे कभी
सुन्दर,महकते लाल गुलाब??
भा जाते हैं बस…
रजनीगंधा,मधुमालती
हरसिंगार,रातरानी और पारिजात.
मैंने धीरे से कहा
क्योंकि…….
ये सभी खिलते हैं बहुतायत से
ठीक तुम्हारे प्यार की तरह
आधिक्य में,
खुशबुओं से लबरेज़
मेरे छोटे-छोटे लम्हों को
सुवासित कर जाते हैं.


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