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इन्वेस्टमेंट फॉर डी ३ (डेमोग्राफी,डिमांड,डेमोक्रेसी)

V2...Value and Vision
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प्रधानमंत्री मोदी जी के नेतृत्व में राजनीति ने अपने एकांगी स्वरुप को छोड़कर नए कलेवर को स्वीकार किया है जो सामाजिक,आर्थिक,सांस्कृतिक,वैज्ञानिक विकास की चतुर्दिक दिशाओं को दिशा देता हुआ स्वयं केंद्र में स्थापित है.

मोदी जी इन्वेस्टमेंट फॉर डी ३ की बात करते हैं तो इसे(डेमोग्राफी,डिमांड,डेमोक्रेसी) पर आधारित बताते हैं .पर वे demography के मात्रात्मक पक्ष की बात करते हैं या गुणात्मक पक्ष की यह स्पष्ट नहीं होता है.मोदी जी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी के विचारों से खासा प्रभावित दिखते हैं .

‘भारत में जनसँख्या अधिक नहीं है बल्कि प्राकृतिक साधनों का विकास नहीं होने के कारण गरीबी और बेकारी है.अपने गांधी जी की बात मान ली जाए कि भारत में जनसँख्या अधिक नहीं तो भी उनके कथन के दूसरे भाग अर्थात प्राकृतिक साधनों के समुचित विकास की संभावनाओं पर विचार ज़रूरी है जिसके लिए मोदी जी की सरकार कृत संकल्प है .जो मेक इन इंडिया ,स्किल डेवलपमेंट ,विदेशी निवेश को आकर्षित करने की दिशा में बढ़ने की तैयारी में है.आज एक तरफ मोदी जी डेमोग्राफी (मात्रात्मक या गुणात्मक )की बात कर रहे हैं और दूसरी तरफ साक्षी महाराज ,साध्वी प्राची चार चार बच्चे जन्म देने का सुझाव दे रहे हैं एक परिवार में बच्चों की संख्या कितनी हो यह परिवार की आर्थिक स्थिति ,परिवार में बच्चों की पहले से उपलब्ध संख्या पर निर्भर करता है.जब मेरा विवाह छह पुत्रों के संयुक्त परिवार के पांचवे पुत्र से हुआ तो वहां पहले से चार बड़े भाइयों के दो दो बच्चे (सभी के एक पुत्र और एक पुत्री )जन्म ले चुके थे जो आज भी दो तक सीमित हैं पर उनमें से दो भाइयों की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी .यह देख कर मैंने एक संतान (पुत्री) तक संतोष किया ताकि अपनी पुत्री के साथ साथ घर के ज़रूरतमंद भाइयों के बच्चों को भी उचित शिक्षा और परवरिश में सहयोग कर सकूँ.आज मेरे विवाह को सत्रह वर्ष हो गए घर के लगभग सभी बच्चे अच्छी शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं और हमारा सहयोग नित्य बना हुआ है बाद के छठे भाई की दो बच्चियां हैं. अपने परिवार की उन्नति के लिए ईश्वर से प्रार्थना करने के साथ अपनी शिक्षा और सोच का उचित प्रयोग करना चाहती हूँ .मेरे दिवंगत पिता अक्सर कहते थे “बिटिया,शिक्षा का अर्थ सिर्फ धनार्जन ही नहीं बल्कि सही सोच के साथ जीवन जीना भी है …ऐसी सोच जिसमें सिर्फ तुम्हारी ही नहीं ..परिवार समाज देश का भी जीवन सही दिशा में जा सके शिक्षा का असली महत्व और उपयोगिता इसी सत्य में निहित है .”

जनसँख्या के आकार ,भारत भू भाग का आकार और प्राकृतिक साधनो की उपलब्धता तथा उसका समुचित विकास इन तीन बिन्दुओं पर करना ज़रूरी हो गया है.

demography is the study of changes in numbers of births,deaths,marriages,and cases of disease in a community over a period of time.

नई सरकार ने आर्थिक सुधारों का दौर शुरू किया है.विश्व बैंक ने भविष्वाणी की है कि भारत 2017  में विकास दर के मामले में चीन को पीछे छोड़ देगा .यह अच्छी बात है पर जनसँख्या बढ़ाने के लिए प्रेरित करते बयान भारत देश को जनसँख्या के मात्रात्मक पक्ष से भी चीन को पीछे छोड़ने की राह पर ना लेता जाए.

गुणात्मक दृष्टिकोण से अर्थात शारीरिक मानसिक आत्मिक आध्यात्मिक रूप से स्वस्थ साथ ही कौशल विकास के साथ साक्षर और शिक्षित सशक्त नहीं है तो वह कम उत्पादकता का कारण होती है …कम उत्पादकता ….कम आय का कारण है और कम आय …..कम मांग के रूप में दिखाई देती है.ऐसी अर्थव्यवस्था में कम आय …..कम बचत ….और कम निवेश …को जन्म देते हैं जो पुनः …कम उत्पादकता के रूप में …विकास को अवरुद्ध कर देते हैं. जनवृद्धि  से खाद्य पदार्थ,कपड़ों,मकानों के लिए अवश्य मांग बढ़ती है.परन्तु सहयोगी साधनों कच्चे माल,कुशल श्रम,पूंजी के अभाव से लागतें और कीमतें बढ़ जाती हैं,जो सर्वसाधारण के के जीवन की लागत बढ़ा देती है रहन सहन का स्तर जो पहले से नीचे रहता है वह और भी गिर जाता है .दरिद्रता अवसाद को जन्म देती है मनोरंजन के विकसित साधनों का अभाव और शिक्षा की कमी यौन संबंधों को बढ़ावा देते हैं और बच्चों की बड़ी संख्या उपजती है जो दरिद्रता को और भी बढ़ा देती है और यह विषैला दुष्चक्र किसी भी गरीब परिवार को गरीब ही बनाये रखता है.यदि जनसँख्या में बच्चों की प्रतिशतता अधिक हो तो प्रति व्यक्ति आय पर जनवृद्धि के प्रतिकूल प्रभाव और भी कठोर हो जाते हैं.इसलिए गांधी जी का सुझाव था कि एक देश में उतनी ही जनसँख्या हो जिसका पालन पोषण उचित प्रकार से हो सके .देश को वैज्ञानिक तार्किक सोच वाली नैतिकता से परिपूर्ण पीढ़ी की ज़रुरत है.जो कुशल शिक्षित हो देश की आर्थिक राजनैतिक सामाजिक सांस्कृतिक विकास को सकारात्मक दिशा दे सके.मोदी जी की धन जन योजना बचत की आदत विकसित करने की दिशा में प्रसंशनीय कदम है .मानव स्वभाव से ही संग्रही प्रवृत्ति का होता है .अगर उसे बचत की आदत लग जाए तो वह अपने अनावश्यक खर्च (नशा,सामाजिक रस्म रिवाज़ के दिखावेपन ,परम्परा पर खर्च )में कटौती कर लेता है.अधिक बचत अधिक निवेश को जन्म देती है .
विकास के लिए पहले से उपलब्ध मात्रात्मक जनसँख्या के गुणात्मक विकास की सख्त आवश्यकता है .ऐसी आयोजित सामाजिक और स्वास्थय सुविधाएं जिनमें वे सब व्यय सम्मिलित हों जो लोगों की जीवन प्रत्याशा,कार्यक्षमता ,शक्ति ,तेज और ओज का विकास करे.शिक्षा ,कौशल प्रशिक्षण ,शुद्ध सुरक्षित पर्यावरण उपलब्ध कराये.आज काफी संख्या में इंजीनियर ,मिस्त्री ,सैनिक, चिकित्सक ,वैज्ञानिक,चालक,मैकेनिक , शिक्षक आदि की ज़रुरत है श्रम दक्षता को उन्नत करने के साथ ही साधन की गतिशीलता बढ़ाना ,उद्यमिता को बढ़ावा देना और इस क्रम में जन हित का ख्याल रखना तथा आधुनिक वैज्ञानिक सोच विकसित करना बहुत ज़रूरी है.मोदी जी की बात अभी तक व्यवहारिक रूप में कम ही असर दिखा रही है.ऐसे में मुझे अर्थशास्त्री शुल्ज़ का कथन याद आता है , “ऐसा प्रतीत होता है जैसे हमारे पास साधनों का मानचित्र हो पर उसमें महान नदी और उसकी शाखाएं ना हों.शिक्षा ,तकनीक ,कार्यरत प्रशिक्षण, सिंचाई सुविधा ,स्वास्थ्य सुविधाएं ,उन्नत वैज्ञानिक सोच और अर्थव्यवस्था की सूचना के बढ़ते स्टॉक उस विशिष्ट नदी का पोषण करते हैं.”

शारीरिक श्रम को किसी भी स्तर पर मानसिक श्रम से काम ना आँका जाए.अर्थव्यवस्था के विकास के लिए दोनों का ही महत्व है.

सही अर्थों में डेमोक्रेसी की बात आती है.जैसा गांधी जी का मत था .वे जनता की शक्ति में विश्वास करते थे .इसके सम्बन्ध में वे स्वयं लिखते हैं ,“राज्य की बढ़ती शक्ति को मैं भय के साथ बुरी निगाह से देखता हूँ .अगर श्रमिक और पूंजीपति में झगड़ा हो तो फैसला करने के लिए राज्य हस्तक्षेप ना करे बल्कि वे दोनों ही आपस में समझौते करने के लिए सक्षम हों .”पर वे आर्थिक विकास में मानव मूल्य को बहुत महत्व देते थे..भूमि के स्वामित्व के विषय में उनका रूख स्पष्ट था “भूमि ईश्वर की है.उस पर अपने श्रम का उपयोग करने वाले व्यक्ति का ही अधिकार होना चाहिए.”
हालांकि मोदी जी की सरकार श्रम कानूनों में सुधार के लिए तैयार है .यह भी निवेश की दिशा में ठोस कदम होगा .

“नैतिक और भावात्मक मूल्यों की उपेक्षा करने वाला अर्थशास्त्र मधुमक्खी के छत्ते के समान है जिसमें जीवन होते हुए भी एक सजीव मांस के जीवन का अभाव है.”

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