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अज़ब अदब और सलीके का यह शहर है
फ़िज़ा में घुला मीठा अमृत सा कुछ जहर है .
बोलो तो मौन की परिभाषा समझाता है
खामोशी में कुछ अनकहा तलाश जाता है
शोरे खामोशी का मचा कैसा यह कहर है …
अज़ब अदब और सलीके का यह शहर है .
उड़ान है तो पदचिन्ह का अभाव बताता है
चलो ज़मीं पर तो राहों में कांटे बिछाता है
कदमों औ पंखों पर बैठी कैसी यह पहर है
अज़ब अदब और सलीके का यह शहर है .
अकेले चलो तो कारवां का दम दिखाता है
शरीके कारवां हो तो साये से कतराता है
राहों पर अपनी भी हुई ऐसी एक ठहर है
अज़ब अदब और सलीके का यह शहर है .
पलकें भीगी तो अपना वाक्या सुनाता है
लब हँसते हों तो कब जाल बिछा जाता है
दरिया ने समंदर को दी कैसी यह लहर है
अज़ब अदब और सलीके का यह शहर है .
दस्तक दो तो कॉल बेल खराब बताता है
दूर हो तो व्हाट्सप्प व FB पर तलाशता है
आपसी रिश्तों की बनी कैसी यह नहर है
अज़ब अदब और सलीके का यह शहर है.
-यमुना पाठक
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