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वो साल भी नया था;ये साल भी नया है

V2...Value and Vision
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मेरे प्यारे ब्लॉगर साथियों
नव वर्ष की शुभकामनाओं के साथ यमुना का प्यार भरा नमस्कार

हर बार की तरह इस बार भी नए साल में है बंद सब कुछ
बंद कसी मुट्ठी में छुपी किसी रहस्यमयी चीज़ की तरह
या कि बाग़ बगीचे में लगे पेड़ों के सैकड़ों फलों में छुपे
कितनी अनंत संभावनाओं लिए अनगिनत बीज की तरह
कितनी आशा,कितनी उमंग,कितना उल्लास,कितने सपने
डाल जाता सबके दामन में हर बार ही आने वाला नया साल
किसी वर्ष तो सहजता से पूरी हो जाती है एक एक हसरत
कभी पूरा वर्ष ही है निकल जाता बुनते सपनों के मकड़ जाल
कभी तो हरे-भरे खेतों पर सुनहरी चटकती धूप सी खुशियाँ
ज़िंदगी में छेड़ जाती हैं मीठी मीठी सी चहकती सुर तान
कभी तो आंसुओं की बारिशों में धुल जाती ये है ज़िंदगी
मन बह जाता है गीली मिट्टी सा तन हो जाता है बेजान
नए साल के स्वागत पुराने साल के विदाई की रस्म अदायगी
आशा निराशा हर्ष विषाद के हिंडोले के सिवा और कुछ नहीं
मेरे दोस्तों ,नए वादों के साथ जो नए मज़बूत इरादे ना हुए तो
नए साल के आगाज़ से अंजाम तक किसी को मिलता कुछ नहीं .

इस अनुपम मंच ने हम सब के भाव और विचारों को नित नया आयाम दिया है .क्षण कैसा भी हो दिन दिवस कितने भी बेरंग उदास परेशान या खुशियों भरे रहे इसी मंच पर हम सब ने उसे साझा किया बिना इस बात की परवाह किये कि कौन हमारी पहचान का है कौन अज़नबी है .विचारों ने हमें एक दिशा दी.मेरे दृष्टिकोण में नयेपन का यही अर्थ है .हर उस दिन जब ज़िंदगी हतोत्साहित हुई किसी उम्दा विचार ने नए हौसले दे दिए ,किसी बेमक़सद से भाव ने ही ज़िंदगी को नए मक़सद दे दिए और बस हो गई थी नयेपन की शुरुआत.साल तो हर बार नया ही होता है …..कुछ के लिए मंदिर की सीढ़ियों से नई मन्नतें माँगते हुए ,कुछ के लिए बीते साल के अंतिम अर्धरात्रि में सुरा शराब की पार्टी के साथ नए नए वादों की फेहरिस्त जो अगली भोर स्वयं उन्हें ही याद नहीं रहते ,बनाते हुए ….तो किसी के लिए चीथड़ों के बीच कम्कम्पाती हड्डियों को समेट कर जल्द से जल्द रात बीत जाने की दुआ माँगते हुए …..पर यह नया साल होता सबके लिए है.

जीवन के हर साल घटनाएं घटती हैं कभी कभी एक पल में सब कुछ घटित हो जाता है तो कभी कभी बरस ठहर से जाते हैं.
ज़ीनत थी जिस कैलेंडर से घर में
एक साल ही रह कर वह भी उतर गया
जीवन में कुछ भी स्थाई नहीं है फिर भी नए पुराने का बोध हम में ऊर्जा का संचार करता है यह मन ही है जो बिना हवा के ही पत्तियों की सरसराहट को महसूस करता है और भरी बरसात में भी प्यासा रह जाता है .घटनाएं अच्छी हों या बुरी हमें बगैर जीवन से पलायन किये स्वीकारनी ही चाहिए ….मन टूटे कांच सा बिखर ही क्यों ना रहा हो पर मस्तिष्क की सजगता और विवेक अनिवार्य है.रियल और रील लाइफ में एक फर्क है रील लाइफ में रिटेक हो सकते हैं पर रियल लाइफ में यह संभव नहीं होता अतः गुज़री घटनाओं , बातों को जीवन का भाग समझ आगे बढ़ जाना ही विवेक है . इंसानी रिश्ते एक दूसरे के ज़ेहन में अपनी उपस्थिति की इबारतें हर साल लिखते हैं कुछ पुरानी तहरीरों में नई तहरीरें जुड़ जाती हैं तो कुछ कोरे कागज़ पर नई इबारत की तरह लिखी जाती हैं पर यह तो व्यक्ति विशेष ही निर्धारित करता है कि किसे डायरी का अंश बनाये ,किसे ज़ेहन में संजो कर रख ले और किसे रद्दी की टोकरी में डाल दिया जाए .

Desktop4मेरा मानना है नए को स्वीकार करने के लिए पुराने में से अवांछित यादों और घटनाओं को मिटाना बेहद ज़रूरी है .अगले साल वे ही घटनाएं ले कर आगे बढ़ें जो नए भवन के लिए मज़बूत नींव का काम कर सकें .जीवन मिला ही कितना है .सार्थक घटनाओं और यादों से नाता जोड़ शिद्दत से जीना सीख जाएं तो हर पल नया अन्यथा खुद की लाश को खुदे के ही कन्धों पर ढोते चले जाने का अफ़सोस जीवन को कितनी बेचारगी दे जाता है.नए साल के आगमन और पुराने साल की विदाई के क्षण तो दो अंतिम पड़ाव हैं उगते सूर्य की तरह नयी उमंग और अस्त होते सूर्य की तरह विश्रांति के प्रतीक हैं पर वर्ष का आकलन हिसाब किताब तो इन दो समयांतराल की घटनाओं से ही हो पाता है. हर वर्ष नयी उम्मीद ,जोशे जुनून ,नए वादों की नाव में सवार हो ज़िंदगी की नदी में उतर जाता है ,कभी शीतल बयार में झूमता ,कभी तूफानी थपेड़ों से डरता गंतव्य की तरफ बढ़ता जाता है सही सलामत पहुँच जाए तो पुनः नयी सफर की शुरूआत हो जाए.

िछला वर्ष देश दुनिया के लिए सकारात्मक बदलाव का वर्ष रहा .ईश्वर से यही प्रार्थना है हम आप परिवार समाज देश दुनिया का एक अहम हिस्सा बन कर सकारात्मक बदलाव के साथ प्रगति पथ पर आगे बढ़ते रहे,इस अनुपम मंच से जुड़े सभी सम्मानीय आदरणीय प्रबुद्ध जनों और ब्लॉगर साथियों आप सब को नव वर्ष की बहुत बहुत शुभकामना ….सकारात्मक सोच,नूतन कार्य शैली के साथ हम सब अपने उत्तरदायित्व का निर्वाह करें और पुराने संबंधों को और भी सुदृढ़ करें इसी संकल्प के साथ …..वैचारिक यात्रा चलती रहे ….अनंत …क्योंकि इसकी मंज़िल कहाँ है ….यह तो निरंतर निर्बाध चलने वाली है ….जब तक सांस है तब तक विचारों का सुवास भी बना रहे …बस ईश्वर से यही दुआ मांगती हूँ .

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