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बौने से बौने
ऊंचाई को छूने की कोशिश में
हम बौने से बौने होते चले गए
अस्मिता,मिठास हमारे मूल्यों के
आंसू के समंदर में खोते चले गए
बेबाकी से कह जाते थे हर बात
आज खुद में ही सिमट कर रह गए
जीने की कशिश ललक अरमानों की
हम अपनों में ही बेगाने बन रह गए .
ज़िंदगी मांगती है हिसाब
कितने मोड़;कितनी राहें
प्रश्नोत्तर की कितनी आहें
अँधेरे को चाहिए उजाले से
उजाले को दरकार अँधेरे से
हर कण का हिसाब किताब
हर क्षण दिखाए नया शबाब
हर पल का दूजे पे क़र्ज़ बेहिसाब
सच है,ज़िंदगी मांगती है हिसाब
क्रंदन/वंदन
विनाश और सृजन चलते हैं साथ-साथ
क्योंकि प्रकृति को चाहिए संतुलन
हमारी एकांगी दृष्टि देख नहीं पाती
सृजन ; विनाश के क्रंदन में
और ना ही
विनाश ; सृजन के वंदन में
जबकि एक का होना ही
दूसरे के अस्तित्व का प्रमाण है.
लब सिले हुए
उन्ही चेहरों ,उन्ही शख्शियतों को
देखा मैंने हर मोड़ पर मिलते हुए
मिलते थे कल कहकहों के बीच
आज जो मिले तो थे लब सिले हुए.
धर्म का ज़नाज़ा
क्यों ना अब ऐसा भी करें
कई कई टिकठियां बनाएं
और निकालें धर्म का ज़नाज़ा
अपने अपने धर्म को कफ़न पहना
कहीं दूर सदा के लिए दफ़न कर आएं
गर इसी धर्म की आड़ में
चलती हैं गोलियां ,फेंके जाते हैं पत्थर
लगाए जाते हैं घरों में आग
कि सिकतीं रहे राजनीति की रोटियां
बांटी जा सकें सत्ता की बोटियाँ
धिक्कार है ऐसे हरेक धर्म को
जो फैलता है दंगा
बढ़ा बेवाओं के आंकड़े
छोड़ जाता बच्चों को
अनाथ,भूखा नंगा
जिस धर्म को यह एहसास नहीं
किसने किसको है खून से रंगा
मंज़िल हो उसकी बस श्मशान में
यही ज़ज़्बात जग जाए हर इंसान में
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