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वह एक ‘अखंड दीप’

V2...Value and Vision
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वैचारिक यात्रा के प्रकाशवान पथ के प्रत्येक पथिक को दीपोत्सव की बहुत सारी शुभकामना….

प्रत्येक वर्ष यह पर्व हमें अंधकार से प्रकाश की तरफ जाने की प्रेरणा दे जाता है बचपन में खूब सारे पटाखे निडर होकर जलाती थी …किशोरावस्था में फूलझड़ी जलाने लगी और अब जब भी दीपावली का त्यौहार आता है …घर परिवार समाज के तौर तरीकों ,परम्परा संस्कृति में व्यस्त ….मैं एक रहस्य में खो जाती हूँ ….दीपों की माला तो नहीं पर एक अखंड दीप हर व्यक्ति के पास देख सकती हूँ .उस दीप में विवेक,बुद्धि,संवेदनशीलता का तेल जितना ज्यादा डाला जाए दीप की लौ उतनी ही तेज होती है.और मन मस्तिष्क की शुद्धता उस लौ के दर्शन सूर्य की तेज रोशनी में भी कराती है.यह मेरा अपना अनुभव है ….col3

एक दीप है काफी
तम हरने के लिए
हूँ सोचती….
हज़ारों …लाखों ..अनगिनत दीप भी
क्यों दूर कर पाते नहीं
कालिमा अमावस की
प्रश्न की उज्जवल दामिनी
है मस्तिष्क में कौंध जाती
प्रज्ज्वलित दीप और यह स्याह रात्रि
कौन किस पर हुआ भारी
??

संघर्ष की साक्षी..
बन जाती प्रत्येक संध्या
आँगन की तुलसी समक्ष…
एक दीप है जल उठता
दीवाली तो नहीं ..पर
दीपोत्सव है हर रात मनता
दूर करने को गहन तमस
एक अखंड दीप है जलता

दिवस की आपाधापी
यश की कौंधती रोशनी
सुख वैभव की मरीचिका में
दीप वह अदृश्य रहता .
जैसे-जैसे होती जाती
गहरी और गहरी निशा
आपाधापी ….सुख वैभव के बोध में
छाने लगती स्पष्टता
गलतियों की भयावहता
भाग-दौड़ की असारता
सर्वस्व पाकर भी रिक्तता
यह बोध है भीख मांगता
टुकड़े भर रोशनी की .
याचना गहरी जितनी
झिलमिलाहट दीप के लौ की उतनी
परन्तु अगले दिवस पुनः
मरीचिका यश सुख वैभव की
है परास्त करने लगती
लौ तो है झिलमिलाती
पर बेमानी सी हो जाती

फिर भी है वह अखंड दीप
दिवा की चमक में
चाहे हो जाए बेमानी
उससे एक टुकड़े भर रोशनी की
करता हर मनुष्य याचना
छा जाती जब …
गहन तमस की निस्तब्धता
देख अखंड दीप की उज्जवलता
चिर सत्य बन यह गूँज उठता

तमसो मा ज्योतिर्गमय .

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