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एक ही ज़मीन से जुड़े दो भाई …भारत और पाकिस्तान ….सरहद कुरुक्षेत्र बन गया हैं…..
सरहदों की संकीर्णता से उपजी घृणा और उसकी भेंट चढ़े लोगों की इस बेबसी को आनंद बख्शी साहब ने भी अपने शब्दों में बयान किया था….
” इन ज़मीनों ने कितना लहू पी लिया
ये खबर आसमानों तलक है गई
रास्ते पे खड़ी हो गई सरहदें
सरहदों पे खड़ी बेबसी रह गई.“
सरहद के समक्ष कई सवाल हैं वह अपने साथ हुए बार बार के धोखे से सिसकती रहे …भाई से आक्रान्त हो शिकायत करे …या कि सीना तान कर गुस्ताखी का ज़वाब गुस्ताख़ हो कर दे ….ज़ाहिर है इस बार तीसरे विकल्प को अपनाया गया है और हो भी क्यों ना …पाकिस्तान संयुक्त राष्ट्र की मदद से इस मसले को सुलझाना चाहता है जबकि बेहतर यह होता कि वह किसी भी तीसरी शक्ति को यह बताता ….
अम्नो इन्साफ को गारत नहीं होने देंगे
खूने इंसान की तिज़ारत नहीं होने देंगे
भाई से भाई को हर वक़्त लड़ाने वालों
यहां अब हम महाभारत नहीं होने देंगे
(एक शायर)
हालांकि १० अक्टूबर को नवाज़ शरीफ जी ने भारत से सीमाओं पर गोलीबारी को तुरंत बंद करने को कहा और साथ ही यह भी कहा कि शान्ति की उनकी इच्छा को लेकर कोई गलतफहमी नहीं होनी चाहिए.पर इंटरनेशनल बॉर्डर पर नौ दिन तक जिस तरह गोली बारी हुई आज बॉर्डर के पास स्थित २४४ गाँव सुनसान नज़र आ रहे हैं.भारतीय जवानों को बेख़ौफ़ हो एक के बदले तीन मारने का स्पष्ट आदेश मिल चुका था भारत का नुकसान भी हुआ है पर वही बात कि आखिर शान्ति सुलह समझौते का राग कब तक चले .शक्ति और क्षमा शीर्षक कविता की कुछ पंक्तियाँ याद आती हैं
क्षमा ,दया,टप,त्याग मनोबल
सब का लिया सहारा पर नर व्याघ्र सुयोधन तुमसे कहो कहाँ कब हारा
क्षमाशील हो रिपु समक्ष तुम विनत हुए जितना ही
दुष्ट कौरवों ने तुमको कायर समझा उतना ही .
अच्छा हुआ भारत ने अपने रवैये में तब्दीली लाई .हाँ ,खाली हुए गाँव पर भी ध्यान रखना ज़रूरी है ताकि कोई घुसपैठ अंजाम ना ले सके.हर बार की ऐसी लड़ाई में देश को अच्छा खासा नुकसान होता है.
आज जब पूरे विश्व के समक्ष भारत पाकिस्तान शान्ति के नोबेल पुरस्कार के सम्मान से नवाज़े जाने के लिए चुन लिए गए हैं तो क्या उपर्युक्त चार पंक्तियाँ प्रत्येक पाकिस्तानी और हिन्दुस्तानी का मूल मंत्र नहीं बन जाना चाहिए ??जब एक विज्ञापन देखती हूँ “भाई को गिराने की आदत थी मुझे बनाने की आज मैं किसी चीज़ से नहीं डरता ” तो मुझे ये भारत पाक दो भाईयों की दास्ताँ ही लगती है.यूं तो भारत ने हमेशा ही शान्ति,सुलह और धैर्य का परिचय देकर एक अदद भाई की भूमिका निभाई है पर पाकिस्तान उस बच्चे की तरह व्यवहार कर रहा है जो कंचे के खेल में क्रोध और क्षोभ में अपने सारे कंचे गँवा बैठता है.शिक्षा ,स्वास्थ्य ,विज्ञान के क्षेत्र में करने की बजाये रक्षा सामग्रियों पर खर्च कर वह स्वयं को कितना खोखला कर रहा है इसका उसे भान नहीं है.
तेरी बदहालियाँ ऐ पाके ज़मीं करती कई सवाल तुझसे
ओ बेखबर हुकमरान इस पाके ज़मीं को दोजख ना कर
मुनासिब है ज़रूरी है वतन हक़दार है जिन खुशियों का
ओ मुल्क के हुक्मरानों अवाम को उनसे महरूम ना कर .
उसकी सबसे बड़ी बेचैनी भारत में एक सुदृढ़ सरकार बन जाने से उपजी उसकी हताशा है.हाल के कुछ दिनों में भारत ने जिस गति से वैश्विक ,और राष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़नी शुरू की है पाकिस्तान उससे खीझ गया है.ऐसे माहौल में दलगत राजनीति से ऊपर हो कर सभी नेताओं को एकजुट होकर पाक की नीतियों की आलोचना करनी चाहिए ना कि मोदी जी के विभिन्न भाषणों की तहरीर याद करना अपना कर्त्तव्य समझना चाहिए .कभी कोई उन्हें छप्पन इंच के सीने की बात याद दिलाता है तो कभी दुश्मन को मुंह की खिलाएंगे ….क्या विपक्ष सिर्फ और सिर्फ आक्षेप के लिए इंतज़ार कर रहा होता है ?? वे जवान जो अपने घर परिवार को छोड़ कर सरहद पर जान की बाजी लगा रहे होते हैं वे किसी दल विशेष के नहीं बल्कि भारत माँ के सपूत होते हैं ….उनके हौसले को बुलंद रखने के लिए शब्दों की सकारात्मकता बेहद ज़रूरी है और हम हमेशा निराशा भरी बात करे ही क्यों ?? भारत एक तरफ विकास के रास्ते पर अग्रसर शिक्षा ,स्वास्थय, खेल ,विज्ञान ,अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में नित्य आगे बढ़ता जा रहा है पाकिस्तान अपने इस भाई के प्रगति पथ से खुश और उसका अनुकरण करने की बजाये कौरवों की तरह अपने ही कुल का नाश करने पर आमादा है .युद्ध से ना उस युग में भलाई हुई थी ना अब होगी ..महाभारत में भी श्रीकृष्ण ने युद्ध को टालने की भरसक कोशिश की थी.समस्याएं तलवार से नहीं कलम से सुलझती हैं जिसका सबूत है भारत पाक संयुक्त नोबेल शान्ति पुरस्कार .संयुक्त राष्ट्र संघ में उसके द्वारा कश्मीर के मसले को उठाना ही यह साबित करता है कि पूरे विश्व पटल पर वह भारत को गुनाहगार ठहराना चाहता है.कश्मीर में बाढ़ से आई तबाही पर वहां के बाशिंदों की सहायता के लिए जिस तरह से भारतीय जवानों ने तत्परता दिखाई वह इस बात का बड़ा सबूत है कि भारतीय तलवार बन्दूक गोली बारूद नहीं प्यार और सेवा की भाषा से इत्तिफ़ाक़ रखता है.
हालांकि फैज़ साहब की इस चिंता से भी मैं पूर्ण इत्तिफ़ाक़ रखती हूँ कि…
हम तो ठहरे अज़नबी कितनी मुलाकातों के बाद
खून के धब्बे धुलेंगे कितनी बरसातों के बाद
कश्मीर विभाजन के समय से ही भारत का हिस्सा माना जाता रहा है…फिर भी पाक अधिकृत कश्मीर का सारा भू भाग अभी तक पाक के कब्जे में है आज ज़रुरत है कश्मीर के बाशिंदे ,रहनुमा और भारत के शेष हिस्सों में रहने वाले मुस्लिम भाई बहन भारत का साथ दें अपनी ज़मीन ही अपना ज़न्नत है.ऐसा सोच एकजुट रहे .
हर आँख का तारा है तारा ही रहेगा
ज़न्नत का नज़ारा है नज़ारा ही रहेगा
दहशत से कभी हम ना दबे हैं ना दबेंगे
कश्मीर हमारा है हमारा ही रहेगा
(एक शायर)
कश्मीर के मुद्दे को पाकिस्तानी हुकमरान चुनावी मुद्दा बना देते हैं और फिर ज़ंग की इबारत उस मुद्दे का सबब बन जाता है.आज जब मलाला ने बालिका शिक्षा के पक्ष में आवाज़ बुलंद कर शान्ति के नोबल पुरस्कार से पाक की ज़मीं को पूरे विश्व में गौरवान्वित किया है …तब इस साहसी बिटिया के पैगाम को पाकिस्तान को समझना चाहिए.कितना सुखद होता वह इस बार बार के ज़ंग के रक्त बहाना छोड़ इसे कभी ना ख़त्म होने वाली दोस्ती ,अपनत्व और अहदे वफ़ा की शक्ल में तब्दील कर देता .१७ वर्षीया पाकिस्तान की साहसी मलाला युसूफजाई और ६० वर्षीय हिन्दुस्तानी सिपाही कैलाश सत्यार्थी को संयुक्त रूप से शान्ति नोबल पुरस्कार से नवाज़ा जाना ना सिर्फ भारत पाक दो वतनों के लिए बल्कि शान्ति की स्थापना की दिशा में पहल का स्वागत करने वाले कई और मुल्कों के लिए भी एक बहुत ही सार्थक और सकारात्मक सन्देश बन सकता है.महज़ सत्रह वर्ष और सोच बेहद परिपक्व तभी तो मलाला ने दोनों वतनों के बीच शांति की दिशा में एक खासा पहल की और गुज़ारिश की कि जिस दिन कलम के दो सिपाही शान्ति का नोबेल प्राइज ले रहे हों तो दोनों वतन के हुक्मरान श्रीमान नरेंद्र मोदी जी और श्रीमान नवाज़ शरीफजी साथ साथ वहां ज़रूर मौजूद रहे.
काश यह प्रतीकात्मक एकता एक नए मधुर रिश्ते की ऐसी बीज बो जाए कि वह स्वस्थ मज़बूत वृक्ष बन ना सिर्फ दो मुल्कों को बल्कि पूरी दुनिया को अपनी शीतल छाँव से उपकृत करता रहे.
नींव बन जाए भरोसे की ….छत हो मोहब्बत की…और आपसी सौहाद्र की दीवारें
काश सिसकती सरहद पर खिल जाएं ढेर सारे खूशबू बिखेरते गुलों से तबस्सुम .
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