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प्रगति पथ (प्रोग्रेस पाथ )का पी2 पी2 पी2 मॉडल

V2...Value and Vision
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मुझे खुशी इस बात की भी है कि एक प्रजातांत्रिक देश के नागरिक होने के अधिकार को सिर्फ वोट देने तक ही सीमित ना रखते हुए प्रधानमंत्री जी ने आम जनता से प्रशासन में भी सुझाव मंगवाने की शुरुआत कर जनभागीदारी को व्यापक क्षितिज दिया और जनतंत्र ,जननीति और जननेता की परिकल्पना को साकार करने की दिशा में ठोस कदम उठाया है. आज जब मैं यह ब्लॉग लिख रही हूँ तो संतुष्ट हूँ कि मेरी अर्थशास्त्र की पढ़ाई धोबी के हिसाब और घरेलू सहायिका के पगार निश्चित करने या अपने बच्चे को घर पर पढ़ा कर ट्यूशन फीस बचाने तक ही सीमित नहीं आज मैं democratically empowered हूँ इस ब्लॉग में निहित सुझाव को mygov.in पर भी भेज सकती हूँ .

यह सच है कि स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय से ही विभिन्न कारणों जैसे द्वितीय विश्व युद्ध से उपजी आर्थिक कठिनाइयाँ ,परतंत्र भारत के संसाधनों के भरपूर दोहन और पूंजी के विदेश चले जाने से उपजे बिखराव के फलस्वरूप एक संस्था की नितांत आवश्यकता महसूस की जा रही थी जो सुनियोजित और चरणबद्ध तरीके से तत्कालीन कठिनाइयों को दूर कर .देश में आशावाद की लहर ला सके और १५ मार्च १९५० को योजना आयोग की विधिवत स्थापना की गई थी

हम नन्हे से ग  ‘G ‘ — GRAM (ग्राम) से विशाल ग G –GLOBAL (ग्लोबल) या नन्हे से ‘व ‘V विलेज (VILLAGE )से विशाल ‘ व ‘V वैश्विक (VAISHAVIK) स्तर पर तक आ गए हैं टेलीग्राम युग से इंटरनेट के सफर ने पुरानी चुनौती के साथ नई चुनौतियां भी खड़ी कर दी हैं .आर्थिक मज़बूती किसी भी देश की सुदृढ़ता के लिए रीढ़ की हड्डी का काम करता है.पर सामाजिक और नैतिक मज़बूती से भी मुख मोड़ा नहीं जा सकता .योजना आयोग के जगह नई संस्था के लिए मैं प्रगति पथ (प्रोग्रेस पाथ )के नाम का ही प्रयोग कर रही हूँ.

मिनिमम इनपुट मैक्सिमम आउटपुट का किफायती संज्ञान भी दे सके .

तकनीक सामरिक आत्मनिर्भरता ,सामाजिक सुरक्षा,आर्थिक स्थिरता जैसे कई बिन्दुओं पर ध्यान देना है.

अब तक योजना आयोग का मुख्य कार्य योजना तैयार करना और उसकी प्रगति का मूल्यांकन करना था .यह केवल परामर्श दे सकता था विकास परियोजनाओं को कार्यान्वित करने का कार्य केंद्रीय तथा राज्य सरकारों का होता था. और लालफीताशाही भ्रष्टाचार तथा अकुशलता की संभावना बनी रहती थी .यह अनेक विभाग तथा उपविभाग के द्वारा काम करता है जो परामर्शदाता मुख्य या सह सचिव के अंतर्गत होते हैं कुछ विभाग निदेशकों के अंतर्गत काम करते हैं योजना आयोग का अध्यक्ष देश का प्रधानमंत्री होता है.प्रशासनिक कार्य एक उपाद्यक्ष तथा आयोग के अन्य नियुक्त तथा वैतनिक सदस्यों के निरीक्षण में होता है.कुछ अंशकालीन सदस्य मंत्री परिषद से भी होते हैं.यह एक सामूहिक समिति के रूप में कार्य करता है.उपाध्यक्ष योजना समन्वय योजना मूल्यांकन प्रशासन तथा आर्थिक विभाग के अंतर्गत विषयों का अधिकारी होता है.पूर्णकालिक सदस्य किसी एक ग्रुप के अधिकारी होते हैं ..उद्योग श्रम यातायात एवं शक्ति ग्रुप,कृषि एवं ग्रामीण विकास ग्रुप,दृष्ट योजना ग्रुप,तथा शिक्षा वैज्ञानिक अनुसंधान एवं सामाजिक सेवा ग्रुप.

नई गठित संस्था के लिए कुछ सुझाव यह हैं..

संवैधानिक अस्तित्व अवश्य हो .इसे विभिन्न मंत्रालय के अधिकारियों से अनिवार्य रूप से विचार विमर्श की ज़रुरत ही ना पड़े.सदस्यों की नियुक्ति योग्यता और विशेषज्ञता (तकनीक और बौद्धिक) को ध्यान में रख कर हो.सदस्यों की अपेक्षित योग्यता और नियुक्ति के मानदंड तथा प्रक्रिया का लिखित विवरण अवश्य हो ताकि वे कभी भी मनमाने ढंग से नियुक्त या हटाये ना जा सकें. राजनीति प्रशासन से इसे पूर्णतः अछूता रखा जाए ताकि किसी भी प्रकार के दलगत आरोप प्रत्यारोप से संस्था मुक्त रहे और अपने कार्य की पारदर्शिता बरकरार रख सके.सरकार बदल जाने पर भी इस संस्था में बदलाव ना हो और यह अपने कार्य को निर्बाध पूरा कर सके और लक्ष्य प्राप्ति की दिशा में अनवरत प्रवाहित रह सके.इस के तीन ही विभाग हों..प्रथम संस्था के निर्माण और रूप रेखा से सम्बंधित…दूसरा, क्षेत्रीय अनुसंधान कर कार्यों और लक्ष्यों की प्राथमिकता तय कर इसे क्रियान्वित करने — प्रशासनिक कार्यों से सम्बंधित विभाग हों ,और तीसरा  मूल्यांकन और नियंत्रण से सम्बंधित –तय समय सीमा के दौरान मॉनिटरिंग और कार्य पूर्ण होने पर मूल्यांकन करने वाले ….ये तीनों ही विभाग अलग अलग हों .सदस्यों और विभागों का रूप मात्रात्मक नहीं अपितु गुणात्मक हों ताकि संस्था के काम काज में मितव्ययिता बनी रहे.प्रोफ़ेसर श्री मन्ना नारायण जी की मानें तो “लोगों को इस बात का पूर्ण विश्वास होना चाहिए कि कराधान तथा सेवा शुल्क वगैरह के माध्यम से उनके द्वारा दी गई प्रत्येक पाई का उन के कल्याण और विकास के लिए समुचित रूप से व्यय होगा….”सबसे मुख्य बात साधनों के बंटवारे की होती है .चूँकि वित्त मंत्री बजट से सीधे तौर पर जुड़े होते हैं यह कह कर साधनों का वित्तीय बंटवारा उनकी जिम्मेदारी में दे देना उचित नहीं .अभी तक वित्तीय साधनों का बंटवारा वित्तीय आयोग की सिफारिशों पर किया जाता है पर कुछ मामलों में बंटवारा योजना आयोग भी कर देता है अतः वित्तीय साधनों के आबंटन में दुहरापन आ जाता है .इसके लिए किसी अन्य बौद्धिक वित्तीय विशेषज्ञ समिति को यह कार्य सौंपा जाए.यह एक लचीली संस्था हो जिसमें तेजी से आये वैश्विक और राष्ट्रीय स्थानीय परिवर्तनों के साथ समुचित परिवर्तन किया जा सके चाहे वह लक्ष्य निर्धारण से सम्बंधित हो या साधनों के आबंटन से सम्बंधित और ऐसा तभी संभव है जब इसे राजनीतिक प्रभाव से दूर रखा जाए.इसे सलाह मशवरा देने ,नियंत्रण रखने और दिशा निर्देशन के लिए एक निकाय की स्थापना हो जिसमें एक एक आर्थिक,सामाजिक,राजनितिक,वैश्विक,तकनीक विशेषज्ञ हों और चार या पांच थिंक टैंक हों ..देश में ईमानदार तथा दक्ष मनुष्यों की वृद्धि किये बिना बड़े पैमाने पर कोई भी कार्य करना और उसका समुचित प्रतिफल पाना संभव नहीं.इस संस्था के अध्यक्ष के रूप में कोई एक ऐसा व्यक्ति हो जो अर्थशास्त्री,वित्तीय विशेषज्ञ,तकनीक जानकारी,समाजशास्त्री होने के साथ साथ एक उच्च कोटि का जननीतिज्ञ भी हो .इस पद को देश का प्रधानमंत्री ही बखूबी निभा सकता है क्योंकि वह जनता के ही फैसले से आता है और उस जनता के कल्याण के प्रति उसकी पूर्ण जवाबदेही होती है.

संस्था के निर्माण में सार्वजनिक उत्साह और सहयोग की कोई कमी ना हो क्योंकि जैसा कि प्रोफ़ेसर लुइस कहते हैं ,“सार्वजनिक उत्साह किसी भी योजना को चिकनाने वाला तेल और आर्थिक विकास का पेट्रोल दोनों ही है-अर्थात एक गत्यात्मक शक्ति जो सब कुछ संभव बनाती है.“ और सबका साथ ;सबका विकास ‘के लक्ष्य के मद्देनज़र हमारे माननीय प्रधान मंत्री जी ने इस सार्वजनिक उत्साह से जन जन को लबरेज़ कर दिया है.


नई सोच की दिशा में एक नया कदम

नवदृष्टि लिए संस्था का हो नव रूपांतरण

विकास के सुगन्धित फूलों से अब

महक उठेगा अपना यह गुलशन

हमारा अभियान प्रगति पथ

सपनों ने है भर ली एक नई उड़ान

एक ही दिशा में हैं सबके चिंतन

सहयोगिता और सहभागिता ही

बन गई है हर दिल की धड़कन

हमारा अभियान प्रगति पथ

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