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दिल कहे रूक जा रे रूक जा …..

V2...Value and Vision
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मेरे प्रिय ब्लॉगर साथियों/पाठकों
विश्व पर्यटन दिवस के अवसर पर प्यार भरा नमस्कार

च कहूँ तो जीवन स्वयं में ही एक यात्रा है…माँ के गर्भ से …शमशान के कब्र तक का …सफर एक पर्यटन ही तो है..जीवन के विभिन्न पड़ाव ,विभिन्न अनुभव और स्वयं यह पृथ्वी …इससे बड़ा पर्यटन स्थल भला और क्या हो सकता है !!! हिन्दी फिल्मों की दुनिया तो सफर के गीतों के दार्शनिक अंदाज़ से भरी हुई हैं..आदमी मुसाफिर है…, इस मोड़ पर आते हैं कुछ ….,सुहाना सफर और ये मौसम हसीं…, ज़िंदगी एक सफर है सुहाना…., आदि

मुझसे अगर कोई पूछे पृथ्वी पर पसंदीदा जगह कौन सी हैं तो मेरा ज़वाब होगा …रेलवे स्टेशन,एयर पोर्ट,बस स्टॉप और श्मशान घाट….जो ज़िंदगी के अथाई और स्थायी सभी सफर के साक्षी स्थान होते हैं.किशोरावस्था से जीवन का दर्शन बने ये चार स्थान मुझे आकर्षित करते रहे हैं.मिलते हुए लोगों के चहरे की खुशी,बिछड़ते हुए लोगों का दुःख जीवन की समझ को कितना स्पष्ट कर देता है…

निदा फ़ाज़ली का यह अंदाज़ कितना सटीक लगता है…

वक़्त के साथ है मिट्टी का सफर सदियों से
किसको मालूम,कहाँ के हैं ,किधर के हम हैं

हालांकि अब रेलवे स्टेशन के दृश्य पहले से नहीं होते …इंसानी चेहरे में कुछ पाने की तलाश ख़त्म हो गई है .लैप टॉप और मोबाइल की दुनियां ने इसका स्थान ले लिया है .अब पुस्तक भी बहुत कम लोग ही पढ़ते हैं ,आपसी बातचीत कुछ तकनीक सुविधाओं ने तो कुछ आपसी विश्वास की कमी ने बहुत कम कर दी है या यूँ कहूँ कि लुप्त ही कर दी है.यथार्थ की दुनिया को टटोलना अब हमारा शगल नहीं रहा …..ऐसा करना पिछड़ेपन की निशानी माना जाने लगा है.मुझे तब बहुत दुःख होता है जब पर्यटन स्थल के लिए जाते वक़्त इंसानी विश्वास के घायल होने के भय के साये में हम किसी से बात चीत नहीं कर पाते .उस विशेष जगह की यात्रा ख़त्म की और फिर होटल के कमरे में बंद हो कर टी वी देखने लग जाएं .इसलिए मैं थोड़ा जोखिम उठाती हूँ वहां के स्थानीय लोगों को समझने निकल जाती हूँ.प्रत्येक महीने थोड़ी धन राशि बचा कर वर्ष में एक बार पर्यटन के लिए निकलने की योजना को टी वी देख कर कभी ज़ाया नहीं करना चाहती .टी वी तो कभी भी कहीं भी देख सकती हूँ पर उस स्थान विशेष तक आना विशेष योजना से ही संभव हो पाता है.

दिल कहे रूक जा रे रूक जा यहीं पर कहीं ,जो बात इस जगह है वो कहीं पर नहीं .मेरे लिए ऐसा एक पर्यटन स्थल है ‘हमारा घर ‘.

मुझे स्थानांतरण कभी बोझिल नहीं लगता .छोटे छोटे सुदूर स्थानों में रहते हुए आस पास के पर्यटन स्थल की यात्रा बहुत सुखद एहसास देते हैं.विभिन्न लोगों से मिलना इसानी संवेदनाओं को समझने उसे महसूस करने का सशक्त माध्यम है.प्रत्येक नए स्थान की नवीनता बारिश की फुहार बन मन मस्तिष्क को भिगो जाती है और उस स्थान के बाशिंदे ,कलाकृतियां ,प्राकृतिक सुरम्यता ,पहनावा ,भाषा,खान पान ,आधुनिक विकास से लबरेज़ संस्कृति और परम्परा की यादें सप्तरंगी इन्द्रधनुष बन एक अनमोल धरोहर बन जाती है.जी चाहता है ऐसे कई इन्द्रधनुष एकत्र करती चलूँ.जिन पलों में नए स्थान नहीं मिल पाते तब घर की चारदीवारी में ही जीवन के वैविध्य रंगों से रूबरू होना अच्छा लगता है.एक आत्मिक यात्रा जो कभी खुद के अंतस में कभी किसी रोचक पुस्तक के साथ पूरी होने लगती है.

‘अतिथि देवो भव’ के सद्भाव ने विश्व के कोने कोने की संस्कृति सभ्यता को आत्मसात कर अपनी अस्मिता को अक्षुण्ण रखते हुए पर्यटन भूमि के रूप में स्वयं को समृद्ध किया है .वर्त्तमान भारत उन सभी धरोहरों के साथ साथ आधुनिक विकास से जुड़े कई दृश्यों को अपने विशाल आँचल में समेटे भविष्य को गढ़ने को तैयार है .उत्तर में हिन्दुकुश पर्वत से दक्षिण के हिन्द महासागर की यात्रा तक कश्मीर,शिमला,कुल्लू मनाली आदि सदृश बर्फीली पर्वतीय वादियों ,धार्मिक स्थलों केदारनाथ,बद्रीनाथ,मानसरोवर ,ऋषिकेश,अादि के साथ के रामेश्वरम ,ऊटी,दक्षिण के विश्व विख्यात मंदिर मीनाक्षी,तिरूपति ,पदमनाभ आदि के साथ कई ऐतिहासिक महत्व के क्षेत्र मैसूर,हम्पी,श्रीरंगपट्ट्नम ….पूरब के शिलौंग,दार्जिलिंग,सिक्किम की सुरम्य वादियाँ,पश्चिम के द्वारका,जयपुर जोधपुर उदयपुर चित्तोड़,एलिफेंटा ,मुम्बई आदि और मध्य भारत के खजुराहो,पन्ना ,कान्हा किसली आदि पर्यटन स्थलों की सूची इतनी लम्बी कि देखने के लिए बार-बार इस पावन भूमि पर जन्म लेना पड़े . पर्यटन उद्योग के क्षेत्र में भारत के विकास की असीम संभावनाएं आज भी विद्यमान हैं.भारत पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र क्यों था यह इन कुछ पंक्तियों से साबित हो जाता है…..

सिकंदर से कहा सुकरात ने जब हिन्द में जाना
हमारे वास्ते भारत से कुछ सौगात ले आना
जहां तक हो सके तुझसे ले आना कृष्ण की गीता
शहंशाह भूल मत जाना कहानी राम अरु सीता
यद्यपि मुश्किल से आएगा वो गंगाजल भी ले आना
जिसे पीकर ऋषियों ने वेदों के तत्व को जाना
वहां से बांस की एक बांसुरी भी ज़रूर ले आना
बजा कर हम भी देखेंगे कि कैसा स्वर वो मस्ताना
वहां जाकर सिकंदर बृज की धूल भी ले आना
कि जिसमें लेटकर बृजवासियों ने ब्रह्म को जाना
हमारे वास्ते भारत से एक ज्ञानी गुरू भी लाना
सीखेंगे हम भी सच्चिदानंद रूपी ब्रह्म को पाना

(संकलित पंक्तियाँ)

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जीवन-एक यात्रा 'गर्भ से कब्र तक'

कुल्लू मनाली की बर्फीली पर्वतीय वादियों से दीघा, पुरी के भीगे रेतीले समुद्र तट…की प्राकृतिक सुषमा …खजुराहो की खूबसूरत शिल्प से ,एलिफेंटा के अतुलनीय गुफा कला ….कोणार्क के सूर्य मंदिर से ….अमृतसर के गुरुद्वारा तक ….विभिन्न स्थानों के पर्यटन के उन्माद में भागते … कभी कभी पैदल चलते हुए थक कर भी थकान का एहसास ना करते हुए ….मैंने एक सबसे सन्तोषजकनक बात जो महसूस की वह यह कि भौतिक यात्राएं हमें सुख ज़रूर देती हैं पर खिलते और परिष्कृत हम आत्मिक यात्रा से ही होते हैं .एक पर्यटन स्थल ऐसा जिसकी यात्रा इंसान अपने जीते जी प्रायः और कुछ यदा कदा ज़रूर करता है …अकेलेपन की स्याह रोशनी में बगैर किसी टिकट ,वीज़ा,पासपोर्ट के की गई उस रहस्यमयी पर्यटन स्थल का वृतांत ना वह लिख सकता है ना किसी को सुना सकता है …बस स्वयं ही समझता है.वह है अपने मृत्यु स्थल के पर्यटन भूमि की यात्रा .

crematorium ,
railway platform,
bus stop…airport
four places
to me
most attractive
spots of meeting & separation
reveal
two aspects of life
very clearly
renew the life
enrich us
nourish each moment
they are great witness of
the coverage of
the whole journey
with flow of time .

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