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स्किल @ गुड पे स्केल विद ‘वैल्यू’

V2...Value and Vision
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मेरे प्रिय ब्लॉगर साथियों
आज engineers डे है जो महान अभियंता मोक्षगुंडम विश्वेशरैय्या जी की याद में मनाया जाता है जिनका जन्म 15  सितम्बर 1860  को हुआ था १७ सितम्बर को विश्व कर्मा जी की जयन्ती भी मनाई जाएगी .जीविकोपार्जन से जुड़े आप सभी लोगों को विशेष कर इंजीनियर्स साथियों को मेरी बहुत बहुत शुभकामना .रोज़ी रोटी के लिए अपने गाँव शहर छोड़ कर देश विदेश के कोने कोने में कार्यरत लोगों के सामने कुछ आज मैं एक बहुत ही अहम प्रश्न रखना चाहती हूँ .डॉक्टर्स डे ,टीचर्स डे इंजीनियर्स डे हम मनाते हैं पर क्या कभी स्किल से जुड़े टेलर्स डे ,प्लम्बर्स डे,कार्पेंटर्स डे ,पोर्टर्स डे ,स्वीपर्स डे ,कुक्स डे ,मैकेनिक्स डे ,ड्राइवर्स डे ,मना कर किसी भी एक स्किल को हमने सम्मान दिया है. ????


एक सेठ जी के पास बड़ी मिल थी.लाखों लोगों के जीविकोपार्जन का केंद्र ,लाखों का उत्पादन और सेठ जी करोड़ों में खेलते थे.एक बात ज़रूर थी कि वे अपने कर्मचारियों का बहुत ध्यान रखते थे.अचानक एक दिन मिल बंद हो गई .मिल में कार्यरत कर्मचारियों ने बहुत कोशिश की पर मिल चालू ना हो पाई.सेठ जी ने कर्मचारियों से किसी ऐसे व्यक्ति को ढूंढ कर लाने कहा जो मशीन ठीक कर दे .अगले दिन एक कर्मचारी एक ऐसे युवक को लेकर आया जो बहुत ही साधारण दिखता था और किसी भी खराब पड़ी मशीन को ठीक करने का दावा कर रहा था.उसने सेठ जी को कहा,”मैं मशीन ठीक तो कर दूंगा पर पूरे 15,000 की धन राशि लूँगा.”सेठ जी उत्पादन के नुकसान को ध्यान में रख हामी भर दी.उस युवक ने अपने पास से एक हथौड़ा निकाला ,मशीन का सूक्ष्म निरीक्षण किया और एक विशेष स्थान पर हथौड़ा मारा और मशीन चल पड़ी.अब बारी सेठ जी की थी .वे पैसे देने से मुकरने लगे…उन्होंने कहा,”बस एक हथौड़े मारने का 15,000क्यों दूँ?” युवक ने हँस कर कहा,”इसलिए कि हथौड़ा मारना तो सब जानते हैं लेकिन कहाँ मारना है यह तो विशेषज्ञ या कुशल व्यक्ति ही जानता है 15,000उसी कुशलता की कीमत और विशेषज्ञता का मोल है.”

दोस्तों,हम सभी को शैक्षणिक डिग्री के साथ कोई ना कोई विशेषज्ञता या कौशल ज़रूर हासिल करना चाहिए जो निजी लाभ के साथ साथ सार्वजनिक लाभ की दिशा में भी सहायक हो सके.हमारे प्रधान मंत्री जी ने भी कौशल विकास ( skill development )पर जोर देने की बात कही है.
Copy of Desktopपर आप सब एक बार गौर से सोचिये क्या स्किल्ड जॉब को हमारा समाज बहुत सम्मानित करता है?क्या किसी सूटेड बूटेड बढ़ई,प्लम्बर,मोची ,कुक इत्यादि को आप ने देखा है?क्या डॉक्टर्स डे ,इंजीनियर्स डे की तरह कभी भी हमने कार्पेंटर्स डे,प्लम्बर्स डे ,ड्राइवर्स डे ,पोर्टर्स डे,स्वीपर्स डे या स्किल से जुड़ा कोई भी दिवस मनाने का ख्याल हमने कभी भी किया है ?आज तक तो कभी नहीं .
दरअसल हमारी मनोवैज्ञानिक और आर्थिक आदत है अगर किसी भी सेवा या वस्तु के साथ हाई प्राइस टैग लग जाए तो उसका हमारे लिए मूल्य बढ़ जाता है .सड़क पर सजी दुकानों में लगी शर्ट सस्ती है तो कोई ध्यानाकर्षण नहीं कर पाती पर वही सम्मान के साथ मॉल में बिकने को चली जाए तो अभिजात्य वर्ग भी उसे खरीदने को तैयार हो जाता है इसलिए आज सर्वाधिक ज़रुरत यह है किस्किल डेवलपमेंट की बात के साथ स्किल @ गुड पे स्केल विद वैल्यू ( कौशल का आर्थिक और नैतिक विकास ,अच्छे वेतन पैमाने और उसके कौशल के सम्मान ) की भी बात हो .
इस सन्दर्भ में कुछ बहुत ही अहम बिन्दुओं पर ध्यानाकर्षण आवश्यक है.

सस्ती श्रम शक्ति नहीं बल्कि आर्थिक,नैतिक,सामाजिक रूप से सशक्त श्रम शक्ति के रूप मेंबाज़ार के लिए उपलब्ध कराया जाए.इसके लिए मानव संसाधन के विकास का भवन चार मज़बूत स्तम्भों साक्षरता,कुशलता,अनुसंधान और विकास पर तैयार करना होगा.प्रत्येक नागरिक को सही अर्थों में साक्षर बनाया जाए ( देश की भाषा ,क्षेत्रीय भाषा के साथ विश्व स्तर पर प्रचलित भाषा में लेखन पाठन और बोध क्षमता विकसित हो ),जिस भी कुशलता या दक्षता का प्रशिक्षण दिया जाए वह घरेलू बाज़ार के साथ वैश्विक बाज़ार की मांग और आवश्यकता के अनुरूप भी हो इसके लिए विशेष अनुसंधान कर ही उसका विकास किया जाए.

2) आज ट्रॉली वाले बैग्स ने कुलियों की संख्या कम कर दी है , चमकते (glossy waxy )पैकेजिंग में बंद स्नैक्स ने ताज़ा भुना स्नैक्स तैयार करने वाले गली गली में खुली दुकानों को बंद कर दिया है,रेड़ी मेड कपड़ों ने कुछ हद तक मुहल्लों के दर्जियों को बेकार कर दिया है.ज़रुरत है इन पारम्परिक व्यवसायों को कायम रखा जाए .इन्हे वर्त्तमान बाज़ार की मांग के अनुसार तैयार किया जाए .जमशेदपुर शहर के बाज़ार में कुछ स्नैक्स (भुना चूड़ा मूंगफली,सत्तू,चना इत्यादि)बनाने वाले बैठते हैं .उसने दो बच्चों को बाहर पढने भेज दिया है एक बच्चे को पुश्तैनी व्यवसाय सीखा दिया है .वह अपने भुने स्नैक्स को बहुत ही अच्छी पकैजिंग करते हैं और बिलकुल फ्रेश माल ही बेचते हैं .शहर के प्रत्येक कोने से लोग वे स्नैक्स खरीदने वहीं आते हैं इसी प्रकार वहां एक फकीरा ब्रांड के नाम से भी स्नैक्स खूब बिकते हैं.ऐसे ही मुझे घर पर आने वाला एक कबाड़ी वाला याद आता है माँ उसे टीन के पुराने कनस्तर दे देती और वह बहुत ही कुशलता से उन टीन को जोड़ कर बॉक्स/ट्रंक बना देता था.ज़रुरत है उन सभी पारम्परिक कौशल को वर्त्तमान बाजार के अनुसार विकसित किया जा सके .

3) लोगों को अपने यहां काम करने वाले घरेलू सहायकों/सहायिकों को भी बेहतर काम करने का कौशल विकसित करना चाहिए.अच्छे साफ़ सुथरे ढंग से कम तेल मसालों में पौष्टिक भोजन कैसे बनाना है,उसे किस तरह परोसना है,गैस का किफायती इस्तेमाल किस तरह करना है,सब्जियां कैसे धोनी है,एप्रन का इस्तेमाल ,साफ़ तौलिये का प्रयोग सिखाना ज़रूरी है.अगर स्थानांतरण के दौरान हम कहीं और चले गए तो ये सिखाई हुई बातें उसे काम की कुशलता से अपने हक़ में रूपये पैसे का मोल भाव करने में मदद कर सकेंगी. मेरी एक रिश्तेदार हैं उन्होंने घर पर वाशिंग मशीन नहीं रखा है .पूछने पर कहती हैं घर आकर कपडे ले जाने वाले धोबी के जीविकोपार्जन का क्या होगा .

मैं जब भी टी वी पर अपराध से जुड़े समाचार या कार्यक्रम देखती हूँ तो पाती हूँ कि अपराध को अंजाम देने वालों में कुछ घरेलू सहायक,ड्राइवर
,प्लम्बर,केबल ठीक करने या बिजली का काम करने वाला,या ऐसे ही कोई स्किल से जुड़े लोगों का नाम आ जाता है.यह सच है कि ऐसी कुशलता या व्यवसाय से जुड़े सभी लोग अनैतिक और अवैधानिक काम या सीधे अर्थों में कहे तो ऐसी अपराधिक प्रवृत्ति के नहीं होते पर यह भी एक कटु सत्य है कि दिल्ली के जघन्य दामिनी काण्ड को एक बस चालक ,एक मैकेनिक ने ही अंजाम दिया था .देश की जनसख्या का 65 % भाग 35  वर्ष से नीचे आयु वर्ग का है.इनमें कौशल विकास के साथ नैतिक मूल्यों का विकास भी बहुत ज़रूरी है ताकि कुशल,अनुशाषित मूल्यों से लबरेज़ श्रम शक्ति तैयार हो . इन्हे काम देने में इनकी नैतिकता पर कोई संशय ना हो और विश्वास के साथ इन्हे राष्ट्र्रीय और अंतराष्ट्रीय बाज़ार के लिए उपलब्ध किया जा सके .इसके लिए साथ में इन्हे कौशल विकास के साथ नैतिक मूल्य और फिर काम लगाने पर अच्छी पे स्केल भी दी जाए ताकि इनके मूल्य किसी आर्थिक परेशानी में भी डावांडोल ना हो पाएं.

5) एक वक़्त था जब ढ़ाका के मलमल के विषय में भारत शान से कहता था कि यह इतना महीन होता है कि एक थान मलमल माचिस की डिब्बी में या हाथ की कनिष्ठा में लपेटा जा सकता है. आज भी कई ऐसे हस्त कौशल हैं जो बहुत सुन्दर हैं पर या तो उनका वाज़िब दाम देने को लोग तैयार नहीं या फिर उन्हें मिलते जुलते सस्ते कच्चे माल से बनने वाले उसी आवश्यकता को पूरे करने वाले सस्ते उत्पादों से प्रतिस्पर्धा करनी पड़ रही है और ऐसे परम्परागत सुन्दर हस्त कौशल पराजित हो जा रहे हैं.ज़रुरत है उन हस्त कौशल को वर्त्तमान तकनीक विकास से जोड़ कर बाज़ार और मानवीय मनोविज्ञान से उनका ताल मेल बिठाया जाए .एक ऊनी कालीन नए डिजाईन की सिंथेटिक रेशों से बनी सस्ती कालीन से प्रतिस्पर्धा में पिछड़ जाती है तो इसके लिए ज़रूरी है कि विज्ञापन का सहारा लेकर ऐसे कुशल लोगों को वाज़िब खरीदार तक पहुँचाया जाए ताकि उनकी कारीगरी की वाज़िब कीमत मिल सके और क्रेता सही और विक्रेता के बीच की दूरी मिट सके.

6 ) कम्पनीज एक्ट २०१३ के अंतर्गत कंपनियों को अपने शुद्ध लाभ का 2% CSR ( Corporate   Social Responsibility   पर खर्च करना अनिवार्य है इसके तहत साक्षरता को कौशल विकास के साथ जोड़ कर ऐसे कुशल लोग तैयार किये जा सकते हैं जो स्थानीय ज़रूरतों के अनुकूल हों और उन्हें आस पास के कल कारखानों ,कुटीर उद्योगों या स्व रोजगार जैसे वैज्ञानिक ढंग से तकनीक का प्रयोग करते हुए मुर्गी पालन,मधुमखी पालन ,दर्ज़ी बढ़ई जैसे कौशल से जीविकोपार्जन में मदद मिल सके.एक साक्षर अपने कौशल की दिशा में सही मायनों में शिक्षित भी हो सके उसे डिजिटल फ्रैंडली बनाया जाए ताकि वह बैंक से सम्बंधित काम ,बाज़ार से सम्बंधित विपणन के काम को वैश्विक स्तर पर समझ कर उसे स्थानीय लोगों को उच्च स्तरीय गुणवत्ता के साथ उपलब्ध करा सके इससे उसका कौशल अच्छे वेतन पर आधारित हो जाएगी.

7) हमारे देश में लगभग प्रत्येक आयोजन सेलिब्रेट होते हैं.क्या कांच और लाह की चूड़ी बनाने वालों के लिए ,पीतल के बर्तन तालों को बनाने वालों के लिए कभी कोई प्रदर्शनी आयोजित की जाती है क्या मोची,बढ़ई,दर्ज़ी , चालक इन्हे सम्मानित करने के लिए कोई विशेष दिन का आयोजन किया जाता है ?ज़रुरत समाज में ऐसे स्किल को सम्मान और पहचान देने की है .प्रधानमंत्री जी के ‘मेक इन इंडिया ‘का नारा भी तभी सफल हो सकता है.

सामाजिक जागरूकता से जुड़ा कोई भी अभियान कौशल को भी अगर जोड़ सके तो बेहतर होगा .यहां मैं नमो चाय पर चाय चर्चा का ज़िक्र करूंगी .इस अभियान में अगर मिट्टी के कुल्हड़ का प्रयोग प्लास्टिक ,पेपर और थर्माकोल की कप के जगह होता तो पर्यावरण फ्रेंडली अभियान के साथ यह कुम्हार के कौशल से जुड़कर उनका भी सम्मान और आय बढ़ा जाता और पेपर के लिए वृक्ष भी कटने से बचते ;अवशेष कुल्लहड़ की मिट्टी माटी में मिल जाती.

उसे सही अर्थों में स्किल @ गुड पे स्केल विद वैल्यू के मापदंड पर खरा तैयार किया जाए .मानव संसाधन को विकसित करने का यही नैतिक,आर्थिक,सामाजिक और तात्कालिक तकाज़ा है .

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