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हिन्दी की ‘मलयज शीतलाम ‘(१४ सितम्बर )

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collage2मेरे प्रिय ब्लॉगर साथियों
हिन्दी दिवस पर आप सभी को हार्दिक शुभकामना
दोस्तों ,इस वर्ष मैं हिन्दी दिवस के अवसर पर बहुत प्रसन्न हूँ.इसकी दो ख़ास वजहें हैं;प्रथम हमारे प्रधान मंत्री जी के द्वारा प्रत्येक राष्ट्रीय अंतराष्ट्रीय सम्बोधन पर राष्ट्रभाषा को ही माध्यम बनाना जो कि सम्पूर्ण भारत देश को अपनेपन के सूत्र से जोड़ पा रहा है .दूसरी ख़ास वज़ह यह कि मैं पहली बार दक्षिण भारत में रहने के लिए आई हूँ.और लगभग हर पांचवे उत्तर भारतीय की तरह मेरा भी यही भ्रम था कि भारत देश के इस भाग में हिन्दी कम प्रचलित है .पर मैं आप सब को बताने में बहुत गर्व महसूस कर रही हूँ कि यहां भी लिंक भाषा के रूप में अंग्रेज़ी नहीं बल्कि अपनी राष्रभाषा हिन्दी का ही प्रयोग होता है.
अब एक वाक्या बताती हूँ .हुआ यूँ कि यहां एक महिला जो पिछले २० वर्षों से रह रही थी उसके पुत्र ने १२ वीं तक की शिक्षा यहीं के सीबीएसई बोर्ड के विद्यालय से ग्रहण की अब उसे बाहर जाने के लिए कुछ कागज़ी कार्यवाही पूरी करवानी थी जब वह सरकारी कार्यालय पहुँचा तो एक कर्मचारी ने उसे कहा,”२० वर्षों से यहां रह रहे हो कन्नड़ भाषा नहीं आती .”उस लडके ने ज़वाब दिया ,” अंकल, मैं अगर कन्नड़ ना जानूँ तो मेरा काम चल जाएगा पर अगर आप हिन्दी भाषा नहीं जानेंगे तो इस राज्य से बाहर जाने पर लोगों को अपनी बात समझने के लिए आपको कदम कदम पर मुसीबत आएगी .आप तो जन्म ही भारत देश में लिए हैं ,आपको हिन्दी भाषा नहीं आती ?” उसके बाद उन कर्मचारी ने हिन्दी भाषा में ही बात की .दरअसल अहिन्दी भाषी क्षेत्रों में हिन्दी भाषा की अनभिज्ञता नहीं बल्कि अपने क्षेत्र ,राज्य की भाषा का अस्तित्व बचाने का प्रयास रहता है जो हमें भ्रमित करता है कि उन क्षेत्र या राज्य के बाशिंदे हिन्दी भाषा नहीं जानते.कुछ बेहद स्थानीय लोगों को छोड़ कर अमूमन सभी लोग काम से काम काम चलाऊ हिन्दी का ज्ञान अवश्य रखते हैं .

मेरे यहां एक माली काम करता है जिसे सिर्फ कन्नड़ भाषा आती है .यह बात और है कि मुझे भी सिर्फ हिन्दी आती है फिर भी बगीचे का काम प्रतिदिन बखूबी सम्पन्न हो जाता है .मैं हिन्दी के शब्द और वाक्य बोलती हूँ साथ में इशारों से अभिनय कर उसे वह समझती हूँ अब वह उन सभी चीज़ों को हिन्दी भाषा से ही समझता है और जब कहीं मुश्किल आती है तब काम पर आने वाली घरेलू सहायक जिसे हिन्दी भाषा का ज्ञान है वह हमारे बीच अनुवादक का काम कर देती है. आपको यहां यह बताने पर मुझे पुनः गर्व हो रहा है कि वह महिला कन्नड़ भाषा से स्नातक है .

हिन्दी हमारी कथनी करनी और लेखनी की भाषा है.मुझसे अक्सर लोग एक प्रश्न करते हैं,”आप हिन्दी भाषा की प्रबल समर्थक हैं फिर भी अपना फेस बुक अकाउंट और वैल्यू पेज दोनों में ही अधिकतर अंग्रेज़ी भाषा का प्रयोग करती हैं .ऐसा विरोधाभास क्यों ?”अब यहां मैं एक पढ़ी हुई घटना का ज़िक्र करती हूँ.collage1

गांधी जी अपने वर्धा आश्रम में रूकने के दिनों में ब्रह्म मुहूर्त में ही नित्य क्रिया से निवृत हो कर ,थोड़ा पत्र लेखन वगैरह कर प्रतिदिन आगुन्तकों से भेंट करते थे. एक दिन एक अँगरेज़ सज्जन उनसे मिलने आये.चूँकि वे थोड़ा बहुत हिन्दी भाषा जानते थे अतः उन्होंने गांधी जी से हिन्दी भाषा में ही बात चीत शुरू की.परन्तु गांधी जी उनसे अंग्रेज़ी भाषा में बातचीत जारी रखे हुए थे.जब वे सज्जन जाने लगे गांधी जी ने अंग्रेज़ी भाषा में ही उन्हें सम्मान सूचक शब्द कहे.अब उन सज्जन से रहा ना गया उन्होंने पूछ ही लिया,”महात्मा जी,मैं तो आप से हिन्दी भाषा में बात करता रहा ,तहज़ीब यह कहती है कि जिस भाषा में बात किया जाए ज़वाब भी उसी भाषा में दिया जाए पर आप तो अंग्रेज़ी भाषा में बात करते रहे,ऐसा क्यों “गांधी जी ने ज़वाब दिया,”मान्यवर,आप की बात बिलकुल सही है पर जब आप मेरी मातृभाषा के प्रति इतना सम्मान,आदर और प्रेम रखते हैं तो मैं भी आपकी भाषा का आदर करूँ यही तहज़ीब है .”यह सुन कर वे सज्जन गांधी जी के प्रति और भी श्रद्धावान हो गए .

वस्तुतः भाषा हमारी अभिव्यक्ति का माध्यम है .हमारे विचार ज्ञान के वाहक होते हैं.ज्ञान के प्रसार के रूप में कोई भी भाषा आदर युक्त होती है.अंग्रेज़ी भाषा का प्रयोग हिन्दी भाषा के प्रति बेरूखी कभी नहीं है बल्कि ज्ञान के सागर में गंगा जमुनी संस्कृति का मिलन है.किसी भी अन्य भाषा को सीखने या प्रयोग करने से अपनी भाषा के प्रति सम्मान और महत्व काम नहीं होता अपितु द्विगुणित हो जाता है क्योंकि उन अन्य भाषाओं के ज्ञान को हम हिन्दी भाषा के माध्यम से प्रसार करते हैं और हिन्दी भाषा में अथाह ज्ञान सागर को जान जान तक उस अन्य भाषा के माध्यम से पहुंचा सकते हैं.

मेरे प्यारे साथियों ,हिन्दी भाषा की लहर जो अभी चल रही है उसने सोशल मीडिया के माध्यम से उन शेरो शायरी कविताओं ग़ज़ल गीत कहानियों लोकोक्तियों को भी पुनर्जीवित कर दिया है जो हमारी नई युवा पीढ़ी इतिहास के पन्नों पर देखने वाली थी.आज वे सभी विधाएँ हिन्दी भाषा में प्रतिदिन सैकड़ों पेज साइट्स के माध्यम से रोज़मर्रा की ज़िंदगी में शामिल होती जा रही हैं.

हिन्दी भाषा मुझे कई कारणों से बहुत प्रिय है सबसे प्रथम प्रशंसनीय बात है कि इस भाषा की शब्दावली और व्याकरण निश्चित ,बहुल और पूर्णतः स्पष्ट है .एक उदाहरण देती हूँ .हिन्दी भाषा में धर्म के लिए जो शब्द प्रचलित है वह अंग्रेज़ी के रिलिजन शब्द से बेहद व्यापक है ‘सनातन धर्म ‘सनातन अर्थात जो अनादि काल से चला आ रहा है और धृ अर्थात धारण करना जबकि रिलिजन faith से जुड़ा है और faith कभी भी इच्छानुसार ,परिस्थिति वश,बदल सकता है.हिन्दी भाषा का शब्द भण्डार बेहद सार गर्भित है.अंग्रेज़ी भाषा कि शब्दावली में छेड़ छाड़ संभव है और वह परिलक्षित भी हो रहा है ‘that’ dat हो गया ‘you’ u , ‘we’ v ,’express ‘ xpress ….पर क्या इतनी सहजता से हम हिन्दी को विकृत कर सकते हैं कभी भी नहीं वह मान्य भी नहीं होगा इसे अशुद्ध किया ही नहीं जा सकता है.

हिन्दी भाषा के मान सम्मान को बढ़ाने में इस प्रतिष्ठित अनुपम जागरण मंच का भी अमूल्य योगदान है.हिन्दी भाषा माँ गंगा की तरह पावन है.राष्ट्रीय नदी गंगा उत्तर भारत के राज्यों से बहती उन्हें ही संचित करती है पर हिन्दी भाषा की गंगा तो उत्तर ,दक्षिण पूरब पश्चिम चतुर्दिक दिशा में बोलचाल के रूप में प्रवाहमान है.

collage3मैं इस प्रतिष्ठित मंच से अपने ब्लॉग के माध्यम से प्रधान मंत्री जी से सविनय निवेदन करना चाहती हूँ कि इस ‘हिन्दी दिवस ‘के अवसर पर वे देश के सभी राज्यों में यह नियम अनिवार्य बना दें कि किसी भी सूचना दायक बोर्ड पर (रैलवे स्टेशन,माइलस्टोन या दुकानों बाजारों के बाहर लगे बोर्ड पर ) लिखी सूचनाओं शब्दों और वाक्यों को उस राज्य की राजभाषा,और अंग्रेज़ी भाषा (जो प्रायः मैंने ओडिशा,पश्चिम बंगाल और अब कर्नाटक में देख रही हूँ) के साथ साथ अनिवार्य रूप से हिन्दी भाषा की देवनागरी लिपि में लिखा होना एक नियम बना दें .इससे उन सभी साक्षर लोगों को लाभ पहुंचेगा जो कि अपनी मातृभाषा या राष्ट्रभाषा हिन्दी से तो साक्षर हैं पर अंग्रेज़ी भाषा की रोमन लिपि से अनभिज्ञ हैं .ऐसी परेशानी मैं ने महसूस की है जब अन्य राज्यों में आने पर राजभाषा में ही लिखे सूचना बोर्ड को मैं साक्षर और शिक्षित होने के बावजूद पढने में पूर्णतः असमर्थ थी.(अभी कन्नड़ भाषा मेरे लिए मुश्किल है )अन्य राज्यों के स्थानीय लोग भी जब दक्षिण भारत या ओडिशा,बंगाल जैसे राज्यों में जाते हैं तो उन्हें अंग्रेज़ी या वहां की राजभाषा में लिखे शब्दों को पढने में असमर्थता महसूस होती है. अगर मेरा यह सन्देश प्रधान मंत्री जी तक पहुँच जाए तो मैं अपने इस अनुपम मंच की बहुत बहुत आभारी रहूंगी.इस अनुपम मंच से जुड़े वैचारिक यात्रा के सभी सहयात्रियों को हिन्दी दिवस पर पुनः बहुत सारी शुभकामना

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