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ट्रिप्लेट ऑफ़ ‘ टॉयलेट,टैप,ट्रेनिंग ‘

V2...Value and Vision
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माननीय प्रधानमंत्री जी ने स्वाधीनता दिवस और शिक्षक दिवस दोनों ही अति विशेष अवसरों पर जिस एक बहुत ही तुच्छ समझे जाने वाले मगर बेहद ज़रूरी मुद्दे को जनता के सामने रखा और अपनी संवेदनशीलता से अवगत कराया …..वह है शौचालय की व्यवस्था .

शौचालय से सम्बंधित स्वच्छता महिलाओं के लिए आत्मसम्मान के साथ सुरक्षा से भी जुड़ा मुद्दा है.घर पर शौचालय के अभाव में सामान्य महिलाओं के अलावा गर्भवती महिलाओं और महीनों के कुछ विशेष दिनों का सामना करने वाली महिलाओं को बहुत दिक्कत हो जाती है.है.प्रियंका ने जब शौचालय के अभाव की वज़ह से अपनी ससुराल छोड़ी तो लोग हँसते ताना देते थे ,”कैसी महिला है इतनी छोटी सी बात के लिए ससुराल छोड़ आई पर उसके पति ने उसकी सही सोच में उसका साथ दिया.स्वयं प्रियंका के शब्दों में ‘”पति ने कहा मैं सोच ही नहीं पाया कि शौचालय से सम्बंधित समस्या इतनी महत्वपूर्ण है.”और आज सब प्रियंका को कहते हैं ,”तुमने बहुत नाम कमाया अच्छी सोच की दिशा में लोगों को ले गई.” .बैतूल.कुशीनगर सभी स्थानों से महिलाओं ने आवाज़ उठाई .श्री बिन्देश्वरी पाठक जी ने सुलभ शौचालय की दिशा में कदम उठाया था .आज ज़रुरत है शौचालय प्रत्येक घर में हों .आंकड़े बताते हैं कि बिहार के ७६% झारखण्ड के ९२% छत्तीसगढ़ के ७५% घरों में शौचालय नहीं हैं .कई गाँव में शौचालय बनाये गए पर उनमें से कुछ साफ़ सफाई के अभाव में इस्तेमाल नहीं होते ,कुछ बारिश के दिनों में उपले रखने और मवेशी बांधने के लिए इस्तेमाल हो रहे हैं.गाँव के कई विद्यालयों में भी यह आधारभूत सुविधा नहीं है पर जहां है वहां के भी हालात ऐसे हैं कि उन शौचालयों का इस्तेमाल करना बहुत मुश्किल है.गन्दगी से पटे शौचालय अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराते हैं पर इस्तेमाल नहीं हो पाते. इसके पीछे दो मुख्य समस्या है …प्रथम; पानी के टैप की समुचित व्यवस्था का अभाव और दूसरी टॉयलेट ट्रेनिंग की कमी. शौचालय इस्तेमाल के बाद उसे साफ़ छोड़ने की व्यवस्था सरकार का काम नहीं बल्कि इस्तेमाल करने वाले का सामजिक और नैतिक कर्त्तव्य है.हम सब जानते हैं एक कुत्ता भी अगर किसी स्थान पर बैठता है तो उस स्थान को पहले अपनी पूँछ से साफ़ कर देता है फिर वहां बैठता है .जब एक जानवर गन्दगी से परहेज़ रखता है तो हम सब तो इंसान हैं क्या हम इस्तेमाल कर शौचालय को औरों के इस्तेमाल के लिए साफ़ नहीं छोड़ सकते हैं.?विद्यार्थियों को पठन पाठन के अतिरिक्त इस बात की शिक्षा देनी भी ज़रूरी है.कल ही इसी मुद्दे से सम्बंधित कार्यक्रम में टी वी पर बच्चों के इंटरव्यू देख रही थी .जब एक बच्ची से पूछा गया कि टॉयलेट इतना गंदा है आप इस्तेमाल कैसे करते हो …तो उसका सीधा ज़वाब था,”हम इसे इस्तेमाल नहीं करते …हम घर से ही फ्रेश होकर आते हैं.” ऐसे में वाकई यह एक चिंतनीय विषय है कि इस्तेमाल करने के लिए बने संसाधन का इस्तेमाल क्यों नहीं हो रहा है और यह उस संसाधन पर लगे निवेश की बर्बादी है कि नहीं .लोगों में जागरूकता लाना ज़रूरी है.

गाँव या सरकारी विद्यालयों की ही बात नहीं है यह गैर जिम्मेदाराना व्यवहार हम शिक्षित लोगों में भी देखते हैं.एक मॉल के सिनेमा हॉल में मेरा सामना ऐसी ही एक महिला से हुआ .मैं जब उस अत्यंत साफ़ -सुथरे टॉयलेट के इस्तेमाल के लिए गई तो वहां की सफाई कर्मचारी ने लगभग चिल्ला कर कहा,” ओ मैम , आप भी नीचे फर्श को गंदा मत करना .” ऐसी बात सुन कर स्वाभाविक था कि किसी को भी नाराज़गी होती . मैंने अपने परिधान को देखा शायद साड़ी ब्लाउज में सलीके से आँचल संभालती मैं उसे कुछ असभ्य सी लग रही होउंगी…पर मेरा यह भ्रम दूर हुआ क्योंकि उसकी भनभनाहट जारी थी जिसे मैं अंदर से साफ़ साफ़ सुन सकती थी ..वह बड़बड़ाये जा रही थी…”चली आती हैं जींस टॉप में आधुनिक बन कर और तमीज के नाम पर शून्य हैं बच्चों को टॉयलेट ट्रेनिंग भी नहीं दे सकतीं मेक अप देखो तो इतना ज्यादा .” अब मुझे उसकी नाराज़गी स्पष्ट समझ में आ रही थी .मैंने अपनी सहेली से कहा ,”यार यह तो गलत बात है कितना साफ़ यह टॉयलेट है और शिक्षित सभ्य लोग भी इसे गंदा करने से बाज़ नहीं आते .”उसने लापरवाही से कहा ,”छोड़ ना यार,क्या फर्क पड़ता है ;उसे इसी काम के लिए रखा गया है और उसे पैसे भी मिलते हैं और तू ना अपने अंदर की ये समाज सेविका को मार दे वरना एक दिन खुद मरेगी .” अजीब सी बात थी .मैं सोचती रही जहां सारी सुविधाएं होने पर भी लोग टॉयलेट का इस्तेमाल जिम्मेदारी से नहीं करते फिर जहां पानी के नलों की सुविधाएं नहीं होती होंगी वहां तो शौचालय बस कंक्रीट का कूड़ादान ही होता होगा.ऐसा कितनी बार हुआ है कि सफर के दौरान किसी ढाबे होटल या सड़क के किनारे बने टॉयलेट का इस्तेमाल हम सिर्फ इसलिए नहीं कर पाते कि अपनी ज़रुरत पूरी हो जाने पर किसी ने दूसरों की ज़रुरत का कोई ख्याल नहीं किया था.कितनी बार तो ढाबों या होटलों के मालिक को कहते सुना है ,”क्या करूँ मैडम अब महिलाओं को कुछ बोल भी नहीं सकते ,हमेशा तो स्वीपर खड़ा नहीं रहेगा वह दिन में एक बार साफ़ कर चला जाएगा .”बात उनकी बिलकुल सही है .हमारी खुद की नैतिक जिम्मेदारी की शिक्षा पर मैं क्षुब्ध हो जाती हूँ .

अपने घरों में हम प्रतिदिन स्वयं ही शौचालय की सफाई कर लेते हैं और सार्वजनिक शौचालय के प्रति कोई जिम्मेदारी नहीं रखते हैं.हमें स्वयं को ,अपने बच्चों को यह प्रशिक्षण देना ही होगा कि टॉयलेट्स का होना एक महत्वपूर्ण बात है पर उसको साफ़ रखना हमारी नैतिक जिम्मेदारी है.पक्के फर्श पर पड़े मल बीमारी का कारण होते हैं और होटलों ढाबों के आस पास तो भोजन पर भी यह गन्दगी असर करती है.अगर सार्वजनिक स्थानों पर हमारी ज़रुरत का ध्यान रखा जाता है तो यह हमारा कर्त्तव्य है कि हम उस ज़रुरत के संसाधन के प्रति सामाजिक और नैतिक जिम्मेदारी अवश्य रखें .अगर समय पर ये संसाधन उपलब्ध ना हों तो हम सब मुश्किल का सामना करते हैं फिर भी इसे इस्तेमाल के बाद साफ़ सुथरा नहीं छोड़ते यह हमारी बहुत बड़ी भूल है.

चलिए हम सब प्रधानमंत्री जी की इस संवेदनशीलता के साथ अपनी समझदारी ,सामाजिक जिम्मेदारी की जुगलबंदी करें और स्वच्छता के लिए 3 टी के triplet ( toilet , tap , training ) को अपनाएं .टॉयलेट के निर्माण के साथ पानी के टैप की व्यवस्था हो और इसके साफ़ सफाई रख रखाव की ट्रेनिंग लें भी दें भी . इसे इस्तेमाल के बाद साफ़ छोड़ा जाए ताकि दूसरों को इसे इस्तेमाल करने में कोई असुविधा न हो .

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