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आशिकी मौत से……क्यों ?

V2...Value and Vision
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यह गौरतलब है कि ज़िंदगी की लड़ाई में शादीशुदा जल्दी हथियार डाल देते हैं राष्ट्रीय अपराध बयूरो की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक़ वर्ष २०१३ में अपनी जीवन लीला का खुद अंत करने वालों में ६९.४% विवाहित थे .वर्ष २०१३ में आत्महत्या के १,३४,७९९ मामले दर्ज़ किये गए थे.पिछले वर्ष ६४,०९८ शादीशुदा पुरुषों ने जान दी जबकि २९,४९१ विवाहिताओं ने यह कदम उठाया.

यह बदलते पारिवारिक ,सामाजिक ,आर्थिक परिदृश्य की भयानक परिणति है. इसके कई कारण हैं.विवाह पूर्व देखे सुनहरे स्वप्न सच्चाई के धरातल पर जब चोट खाते हैं तो उसे सहन करने की शक्ति युवाओं में नहीं होती.एक अजीब सी रंग बिरंगी मुखौटों वाली दुनिया में युवा विचरण करते हैं . वे यह सर्वथा भूल जाते हैं कि पति पत्नी होने के साथ वे एक मनुष्य भी हैं जिन्हे सुख दुःख में पूरी मानवीयता के साथ एक दूजे का साथ देना है .आपसी बातचीत ,बड़े बुजुर्गों के सलाह मशवरा से वे पूर्णतः गुरेज़ करते हैं.वक़्त से पहले नसीब से ज्यादा पाने की अंधाधुंध दौड़ उन्हें असफलता के ठोस ज़मीन पर जब पटखनी देती है तब भी वे एक दूसरे का हाथ नहीं थामते बल्कि परस्पर दोषारोपण कर रिश्ते को और भी विषाक्त बना लेते हैं.आपसी संबंधों पर अविश्वास,पुराने संबंधों की परत खोलने की बेमानी कवायद, बड़ों की दखलंदाज़ी से क्रुद्ध होना,परस्पर जज़्बातों की अवहेलना ,आपसी संवादहीनता,दुःख पीड़ा को झूठे मुस्कराहट के पीछे छुपाने की रस्म अदायगी ,भौतिकता के भौंडे प्रदर्शन के लिए एक अजीब सा नशा …आज यही है शादीशुदा जीवन का असली चेहरा.मैं जब भी ऐसे रिपोर्ट पढ़ती हूँ कुछ इस तरह की पंक्तियाँ लिखने को विवश हो जाती हूँ …..

रंग-बिरंगे मुखौटों से सजा है आज बाज़ार इस कदर

कि शक्ल इंसान की देखने को तरसने लगे हैं लोग

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सिमट गए हैं दुनिया के ओर छोर भरे विस्तार में यूँ

अपनों से ही अपनापन की बेकली में जीने लगे हैं लोग

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हिसाब जब बेसब्र हो लगाने बैठते हैं अपने ग़मों का

चेहरे पड़ोसियों के ही सबसे पहले उधेड़ने लगे हैं लोग

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गलत कब है निकालना अपने पैरों में चुभे काँटों को

दुःख यह कि औरों की राहों में उन्हें फेंकने लगे हैं लोग

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कहकर कि खलल पड़ती है हमारे ख्वाब सजे नींद में

दूसरों की पीड़ा भरी कराह को रोकने लगे हैं लोग

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अपने दिल के तह तक जाने की मिलती नहीं मोहलत

जज़्बातों को धूल भरी चादर सा झटकने लगे हैं लोग

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आसाँ नहीं अपने हाथों से अपने ही कदम सम्हालना

फिर भी बिन पिए ही जाने क्यों बहकने लगे हैं लोग

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गुमनाम मौत से ही चुपचाप कर बैठते हैं आशिकी

आपसी शिकवे शिकायत से अब बचने लगे हैं लोग

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खोलते हैं बार-बार ज़मीन की तहें गहरी और गहरी

दफ़न लाशों को ही निकाल कर कुरेदने लगे हैं लोग

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सिसकी,आह,अश्क़ की तहरीरों में थी गम की नज़्म

तबस्सुम के नगमों में भी गम टटोलने लगे हैं लोग.

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विवाह एक पवित्र बंधन है जो दो दिलों को ही नहीं बल्कि दो परिवारों को भी जोड़ता है. वैवाहिक रिश्तों की जब दिखावटी या सजावटी सामान की तरह नुमाइश की जाती है ;इन रिश्तों का स्वयं ही दम घुटने लगता है ज़रुरत है हर सुख दुःख को स्वीकार करने की और अगर कोई भी हल ना समझ आये तो बड़े बुजुर्गों यहां तक कि पड़ोसियों और समाज की भी मदद लेने की…यूँ तो प्रत्येक वैवाहिक रिश्ते की अपनी जीवन शैली अपने अनुभव होते हैं फिर भी पड़ोसियों या समाज में अन्य लोगों की भी अहम भूमिका है कि वे विवाहित जोड़ों को उचित दिशा दिखाएँ उनके जज़्बातों की खिल्ली कभी ना उड़ाएं तभी दंपत्ति बेहिचक निःसंकोच अपनी समस्या बाँट सकेंगे और एक बेहतर समाज और परिवार की बुनियाद रखी जा सकेगी. वर्त्तमान परिदृश्य में आपसी संवेदनशीलता,संवाद ,विश्वास ,सहनशीलता ,एक दूसरे को स्वीकारने समझने और अपनत्व के साथ अपने-अपने अधिकार कर्तव्य की सीमा समझना अत्यंत ज़रूरी है.अगर वैवाहिक रिश्ते निभाने बेहद मुश्किल हो रहे हों तब भी अलग होना विकल्प है ना कि जान दे देना .

मनुष्य की ऐसी कोई समस्या नहीं जो आत्महत्या से हल हो सकती है .जीवन की समस्याओं का समाधान जीवन के धूप छाँह में ही है मृत्यु के आगोश में नहीं.

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