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पिंकी वर्सेज पिंकू (pink mentality;blue mentality )

V2...Value and Vision
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कुछ महीनों पूर्व एक मूवी आई थी ‘गुलाब गैंग’  जिसमें एक विशेष रंग गुलाबी के प्रतीक से महिला सामर्थ्य और शक्ति को प्रदर्शित किया गया था.इसी नाम से संपत जी ने एक समूह भी बनाया है.आज मैं  गुलाबी रंग को स्त्री जाति से विशेष रूप में जोड़ने पर चर्चा करना चाहती हूँ.मुझे याद है मेरी बिटिया को जब नर्सरी की कक्षा में एक बालिका विद्यालय में प्रवेश दिलाया गया तो वहां लड़कियों की यूनिफार्म गुलाबी रंग की ही थी. उस रंग की यूनिफार्म उसने कक्षा तीन तक पहना. बीच के वर्षों में उसने सह शिक्षा विद्यालय में प्रवेश लिया जहां ब्लू ,ग्रे ,मस्टर्ड अलग रंगों के यूनिफार्म अलग-अलग विद्यालय में थे . पुनः ग्यारहवीं में उसे बालिका विद्यालय में जो पोशाक पहनने को निर्देशित किया गया हालांकि वह मुख्य यूनिफार्म तो नीले और सफ़ेद रंग में था पर एक अन्य यूनिफार्म के एक रूप में गुलाबी टी शर्ट भी पहनने को मिली .

मैं सोचती हूँ गुलाबी रंग को स्त्री जाति से ही विशेष रूप में क्यों जोड़ा जाता है.जन्म के साथ लड़कियों के खिलौने ,पोशाक ,उपहार प्रायः पिंक ,गुलाबी रंग के ही होते हैं .अगर कोई पुरुष गुलाबी रंग की पोशाक पहने तो उसे girlish लुक के तमगे से नवाज़ कर उपहास का पात्र बनाया जाता है .बहुत प्यार से लडके का नाम पिंकू और लड़की का नाम पिंकी रखा जाता है तब रंग भेद तिरोहित हो जाता है .जब लड़कों के पिंक रंग आधारित नाम रखने में ऐतराज़ नहीं तो पोशाक का रंग गुलाबी या पिंक पहनने से गुरेज़ क्यों ? पिंक रंग पर ,गुलाब पर ,रोज पर शायद जितने नामकरण(रोज़,रोज़ी,गुलाबो,गुलबिया,पिंकी पिंकू ) हैं ,उतने किसी अन्य रंग पर नहीं कुछेक अवश्य मिलते हैं जैसे whitee ,ब्लैकी ,ब्राउनी आदि पर पिंक रंग के जितने इनकी संख्या नहीं है. ग्रेट गैबी का किरदार गैट्सबी के भूतकाल को याद करता हुआ कहता है “An Oxford man…like hell he is.he wears a pink suit.” गैट्सबी के पहले १९१८ का एक कैटेलॉग बच्चों की पोशाक के रंग के लिए विभेद कर पिंक लड़कों के लिए तथा ब्लू लड़कों के लिए यह कह कर चयन करता था “The generally accepted rule is pink for the boys and blue for the girls.the reason is that pink being a more decided and stronger color is more suitable for the boy,while blue which is more delicate and dainty is prettier for girl. ” नीले रंग को शांत और स्निग्ध मान कर इसे स्त्रीत्व से जोड़ा गया जबकि गुलाबी और लाल रंग को आक्रामक,उत्साहवर्धक और ऊर्जावान मान पुरुषत्व से जोड़ा गया था . अन्य जानकारी कहती है नीला रंग नीली आँखों वाले शिशुओं के लिए था और गुलाबी रंग भूरी आँखों वाले शिशुओं के लिए रखा गया. finamor कहते हैं ‘”हम गुलाबी रंग को लड़कियों से जोड़ कर देखते हैं दरअसल ऐसा द्वितीय विश्व युद्ध के बाद ही शुरू हुआ .”युद्ध के बाद पुरुष कार्य स्थल पर जाने लगे और स्त्रियां घर पर अपने शिशुओं के साथ रुकने लगीं और स्त्रीत्व गुलाबी रंग में सिमटने लगा शैम्पू,साबुन क्रीम ,पाउडर अन्य फैशन सामग्री, परिधान सभी गुलाबी रंगों में पैक किये जाने लगे .कुछ रंगों के चुनाव को स्त्री पुरुष की विभिन्न जैविक मस्तिष्क विकास को भी मानते हैं परन्तु लिसे एलियट ‘pink brain;blue brain ..how small differences grow into troublesome gaps ..and what we can do about it  ‘ के लेखक कहते हैं ,”लडके और लड़कियों का मस्तिष्क दरअसल विभिन्न होता नहीं है यह तो सामाजिक शर्तें और आदतें हैं जो वे बचपन से ही वे कुछ इस विभिन्नता से प्राप्त करने लगते हैं कि वे धीरे-धीरे अपने विशेष लैंगिक पहचान में ही सिमटने लगते हैं “यह अत्यावश्यक है कि लैंगिक विभेद के किसी भी आधार से अपने बच्चों को हम दूर रखें फिर वह पोशाक के रंग पर आधारित भेद ही क्यों ना हो .पओलोटी कहते हैं कि साठ और सत्तर के दशक में महिला उदारीकरण आंदोलन की परिणति के रूप में ऐसे कपडे रँगे जाने लगे जो स्त्री और पुरुष दोनों द्वारा बगैर किसी विभेद के पहना जा सके.पुनः १९४० से गुलाबी रंग लड़कियों के लिए चुने जाने लगे इसे विभिन्न परिवेश में संस्कृति का प्रभाव बताया गया .पर क्या यह महज़ संस्कृति का प्रभाव है या फिर जैविक विभिन्नताओं का प्रभाव यह जानने के लिए कुछ प्रयोग किये गए.नई कैसल यूनिवर्सिटी लन्दन में स्त्री -पुरुष के कुछ समूह को लाल हरे नीले पीले रंगों में बनते आयताकार टुकड़ों में से आयत चुनने को कहा गया .स्त्री पुरुष में से अधिकांशतः लोगों ने नीले रंग का चयन किया .जब उसी समूह को कई रंगों में से कुछ रंग चुनने को कहा गया तो पुरुषों ने विविध रंगों का चयन किया जबकि स्त्रियों ने लाल या लाल आधारित गुलाबी रंग का ही चुनाव किया. यह कहा जाता है कि ……

१ ) चूँकि नवजात शिशु का रंग गुलाबी होता है और माँ ही उस शिशु का ममत्व भरी आँखों से प्रथम दीदार करती है अतः वे गुलाबी रंग के प्रति आकर्षित होती है और ममत्व स्त्रियों का नैसर्गिक गुण होता है जो उन्हें गुलाबी रंग से जोड़ता है.

२) यह भी माना जाता है कि चूँकि स्त्रियां भोजन के रूप में फलों को चुनती थीं और अधिकाँश फलों और बेरियों का रंग लाल गुलाबी होता है अतः वे इस रंग के प्रति मोह रखती हैं.

गुलाबी रंग वास्तव में बेहद आकर्षक और प्रेम का भी प्रतीक होता है कहते हैं …प्रेम की रूमानी खूशबू जितना विस्तार गुलाबी रंग में पाती है उतना किसी और रंग में कभी नहीं पाती.हम अपनी बच्चियों को एक विशेष भावना पर आधारित रंग से तो बखूबी जोड़ देते हैं और जब वे प्रेम में पड़ जाती हैं तो हम अभिभावक कभी ऑनर किलिंग तो कभी अन्य तरीके से उस भाव को नेस्ताबूद करने पर आमादा हो जाते हैं .ओह ! कैसा विरोधाभास है .

३) २००३ का एक अध्ययन यह साबित करता है कि स्त्रियों की आँखें अन्य किसी भी रंग से ज्यादा गुलाबी रंग की और खींचते हैं जबकि पुरुषों की नीले रंग की तरफ आकर्षित होते हैं. डिज्नी प्रिंसेस के बाज़ारीकरण से तो गुलाबी रंग मीज़ल्स के रूप में विस्तार पाने लगा था.

४) कुछ देश और समाज में चूँकि लड़कों का जन्म सौभाग्य सूचक होता था और ऐसा माना जाता है कि नीला रंग आकाश का है जहां ईश्वर और अन्य भाग्य सूचक शक्तियां निवास करती हैं अतः नीले रंग से लड़कों को जोड़ा गया .

१९९० में अमेरिकी लेखक जॉन ग्रे ने स्त्री पुरुष से सम्बंधित एक नया मत दिया था “पुरुष मंगल ग्रह से आये जबकि स्त्रियाँ शुक्र ग्रह से आईं .”अब अगर ऐसा है तो पुरुष वर्ग को मंगल ग्रह का लाल रंग पहनने में संकोच नहीं होना चाहिए.

खैर, स्त्री पुरुष के सम्बन्ध और उनके पृथक पृथक वज़ूद का रंग निराला है हर रोज़ उसमें परिवर्तन होते हैं समय के साथ नए विचार,नई धारणा बनती जाती है .हाँ रंगों के मामले में रंग को रंग ही रहने दिया जाए इसे किसी लिंग भेद का शिकार बना बेरंग ना ही किया जाए तो अच्छा है.शुक्र है कि स्त्री पुरुष कार्य क्षेत्र और कार्य रूप में परस्पर तबदीली के कारण यह पोशाक रंग भेद कमज़ोर पड़ रहा है फिर भी आज भी नीला रंग का परिधान स्त्रियां तो पहन लेती हैं पर पुरुष वर्ग आज भी अपने परिधान का रंग गुलाबी रंग के रखने में संकोच रखते हैं .तब्दीली आई है पर यह एकतरफा ही है संतुलित नहीं है .

(ब्लॉग में उल्लिखित विभिन्न अध्य्यन नेट से साभार )

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