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तुम्हारे जाने के बाद

V2...Value and Vision
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सिगमंड फ्रायड का कथन है …
” i cannot think of any need in childhood as strong as the need for the father ‘s protection .”

पर क्या जब पिता को संरक्षण और देखभाल की ज़रुरत होती है तब बच्चे उसी तन्मयता और जवाबदेही के साथ तैयार हो पाते हैं .वे कौन सी परिस्थितियां होती हैं जो एक पिता को चार बच्चों की देखभाल का जिगर दे देती हैं पर चार बच्चों को पिता की देखभाल करने की संवेदनशीलता नहीं दे पाती.यह एक ऐसा प्रश्न है जिसका ज़वाब नई और पुरानी दोनों पीढ़ी चाहती है .संतान के जीवन में पिता का स्थान माता से किसी भी अंश में कम नहीं होता है .वे संतान को हर परिस्थिति में हिम्मत से जीवन जीने का मार्गनिर्देशन देते हैं . फिर भी क्या वजह है कि सफल ,सशक्त, आशावान, ऊर्जावान पिता भी अपने सांध्य काल में जीवन से हारने लगते है .यह सच है कि माता अपने जीवन के सांध्य बेला में उतनी हताश निराश नहीं होती जितना कि एक पिता हो जाते है.वह स्वयं को परिवार में उपेक्षित,समाज से कटा और दुनिया में बेहद असहाय महसूस करने लगते है. जीवन भर समाज में सक्रिय और अपने कार्य स्थल पर ऊर्जावान पिता जब सेवानिवृति लेते हैं तो उस पल के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं हो पाते .जीवन भर अपने मातहतों ,अपने बच्चों को आदेश देने वाले पिता यह स्वीकार नहीं कर पाते कि उन्हें अपने बच्चों के निर्देशन में भी चलना पड़ सकता है.
हमारे भारतीय पारिवारिक परम्पराओं में कुछ अजीब सी विसंगतियां भी हैं .इलाज के दौरान अगर पिता द्वारा सम्पूर्ण व्यवस्था करने पर भी संतान की मृत्यु हो जाए तो समाज पिता को कदाचित ही दोष देता है परन्तु अगर पिता के इलाज़ के दौरान संतान द्वारा सम्पूर्ण व्यवस्था करने पर भी अगर दुर्भाग्य वश पिता की मृत्यु हो जाये तो नात रिश्तेदार उसे संतान की बेरूखी,लापरवाही समझ बैठते हैं स्वयं संतान भी उस गुनाह से कभी उबर ही नहीं पाता जो उसने किया ही नहीं है.दूसरी बात कि पिता की जिम्मेदारी लेना बस पुत्र की जवाबदेही है पुत्री की नहीं यह भी उचित नहीं है .पुत्री को ऐसी किसी भी परंपरा का हवाला देकर अपनी जिम्मेदारी से मुंह नहीं मोड़ना चाहिए .सब कुछ ख़त्म हो जाने पर पिता की कमी का यह एहसास बहुत रूलाता है.
मेरे दृष्टिकोण में पिता एक वट वृक्ष की तरह( संतान को अत्यधिक संरक्षण देना ) नहीं होने चाहिए जो अपने साये तले किसी वृक्ष को पनपने और बढ़ने ही नहीं देता बल्कि वे एक नीम वृक्ष की तरह होने चाहिए जिसका हर भाग उपयोगी होता है उसी तरह पिता सांध्य काल में भी उतने ही महत्वपूर्ण बने रहे जितने जीवन के शेष समय में थे .
संतान द्वारा उन्हें वही मान सम्मान भी मिलना चाहिए जो उन्हें सदा से मिलता आया है.संतान सफलता की कितनी भी सीढ़ियां चढ़ जाए पर उसे यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि जीवन के प्रथम पायदान पर उसकी नन्ही उंगली को पिता ने ही थामा था.उनकी खुशी भले ही माता की तरह मुखर नहीं थी पर एहसास स्नेह से सराबोर था.संतान कितना भी व्यस्त हो पर पिता के लिए कुछ पल निकलना कोई मुश्किल नहीं . पिता और संतान का रिश्ता उतना पेचीदा नहीं है जितना इसे बना दिया जाता है .आपसी संवाद की कमी ही रिश्ते को जटिल बनाती है. पिता के सदा के लिए चले जाने के बाद जीवन में जो शून्य उभरता है दुनिया की तमाम खुशियाँ भी उसे कभी भर नहीं पाती हैं.यह मैंने महसूस किया है .

ये दुनिया के लश्कर
ये शानो शौकत के तिलिस्म
हुजूम….
जाने अनजाने चेहरों का
लगता है कितना..
बेमानी और बेमक़सद
एक तुम्हारे चले जाने के बाद .
तुम्हारी नामौजूदगी की मौजूदगी ने ही
ले लिया है इन सब का स्थान .
जाने के पहले
कितने बेबस थे तुम
कितने
लाचार..उदास…निराश
क्यों जकड लिया था मैंने
स्वयं को परंपराओं के बंधन में
स्वच्छंद खुले विचारों
आधुनिकता का दम्भ भरते
मेरे वे सारे कथन
क्यों ना उभर सके मेरे कर्म बन कर
पुत्र और पुत्री के फर्क में
क्यों उलझ गई थी मैं
थाम लिया होता तुम्हारा हाथ
रोक लिया होता तुम्हे
कम से कम जाने के पूर्व
तुम चैन से आख़िरी पल जी तो लेते
एहसास तुम्हारी नामौजूदगी के
मुझे ना इस कदर रूलाते .
मैं भी तो बन गई थी
औरों की तरह
भेद होता है कथनी और करनी में
मैंने भी तो कर दिया साबित .
लाखों की भीड़ में
दिखता है वही एक चेहरा
जिसने उंगली थाम कर
दी थी इतनी ऊंची विस्तृत उड़ान
अपने मूल्यों विचारों से
एक नई स्वर्णिम पहचान
में भी हूँ उतनी ही
बेबस…उदास…परेशान

तुम्हारे सदा के लिए चले जाने से
एक शून्य सा उभर आया है
उस दुनिया में …
जहां होते थे …सिर्फ मैं और तुम
तुम्हारे मूल्य..तुम्हारे विचार
मेरी लेखनी …मेरे उदगार
अब…..
उस दुनिया में दाखिल होते ही
मेरी रिक्तता…मेरी विवशता
आंसू बन उस शून्य को
लगती हैं भरने
नहीं कहूँगी कि तुम लौट आओ
तुम जानते हो क्यों
मैं तुम्हारे पास भी आना नहीं चाहती
बाँध दिया है तुमने मुझे
कुछ मायावी उत्तरदायित्वों से
बस तुम्हारे ही मूल्य
चाहती हूँ देना
उसे…
जो पुत्र-पुत्री के भेद से है कोसों दूर
क्योंकि हमारे लिए ना वह पुत्र है ..ना पुत्री
है बस एक संतान .

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