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दो दिन पूर्व एक हॉलीवुड मूवी देखा a night in the museum ‘बहुत मज़ेदार मूवी है.रात होते ही म्यूजियम की सभी निश्चल ,स्थिर वस्तुएं गतिमान चलायमान हो जाती थी जिस वस्तु के सामने खड़े हो वही जीवित हो जाए…सबसे मज़ेदार था लिलिपुट के निवासियों का जीवित होकर मुख्य किरदार को बाँध देना .मैं इस मूवी के विषय वस्तु को काल्पनिक नहीं बल्कि स्वानुभूति मानती हूँ.यह है तो पश्चिमॆ सोच की मूवी पर इसे रोज़मर्रे की ज़िंदगी में हम में से प्रत्येक व्यक्ति अनुभव करता है .
आपने अपने घर की दीवार और शो केस को अपने या फिर अपने प्रियजनों की याद से लबरेज़ तस्वीरों से सजा रखा है आप हमेशा जब भी उन तस्वीरों के पास से गुज़रते है क्या वे तस्वीर उस विशेष दिन, उस सुनहरे वक्त के साथ उसी स्थान तक आपको नहीं ले जाती .आप खींचे से उस तस्वीर के पास आते हो और वे तस्वीरें सजीव हो बोलने लगती हैं ..आपके ज़ेहन में गतिमान हो जाती हैं आप उनसे तादात्म्य स्थापित कर लेते हो.ईश्वर की मूर्तियां ,तस्वीरें हमें आशीर्वाद देती प्रतीत होती हैं तभी तो हम इनके सामने नत मस्तक श्रद्धावान हो जाते हैं.कभी कभी फेस बुक पर प्रोफइल पिक्चर एक मूक मुखर स्वस्थ सम्बन्ध की स्थापना कर लेते हैं.
किसी स्थान विशेष की तस्वीर के जीव ,पेड़ पौधे मुखरित हो जाते हैं आँखें बंद करने पर उन वृक्षों की शीतल छाया समुद्र की लहरों की शोर भरी नमी,दरिया से उठते ठन्डे झोंके झरनों से उठती मुखमंडल को भिगोते जल के कुछ छींटे हम महसूस करने लगते हैं.उन सारे स्थानों में जहां हम स्वयं चल कर गए थे तस्वीर देखते ही मन के पंखों पर सवार हो उड़ कर वहां पहुँच जाते हैं. कभी-कभी हम किसी स्थान पर होते हुए भी उस वक़्त पूरी सजगता से उस स्थान को जी नहीं वह क्षण पाते पर घर आते ही उससे जुडी कैमरे में कैद हर तस्वीर उसे पुनः जानने और समझने की मोहलत देती है.कदमों ने वहां मज़बूत निशाँ बनाये होंगे या नहीं पर मन तस्वीरों के माध्यम से ऊंची परवाज़ लेता है.यह क्षण हमें कितना समृद्ध कर देता है.एक कवि की कविता,एक लेखक की लेखनी,संगीतकार के सुर ,रिश्ते की डोर को समृद्धता ऐसे ही तो मिलती है.एक कामगार घर से कितना भी दूर हो घर पर मेज़ पर रखी उसके बच्चों उसकी प्रियतमा उसके परिवार की तस्वीरें उसके माथे की शमशीर को उसके प्रियजनों के संग गुज़ारे गए प्रत्येक लम्हों की शीतल खुशनुमा हवा के झोंकों से वाष्पित कर देती हैं.
मुझे याद है पापा के गुज़र जाने के बाद मैं उनकी एक ऐसी तस्वीर बनवाई जो उनके बहुत ही सहज रूप को प्रतिबिंबित कर रही है.सभी भी-बहनों को वंही तस्वीर दी.अब रोज सुबह ईश्वर की पूजा के साथ जैसे ही उस तस्वीर के सामने होती हूँ पापा की तस्वीर वह हर बात बोलती है जो मैं सुन सकती हूँ.हर कठिनाई से जूझने की शक्ति जाने कैसे आ जाती है.ऐसा लगता है पूरे जीवन सही मायनों में जीवन जीकर पापा चले गए और जीवन की अनिश्चितता का भान रखते हुए जी भर कर जीने की शिक्षा रोज दिए जाते हैं .उनकी तस्वीर रोज मुझसे बातें करती है.ठीक म्यूजियम के रखे वस्तुओं के सजीव होने की तरह ही तस्वीर से निकल कर घर के प्रत्येक जगह पापा मौजूद होते हैं.
इसी तरह अपनी प्यारी सी बिटिया की कई मासूम सी हंसती रोती खेलती पढ़ती खाती हुई तसवीरें घर पर लगी हैं.जब उन तस्वीरों के पास से गुजरती हूँ वे सजीव हो उठती हैं .बिटिया को मैंने कभी डांटा या फटकारा नहीं …सोचती हूँ उसके किसी भी गलती के लिए सर्वप्रथम मैं जिम्मेदार हूँ .वह तो मासूम है उसे सही गलत का एहसास कैसे होगा जब तक मैं उसे दुनिया की बातों को समझने उस पर विचार करने के लिए तैयार नहीं करूंगी.उसकी हर तस्वीर यही कहती है ,”माँ,मैं तो अज्ञानी नासमझ हूँ पर तुम्हारी प्यार भरी शिक्षा मुझे फटकार से ज्यादा समझ आएगी.”और सच मुझे कभी उसे फटकारने की ज़रुरत ही नहीं पड़ती. यह भी म्यूजियम की वस्तुओं की तरह उसकी तस्वीरों के सचल हो जाने का ही परिणाम है.
और एक बात अपने जीवन साथी के साथ कई सुरम्य स्थानों की मधुर स्मृतियों से लबरेज़ तस्वीरों के पास से गुज़रती मैं उन्हें भी बोलता हुआ ही पाती हूँ ,“हम अच्छी यादों के साथ खुश रह कर ज़िंदगी जीएं तो जीवन का प्रवाह कितना संगीतमय हो जाता है.”बस तस्वीरें मधुर यादों की तपिश से कुछ यूँ प्रभावित करती हैं कि कभी किसी बात पर नाराज़गी होते हुए भी क्रोध वैसे ही उड़ जाता है जैसे बगैर अपना कोई निशाँ छोड़े अग्नि की तपिश से कपूर जल कर ख़त्म हो जाए .
यहां तक कि किसी मृत प्रियजन की मूक तस्वीर भी आप के गुज़रते ही सजीव हो आप को जीवन की क्षणभंगुरता का एहसास करा जीवन बहुत सहज और सादगी से परिपूर्ण बना देती हैं .
किसी समारोह की तस्वीर ,कोई अवार्ड ,शील्ड ,कप आप में फील गुड का भाव भर देता है आप लाख निराश या हताश हों आपके घर पर रखी सजाई आपके द्वारा जीती ट्रॉफी आपको नई उम्मीद नए ज़ज़्बे से भर देती है.आलमारी पर रखी पुस्तकें मात्र अपने नाम से जो कि मुख पृष्ठ पर लिखे होते हैं आप से बात करने लगती है पुस्तक को खोले बगैर आप उससे और वह आपसे बातें करने लगती है.सॉफ्ट टॉयज भले ही डमी होते हैं पर अपने विषय में कुछ ना कुछ अवश्य कहते हैं उनके पास से गुजरते ही आप एक क्षण के लिए ही सही उनके शब्द को महसूस करते हैं.
तस्वीरों के अतिरिक्त स्थान स्थान से लाई खरीदी वस्तुएं जिनसे घर सजा रहता है वे यूँ तो मूक ही दिखती हैं पर हमारा मन जानता है कि वे भी बोलती हैं ..उस दूकान की यादें उस स्थान की स्मृतियाँ हमसे साझा करने लगती हैं.घर के कोने में रखा लाफिंग बुद्धा जब आपको हँसने पर मज़बूर कर देता है ,मोटे सेठ सेठानी की हिलती मूर्तियों के पास गुज़रते ही आप अपनी भी हंसी रोक नहीं पाते तब इस मूवी को हम अपने दिल के कितने करीब पाते हैं .
सच है दीवारों पर लगी तस्वीरें या अन्य सजावटी चीज़ें भी भले ही मूक दिखती है पर गौर करो तो वे सब बोलती हैं.मूवी में रात में ही वस्तुओं का सजीव होना भी बेहद प्रतीकात्मक है दरअसल रात इतनी निस्तब्ध होती है कि हर किये कार्य के आत्मविश्लेषण का अवसर देती है यही वह वक़्त होता है जब बड़ा से बड़ा अपराधी भी अँधेरे का लाभ उठा कर अपने दुष्कृत्यों पर रो सकता है.स्वयं से जुडी हर बात हर भावना को मनुष्य रात में अपने बेहद करीब सजीव होता देख सकता है.
पर इस तरह की भावना,मूवी और ब्लॉग को समझने के लिए बेहद संवेदनशील होने की ज़रुरत है.अन्यथा हर तस्वीर,शो पीस में सजी एक निर्जीव वस्तु है और कुछ नहीं.यह तभी संभव है जब जीवन सेकंड मिनट दिन सप्ताह वर्ष में नहीं बल्कि फ़ैदम में जिया जाए अर्थात जीवन की लम्बाई नहीं जीवन की गहराई का भान हो.
अंत में आप सब से एक सवाल ….
अनुपम मंच पर लगी तस्वीरों से क्या आप मूक मुखर स्वस्थ संबंधों में नहीं बंधते ???
सच है ना………………कि हर तस्वीर कुछ बोलती है.
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