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आहूति -अँसुअन की

V2...Value and Vision
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वर्त्तमान में आधुनिकता के सैलाब के बीच परम्परावादी धारणाओं को प्रयोगधर्मिता के साथ किस तरह चुनौती दी जा रही हैं उससे हम सभी रूबरू हैं हाल ही में आलिया भट्ट अभिनीत फिल्म ‘हाईवे’ देखी .एक ऐसी युवती की कहानी जो बचपन में अपने अंकल के द्वारा बाल यौन शोषण का शिकार होती थी पर अपने अपहरण के बाद अपनी ज़िंदगी को खुले वातावरण में पा कर बेहद खुश होती है अन्त में अपनी ज़िंदगी की उस कड़वी सच्चाई को जिस पर उसकी माँ ने भी चुप्पी साधने की सीख दी थी उसे सबके सामने यहां तक कि इस घटना के जिम्मेदार अंकल के सामने भी बयान करती है.इसी तरह फिल्म ‘क्वीन’ भी महिला के अपनी सोच और विवेकशील स्वछन्द जीवन पर आधारित कहानी है.

दोनों ही फिल्में खासा प्रभावित करती हैं.

पर यह आधुनिकता और परम्परा का विरोधाभास ही है कि नारी से सम्बंधित एक अन्य कड़वी समस्या के विरोध में ना कोई महिला मोर्चा कुछ कहने को तैयार है ..ना समाज ,ना मानवाधिकार संगठन और ना ही परिवार .इस विषय पर शायद आज तक कोई फिल्म भी नहीं बन सकी जो लोगों को इस बेहद भावुक विषय पर संवेदनशील बना सके.बस एक स्त्री इस समस्या का विष घूँट-घूँट पी कर तिल तिल मरने को विवश हो जाती है साथ में अगर कोई एक अन्य सदस्य मरता है तो वह एक अन्य नारी उस युवती की माँ होती है.

दोस्तों ,जिस मुद्दे पर लिखने जा रही हूँ वह भारतीय समाज में एक टैबू की तरह है.

अपनी एक सहेली की सत्य कथा बताती हूँ.अत्यंत सांवले वर्ण की सुन्दर नैन नक्श वाली और मध्यम वर्गीय परिवार से जुडी उस प्रतिभावान सहेली के विवाह में बहुत अड़चन आ रही थी वज़ह वही ….सुन्दर गौर वर्ण के मापदंड पर खरा ना उतर पाना ही था.कुछ दिनों बाद उसका विवाह हुआ, वर बहुत ही खूबसूरत होनहार नौजवान था .सहेली के माता पिता अपनी पुत्री की किस्मत और वर के माता पिता भलमनसाहत के लिए ईश्वर के प्रति कृतज्ञ थे .खैर,  उसकी खुशी पर हम सब बहुत खुश थे .पर कुछ दिनों के बाद एक अजीब सी बात सामने आई. सहेली की अच्छी शिक्षा और संस्कार का हवाला देकर वधू बनाने की सारी दलील बेहद कड़वी सच्चाई के साथ एक अमानवीय तरीके से सामने थी.दरअसल उन माता पिता का खूबसूरत होनहार पुत्र भारतीय विवाह परम्परा के दोनों अनिवार्य उद्देश्य (यौन संतुष्टि और संतानोत्पति) को पूरा करने में अक्षम था.कुछ दिनों बाद जब सहेली को इस बात का संज्ञान हुआ और उसने अपनी सासु माँ से यह बात बताई तो लडके की माता ने बेहद अमानवीयता से ज़वाब दिया,”तुम जैसी काली लड़की से विवाह ही कौन करता ???दहेज़ की रकम भी तो तुम्हारे भिखमंगे पिता जुटा नहीं सकते …अब यहां तुम्हे पूरे सम्मान के साथ मुफ्त में सिन्दूर और छत दोनों ही उपलब्ध है …यहीं रहो और मेरे बेटे की सेवा करो हम मर गए तो उसे कौन देखेगा और फिर सारी जायदाद तो तुम्हारी ही होगी.”पिता की आर्थिक अक्षमता ,तीन बहनों और एक भाई के खर्च का ध्यान और समाज के कई अनुत्तरीय प्रश्नों  की कल्पना कर सहेली ने इसे अपनी नियति मान स्वीकार कर लिया.पर कुछ महीनों बाद एक दिन वह बदहवास सी घर से बाहर निकल कर भाग कर सड़क पर आ गई.हमने उसकी मदद की ,उसे घर लाये .पूछने पर सारी बात सामने थी.वह बीमार लड़का अर्थात उसका पति अपनी अक्षमता से हीन भावना से ग्रसित हो सहेली से मार पीट करता था ,उसका किसी भी पुरुष से बात करना तक पसंद नहीं करता और उस दिन तो हद हो गई थी वह सील बट्टे के पत्थर से उसे मारने दौड़ पड़ा था.कुल मिला कर सहेली की जान खतरे में थी.हम सब ने तुरंत उसके माता पिता को सूचित किया और वे उसे घर ले गए .उसे सम्बन्ध विच्छेद कराया आज सहेली अपना डांस स्कूल चलाती है.

पर भारतीय समाज में जहां पहली शादी बगैर किसी शर्त के मुश्किल से हो पाती है वहां उसके श्याम वर्ण ,आर्थिक विपन्नता और अब तलाकशुदा के लेबल के बाद दूसरे विवाह की कल्पना तो पत्थर में दूब उगाने की ही बात है .एक लडके और उसके अभिभावक के क्षुद्र स्वार्थ ने एक ज़िंदगी को अभिशप्त कर दिया था.पर समाज ऐसे कृत्य को किस सूची में डाले ….समाज के लिए ना तो यह अनाचार है ….ना बलात्कार ….ना ही दहेज़ उत्पीड़न है.

अब दूसरी युवती की बात करती हूँ.संपन्न पिता और सुशिक्षित माता की होनहार संतान जो शिक्षा के लिए हॉस्टल भेजी गई पर माता पिता के संस्कारों का सदा सम्मान करती रही.उच्च शिक्षा के लिए देश से बाहर भी गई .भारतीय समाज में आधुनिकता की यह पहली पहचान होती है जब एक सुशिक्षित लड़की अपनी इच्छा से अपने लिए जीवनसाथी चुन लेती है.यह भी आधुनिक थी पर संस्कारों के साथ पली बड़ी थी अतः एक वर्ष के गहरे जान पहचान के बावजूद उसने होने वाले जीवन साथी से अंतरंग सम्बन्ध नहीं बनाये थे.एक संतुलित समझदार अभिभावक होने के नाते युवती के माता पिता ने पूरे धूमधाम से दोनों का विवाह सम्पन्न कराया.युवती अच्छी नौकरी करती थी .कुछ दिनों बाद यहां भी वही बात हुई भारतीय विवाह व्यवस्था की दोनों अहम उद्देश्य पूर्ण करने की शारीरिक अक्षमता उभर कर सामने आई.यहां ना तो दहेज़ की समस्या थी ना ही उत्पीड़न की …लडके का और उसके अभिभावक का बस एक लोभ था कि समाज में प्रतिष्ठा के साथ जीवन व्यतीत होता रहे .यहां भी लडके और उसकी माता की ज्यादा गलती थी .खैर बात पता चलने पर यहां भी वही किया गया.युवती भले की आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर थी पर माता पिता को उसे नैतिक संरक्षण देना ज़रूरी था .वे उसे वापस घर ले आये.

ऐसा भी होता है कि परिवार के ही किसी सक्षम पुरुष के साथ विवाहिता को सम्बन्ध बनाने को बाध्य किया जाता है ताकि उसके अक्षम पति की रुग्णता जगजाहिर भी ना हो और वंश परम्परा भी चलती रहे .पर इन सब अनैतिक ,अमानवीय प्रक्रिया में उस विवाहिता की प्राकृतिक रूप से उपजी भावनाओं के साथ सम्मान पूर्वक अपनी मर्जी से जीवन जीने के अधिकार का हनन होता है.

कि युवतियां कोई शिकायत नहीं करेंगी …धोखे से विवाह कर रहे हों …तो क्या ऐसे अनाचार से बचने का हल यह निकाला जाए कि विवाह के पूर्व अभिभावक अपनी बेटी को सिर्फ एक बार शुचिता का उल्लंघन करने की इज़ाज़त दे ताकि विवाहोपरांत उनकी पुत्री को ऐसी किसी अनपेक्षित समस्या से रूबरू ना होना पड़े.

दोस्तों ,संस्कारों में बंधी विवाह व्यवस्था पर अटूट आस्था रखते हुए मैंने कई ब्लॉग लिखे हैं और आज बहुत साहस कर एक छुपे कड़वी समस्या को उजागर करने की कोशिश की है क्योंकि हमारी बेटियां कोई यंत्र नहीं जिनमें श्रृंगार रस से उपजी कोई भावना नहीं या वे कोई पशु नहीं कि जिनके साथ बाँध दी गईं वह अच्छा हो या बुरा वहीं बंधी अपने जीवन की लीला समाप्त कर दें.वे भी एक मनुष्य हैं प्यारी सी संतान हैं …एक ज़िंदगी ….जिसे प्राकृतिक रूप से सहजता पूर्वक जीने की इच्छा है और यह उसका अधिकार भी है .ऐसे युवक और उनके माता पिता से आग्रह है कि वे अपने क्षुद्र स्वार्थ के वशीभूत किसी अन्य अभिभावक की प्यारी सी बिटिया की ज़िंदगी को आंसुओं के सैलाब में ना डुबोएं …ना ही किसी हंसती खेलती ज़िंदगी को मुर्दा बनाएं .संतान के दुःख दर्द कष्टदायक होते हैं पर ऐसी परिस्थितियों में अपने पुत्र की कमजोरी को स्वीकार कर उसे सम्बल दें ..अगर केयरटेकर के रूप में ही किसी को रखना हो तो कोई पुरुष को नियुक्त करें या फिर कोई ऐसी ज़रूरतमंद महिला जिसे वाकई सिर्फ छत और अपने बच्चों के लिए दो वक़्त की रोटी की ज़रुरत हो जिसके लिए यौन संतुष्टि और संतानोत्पत्ति दोनों ही उद्देश्य बेमानी हों .ईश्वर ना करे पर अगर दुर्भाग्यवश किसी बेटी के साथ ऐसी धोखे भरी घटना हो जाती है तो पुत्री के माता पिता को अपनी लाडली को पारिवारिक,सामाजिक आर्थिक,मानसिक ,भावनात्मक संबल देकर मज़बूत करना चाहिए नियति की विडम्बना मान उसे कभी भी ऐसे अभिशप्त जीवन जीने के लिए उसके हाल पर छोड़ना नहीं चाहिए .

लड़कियों को भी ऐसी दुर्घटनाओं को जीवन का दुःस्वप्न समझ नए सिरे से ज़िंदगी जीना चाहिए …मैं भले ही भारतीय परम्पराओं ,विवाह संस्था का भरपूर सम्मान करती हूँ पर इस बुरी स्थिति से बचने के लिए परिवार और समाज में लड़कियों के परिणय सूत्र में बंधने के पूर्व उनसे सिर्फ एक बार की जाने वाली प्रयोगधर्मिता (tried & tested )पर अब विश्वास करूंगी.ऐसे हालात से निबटने के लिए समाज को बदलना अपेक्षित है.जब अनैतिकता अपने चरम पर पहुँच जाती है तब उस का काट्य सिर्फ एक बार की विवेकशील अनैतिकता ही बचती है.

यह ब्लॉग आवाज़ है उस निरंकुश तानाशाह पुरुषवादी सोच के खिलाफ जो वक़्त बेवक़्त अपने प्यार की मीठी छुरी और नफरत की तेज तलवार से पग-पग पर नारी अस्मिता को लहूलुहान करता है कभी नारी का अंतर्मन घायल होता है तो कभी सम्पूर्ण वज़ूद ही समाप्त हो जाता है.

“अधिकार है हमारी मासूमों को

वे हिसाब रखें अपनी हर धड़कन की

पुत्रों की सुख वेदी पर क्यों तुम

हो देते आहूति उनके अँसुअन की ?”

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