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निर्जन टापू (कांटेस्ट)

V2...Value and Vision
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प्रिय ….

तुम्हे मेरी काव्य रुचि का भान तो प्रथम मिलन में ही हो गया था और सत्य तो यही है कि काव्य का भावनाओं से और भावनाओं से प्रेम का गहरा संबध है। यह प्रणय अभिव्यक्ति काव्य रूप में अपने पूर्ण निखार को प्राप्त करती है …अक्सर मैंने महसूस किया है कि विवाह उपरांत पति-पत्नी आपसी प्रेम अभिव्यक्ति की या तो जान बूझ कर उपेक्षा करते हैं या फिर यह सोचते हैं कि ऐसी प्रेमाभिव्यक्ति के क्या मायने हैं जब बच्चे जन्म ले लिए हैं या फिर बच्चे बड़े हो कर इन बातों को समझने लगे हैं .परन्तु आज मैं तुम्हे बताना चाहती हूँ कि नव युगल की प्रणयाभिव्यक्ति से भी ज्यादा ज़रुरत विवाह की व्यस्क होती उम्र को होती है क्योंकि प्रतिदिन के भाग दौड़ के मरूभूमि में यह दोनों को ही मरूद्यान सा सूकून देता है ..आपसी रिश्तों को अधिक मज़बूत और जीवंत बना देता है .तभी तो मैं इस प्रणयाभिव्यक्ति को निहायत ज़रूरी मानते हुए इसकी अपेक्षा भी रखती हूँ और इसकी प्राप्ति पर सूकून महसूस करती हूँ  क्योंकि विवाह संस्था और इससे उपजे प्रणय पर मेरा अटूट विश्वास है तुम ज़रूर सोच रहे होंगे कि आज मैं विवाह की १७ वीं वर्ष गाँठ मनाने के बाद ये कैसी बहकी बातें लिख रही हूँ पर यह अवसर मुझे किसी बहुत ही अज़ीज़ ने उपलब्ध कराया है ..आज मैं अपनी प्रणयाभिव्यक्ति छोटी छोटी कविताओं के माध्यम से तुम तक पहुँचाना चाहती हूँ.मेरे प्रति तुम्हारी प्रणयाभिव्यक्ति कई बार मैंने महसूस की है पर स्त्री ह्रदय चाह कर भी ऐसा नहीं कर पाता स्वयं को जान बूझ कर बच्चों और परिवार की जिम्मेदारियों में उलझाये रखने का बनावटी उपक्रम करता रहता है .आज मैं उन सभी उपक्रमों से स्वयं को आज़ाद करते हुए अपने दिल की गहराइयों में दबी हर खट्टी मीठी यादों को अपने सर्वाधिक पसंदीदा अंक सात में पिरो कर तुम्हे यह प्रणय काव्य की वरमाला पहना रही हूँ क्योंकि १७ में भी अंक सात अपना स्थान रखता है .

तराशना

घर लौट कर तुम्हारा
रोज़ यह पूछना
क्या किया सारा दिन ?
प्रेरित करता है मुझे
करूँ कुछ ऐसा
जो हो तुम्हारी
खुशी से जुड़ा

और फिर मैं
तन्मयता से जुट जाती हूँ
स्वयं को तराशने में
क्योंकि……….
एक नहीं अनगिनत बार
है कहा तुमने
यमुना ,
तुम मेरी सबसे बड़ी खुशी हो.

निर्जन टापू

रहना चाहती हूँ
मैं हमेशा तुम्हारे पास
गुज़रे कल को भी
चाहती हूँ जीना
आज के साथ
वो सुनहरे पल
जब तुम्हारे
हाथों की मज़बूती ने
शब्दों की शक्ति ने
मुझे दिया है हौसला
यह कह कर …..कि…
तुम मेरी शक्ति हो
जो कमज़ोर पड़ोगी तुम
कमज़ोर होउंगा मैं भी

हम मिले है दो तट से आई
दो अज़नबी नाव की तरह
जो…मझधार में भी हो
तो बन जाती हैं सहारा
हाथ थामे बढ़ जाती हैं
निर्जन टापू की तरफ.

तुम मेरे साथ हो

जब खूशबू भरी हवा मुझमें कैद हो जाती है
इंद्रधनुषी सप्त रंग मुझे रंगीन कर जाती है
फूलों की महक मेरे जीवन में समा जाती है
चांदनी छन कर मेरे वज़ूद को दमका जाती है
उषा की सिंदूरी लाली मांग में सिमटी जाती है
छोटी लाल बिंदी में बड़ी दुनिया समा जाती है …
सच कहूँ……
तब बहुत ही सुन्दर लगता है यह जीवन
कानों में मधुर सा संगीत जाता है बज
मुझे खबर हो जाती है …
तुम मेरे पास हो…तुम मेरे साथ हो.

लम्हे

एक रात जब भर लिया था मैंने
हथेलियों को
रात रानी के फूलों से
और महक उठी थी
दरोदीवार
तुमने हंसते हुए पूछा था
क्यों नहीं भाते तुम्हे
सुन्दर महकते लाल गुलाब
भा जाते हैं
रातरानी,मधुमालती
पारिजात और हरसिंगार
मैंने धीरे से कहा था…
क्योंकि..
ये सभी बहुतायत से खिलते हैं
तुम्हारे प्यार की तरह
आधिक्य में..खुशबूओं से भरे
जो
मेरे छोटे-छोटे हर लम्हे को.
सुवासित कर जाते हैं .

तुमसे शुरू;तुमसे ख़त्म

बिन मांगे ही…
दे दिया तुमने
आसमान का पूर्ण चाँद
बसंत सा भरपूर उन्माद
वर्षा की तृप्त फुहार
शीतल सहृदय बयार
मेरी ज़िंदगी में
दाखिल होकर
बता दिया तुमने
ज़िंदगी तुमसे शुरू हो कर
तुम्ही पर ख़त्म हो जाती है.


तुम साथ हो मेरे
अब ख्वाहिश नहीं मुझे कोई
तुम्हे छूना,तुम्हे निहारना
सम्पूर्णता से तुम्हे पाना
अपनी खुशी;अपने आंसू को
मैं से हम में
तब्दील होते देखना
मेरी हर ख्वाहिश पर लगा देता है
पूर्ण विराम.

यह अभिव्यक्ति लम्बी ज़रूर हो गई है पर यह अपने प्रेम की दीर्घता और चिरंजीव होने का अद्भुत एहसास है जिसे तुमने मुझे अनेक बार महसूस कराया है.

तुम्हारे साथ तुम्हारे पास
यमुना

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