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मेरे प्रिय ब्लॉगर साथियों
अपने शादी की वर्षगाँठ पर मैं इस प्रतिष्ठित मंच से जुड़े सभी दंपत्ति के लिए बहुत ही सुखद ,सुदृढ़ ,मधुर दाम्पत्य की दुआ और कामना करती हूँ.
बसंत के इसी सुहाने मौसम में मैं परिणय सूत्र में बंधी थी ….पतिदेव के रूप में जिसे पाया वह किस तरह ख्वाब में था यह अगले ब्लॉग में लिखूंगी पर आज इस कविता के माध्यम से अपने प्रेम का इज़हार ज़रूर करना चाहूंगी…..
आज से सत्रह वर्ष पूर्व जैसे
पतझड़ के बाद आई बहार
तुम मिले मुझे कुछ यूँ
ग्रीष्म उपरांत श्रावणी फुहार
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मिलना तुम्हारा यूँ लगता है
मिली जीवन को नई परिभाषा
हर लम्हा बन रहा अति सुन्दर
समझाई तूने प्यार की भाषा
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तुम्हारे जीवन जीने का सलीका
मुझे सदा ही भा जाता है
तुम्हारे संग जो गुज़ारे एक पल
उसे जीवन जीना आ जाता है
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क्यों कर कोई हो अपना -पराया
रिश्तों के मूल्य समझाते हो
अगर कभी जो भटकूँ पथ से
पलक झपकते आ जाते हो
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सुन्दर तन और सुन्दर मन
ईश्वर से उपहार मैंने पाया है
शुक्रगुज़ार हूँ हर लम्हे की
बस तू ही मन को भाया है
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तेरे संग चहकती रहूँ सदा
यही तमन्ना अब मेरी है
बड़ी नेमत मिली है प्रभु से
पूरी हुई मांग सब मेरी है.
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हम दो हमारी एक बिटिया
सुन्दर सा संसार हमारा है
पूरी हुई है हरेक आरज़ू
यह सच,नहीं कोई सपना है .
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माँ का अनमोल रत्न है तू
उसके दुलार से ना वंचित हो
माता-पिता के सेवा भाव में
तेरे हर पुण्य संचित हो
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प्यार,समर्पण और विश्वास का
सिलसिला दाम्पत्य में चाहिए
जीवन दरिया कल-कल बहे
हमें कुछ दुआ भी तो चाहिए
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हमेशा सजी रहे इसी तरह
तेरे अधरों पर मोहक मुस्कान
तेरा यह सुदर्शन व्यक्तित्व तो
डाले पाषाण ह्रदय में जान
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अस्तित्व मेरा जिस में खो जाए
तू ही बन जा अब वो ज़रिया
प्रियतम तू मेरा अनंत सागर है
मैं ही एक तेरी प्यासी दरिया .
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