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1)
मेनका और रम्भा
आनन के नभ पर फैलते
तुम्हारे ये घन कुंतल
जब हो जाएं
कपास की रूई से सफ़ेद……..भरना मत इसमें कृत्रिम रंग .
झील की गहराई लिए
सुंदरता से दीप्त
ये दो नयन हो जाएं जब
बुझे दीपक से
तब भी…………………लड़ना मत रोशनी से जंग.
दामिनी सी दमकती
ये दन्त पंक्तियाँ भी
एक-एक कर दे जाए
पीड़ा जनक विदाई……….जड़ना मत झूठे ३२ दन्त .
सुराहीदार गर्दन की
कंठ ग्रंथि से उठती
मधुर गहरी गहरी सी आवाज़
आभास देने लगेंगी
सितार,वीणा,गिटार के
कम्पित तार का ………….रोकना मत यह सप्त स्वर .
सुडौल,सुन्दर,स्वर्ण सी
दमकती काया
रह जायेगी
एक अस्थि पंजर मात्र
तब भी…………………………समझना मत मेरे प्रीत का अंत .
मेरी …
जन्म-जन्मान्तर की प्रेयसी
तुम्हारे …
अंतर्मन के सौंदर्य का मोती
जिसे..
तुम्हारे …
दिल की गहराइयों में उतर कर
पा लिया था मैंने
प्रथम मिलन में ही ….
वह दिव्य सौंदर्य
जीवित रखेगा सदा
तुम्हारे अंदर की
मेनका और रम्भा को.
2)
किरदार
गुलाब के विषय में
ठीक-ठीक कह लेते हो तुम
सुगंध से परिपूर्ण
सुन्दर है यह.
हाँ..यही है इसकी मौलिकता.
क्या हो सकते हो
इतने ही प्रमाणिक
किसी इंसान के लिए??
अंगुलिमाल ….वाल्मीकि
साधू संत….दुराचारी
कैसे हो जाता है ??
परिस्थितियां,समय,घटनाएं
इस कदर हो जाती हैं
असरदार…कि
हो जाता है
हैवान…इंसान
इंसान…हैवान .
फिर भी……
पहचानना हो …
किरदार
किसी इंसान का जब……..
परिस्थितियों की तुला पर
तौलने की कोशिश ना करना
परिस्थितियां भारी
व्यक्तित्व हो जाएगा हल्का
किसी अन्य की कसौटी पर
परखने की भूल ना करना
फंस जाओगे भ्रमजाल में
इसलिए कहती हूँ…….
केंद्रित होना बस
उसकी मौलिकता पर.
क्योंकि
गुलाब भी होता है
श्रीविहीन…
सर्द की बयार से
धूप की मार से
फिर भी….तुम उसे
गुलाब ही तो जानते हो
खूशबूदार…सुन्दर गुलाब.
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