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“तुम्हारा लिखा हुआ एक ब्लॉग अखबार में प्रकाशित हुआ है ,तुमने अच्छा लिखा है “फोन रिसीव करते ही मंजुला को अपने सबसे बड़े जेठ की आवाज़ सुनाई दी .कुशल क्षेम पूछ कर जेठ जी ने फोन काट दिया. कुल छह भाइयों में पांचवे भाई की पत्नी,मंजुला एक परम्परागत परिवार की सदस्य होने के कारण मर्यादा वश पति के बड़े भाइयों के समक्ष कभी मुखर ना हो पाती थी.हालांकि वह अपने इस परिवार में बहुत तब्दीलियां लाना चाहती थी.लेखन तो अल्पभाषी मंजुला के डी.एन.ए में था तकनीक विकास के अनमोल उपहार के रूप में ब्लॉग के द्वारा उसके विचार प्रवाह डायरी के पीले पन्नों से डिजिटल पेज तक का सफ़र कर स्वयं को तरोताज़ा अनुभव कर पा रहे थे.पिछले वर्ष जब लम्बी छुट्टियों में ससुराल गई थी तो जेठ जी की पुत्री ने बताया था ,”पापा आपके प्रत्येक ब्लॉग पढते हैं.”साथ ही यह खुशखबरी दी कि वह बाहर पढने जायेगी.आज उसे बेहद खुशी हो रही थी कि जिन तब्दीलियों को वह समाज में देखना चाहती है उसकी शुरुआत उसके घर से हो चुकी है.घर की लड़कियां बाहर पढने भेजी जा रही थी.देवरानी ने अपने परिवार को दो पुत्रियों तक सीमित कर दिया था,चचेरे देवर की शादी बगैर दहेज़ के होने वाली है. मंजुला आत्मसंतुष्ट थी.उसकी लेखनी जीवन प्रेम का सृजन कर रही थी.अपने जिस वास्तविक पहलू को वह प्रत्यक्षतः कभी ना अभिव्यक्त कर सकी,उसे अद्भुत तकनीक और अनुपम ब्लॉग साइट्स ने कितना मुखर कर दिया था शायद इसके बगैर उसका मौलिक अक्स मर्यादा की वेदी पर बलि चढ़ जाता और कभी प्रतिबिंबित ना हो पाता.वह सोच रही थी इबारतें सिर्फ लाल काली नीली हरी स्याही नहीं अपितु जीवन प्रेम के विविध रंग होती हैं.
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