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स्त्री-पुरुष रिश्तों के इंद्रधनुषी रंग (कांटेस्ट)

V2...Value and Vision
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“Men Are from Mars, Women Are from Venus……when men and women are able to respect and accept their differences then love has a chance to blossom ”
John Gray

जॉन ग्रे के उपरोक्त कथन को मैं नहीं मानती हूँ …क्योंकि स्त्री-पुरुष में भिन्नता की अवधारणा ही उनके बीच टकराव की वज़ह बनती है …मैं शिव और शक्ति के मेल की सम्पूर्णता में विश्वास करती हूँ ……जहां स्त्री-पुरुष की आपसी विभिन्नता नहीं बल्कि अपने आप में अपूर्णता ही उन्हें सम्पूर्णता की चाहत में आपसी सामंजस्य की दिशा में एक सशक्त राह दिखाती है .यह एक सत्य है जो अर्धनारीश्वर के रूप में भारत की वेदभूमि में मान्य है…. शिव शक्ति केके बगैर शव हैं और शक्ति शिव के के बिना सिर्फ क्ति है ….जिसका कोई अर्थ ही नहीं ….जब दोनों ही अपने-अपने स्वतंत्र अस्तित्व में अधूरे हैं तो फिर आपसी तकरार क्यों…..दो अधूरे व्यक्तित्व आपस में मिलकर संपूर्ण बन कर धरती को तृप्त कर दें ……इस रिश्ते के सात इंद्रधनुषी रंगों को मैंने इस ब्लॉग में समेटने की कोशिश की है ……..कुछ इस तरह ……
१)
आकाश से ऊंची

जब एक पुरुष
पहचानने लगता है स्त्री को
उसके रूप,सौंदर्य की लावण्यता से नहीं
बल्कि…
उसकी दक्षा,मेधा,प्रतिभा
बुद्धि,बोध की विलक्षणता
और उसके आत्मविश्वास से

देता है हौसला यह कहकर ….
छू लेना ऊंचे आकाश को
यह पहचान….यह हौसला
स्त्री के हर रूप
माँ,बहन,बेटी,पत्नी के
कन्धों पर
दो मज़बूत पंख बन उभर आता है
पहुँच जाती हैं वे शिखर पर
जहां से …आकाश
बेहद करीब लगने लगता है
और सच कहूं !!!!!!!!!!
तब
उस पुरुष के व्यक्तित्व की ऊंचाई
हो जाती है …..स्त्री के लिए

आकाश से भी ऊंची .
1)

२)

 

बस एक बिंदु पर .

 

लोग कहते हैं..
दुनिया गोल है
माँ की दुनिया भी
नीली तो नहीं …पर हाँ’
गोल ही थी
और उसका गोलाकार होना
समाया था उनके माथे की गोल लाल बिंदी में.
सुर्ख लाल बिंदी
समेटे ऊर्जा सूर्य सी
मानो सिमटी जाती थी सारी दुनिया
उस गोलाकार छोटी सी बिंदी में

अब दुनिया…
माँ के लिए कुछ भी नहीं
क्योंकि नहीं सज पाती बिंदी
पिता के जाने के बाद
अब नहीं रहा माँ के लिए
दुनिया के होने का मायना
सूने माथे से गुम हुई बिंदी ने
ख़त्म कर दिया आदि अंत
एक बड़ी सी दुनिया का
डूब गई बड़ी सी दुनिया
पनीली आँखों के सूनेपन में
कोई गोताखोर कितना भी हुनरमंद हो
नहीं ढूंढ सकता…
वह छोटी सी बड़ी दुनिया
जानते हो क्यों ???
क्योंकि पनीली आँखें
साक्षात्कार करा देती हैं
दुःख की अथाह गहराई से
हिम्मत ही नहीं पड़ती
उस दुःख के सागर में डूबने की
अब मैं…..
और भी गहराई से
समझ पाती हूँ महत्व
उन सभी व्रत उपवास प्रार्थनाओं का
जो करती थी माँ अपनी दुनिया की हिफाज़त के लिए
मैं जानती हूँ ….
हमारी भी बड़ी सी दुनिया समाई है
माथे पर सजती छोटी सी लाल बिंदी में
बड़ी सी दुनिया का आदि अन्त
बस एक बिंदु पर .

३)

 

सुवासित लम्हे

एक रात जब भर लिया था
मैंने
अपनी हथेलियों को
रातरानी के फूलों से
और….
महक उठी थी दरो-दीवार
तुमने पूछा….
भाते नहीं क्यों तुम्हे कभी
सुन्दर,महकते लाल गुलाब??
भा जाते हैं बस…
रजनीगंधा,मधुमालती
हरसिंगार,रातरानी और पारिजात.
मैंने धीरे से कहा
क्योंकि…….
ये सभी खिलते हैं बहुतायत से
ठीक तुम्हारे प्यार की तरह
आधिक्य में,
खुशबुओं से लबरेज़
मेरे छोटे-छोटे लम्हों को
सुवासित कर जाते हैं.

४)

 

सेलिब्रेशन

नहीं करती नज़रअंदाज़…
तुम्हारी किसी बात को मैं
तुम्हारी छोटी से छोटी खुशी
हैं मेरी ज़िंदगी के हार के
छोटे-छोटे फूल की मानिंद
जब-जब पिरोती हूँ
उन छोटे-छोटे फूलों को
हाथ चलते हैं
पर मन….
उस हर खुशनुमा पल को
करता है सेलिब्रेट
बन जाता है जब पूरा हार
जीवन स्वयं हो जाता है
‘एक सेलिब्रेशन’.


5)

 

छोटी-छोटी खुशी

कहते हो यह अक्सर तुम
दिल से कभी लगाया ना करो
दुनिया जहां की…
छोटी-छोटी बातों को
रहो खुश हमेशा
हंसती-खिलखिलाती
हर उठती-गिरती लहरों में
क्योंकि…..
मेरी ज़िंदगी
चलायमान,गतिशील है
दुनिया जहां की
छोटी-छोटी बातों से नहीं
बल्कि……….
तुम्हारी छोटी-छोटी
खुशियों से.

6)

 

एक कप कॉफी;एक कप चाय

हर शाम…
ऑफिस से आने के बाद…..
तुम कहते हो
चलो बैठते हैं
गर्म चाय के दो प्यालों के साथ
तुम्हारे मनुहार पर
लाती हूँ दो प्याले .
एक गर्म कॉफ़ी का कप अपने लिए
एक गर्म चाय का कप तुम्हारे लिए
यह भेदभाव क्यों ?
तुम पूछते हो.
हंसती मैं कहती हूँ
भेदभाव प्यालों से नहीं
प्यालों में समाये द्रव से भी नहीं
भेदभाव तो पलता है दिलों में
प्याले और उनका द्रव
हो आपस में
कितने भी भिन्न…
मोहलत देते हैं हम दोनों को
साथ बैठने की
कितना अच्छा है कि ….
हम बैठे हैं साथ
और सम्बन्धों के लिए
यही है बात ख़ास
तुम ठहाके लगा कर …
इतना हंसते हो कि
तुम्हारी आँखें सजल हो जाती हैं
और कर देते हो एकाकार
दोनों प्यालों की तरलता को
कितना सुखद…लगता है
मेरे (कॉफ़ी)तेरे(चाय) प्यालों का
अपनी-अपनी संकीर्णता
अपने-अपने अहम् छोड़
यूँ एकाकार हो जाना
कितना अनमोल
होता है
वैवाहिक सम्बन्धों के
मूल्यों का…
मैं…तुम..से परे
हम में तब्दील हो जाना.

7)

्त्री-एक शून्य ?

मैंने पूछा…
स्त्री का अस्तित्व क्या है ????
एक शून्य….(0)
कही दूर से प्रतिध्वनि गूंजी…
चलो मैंने मान लिया..
परन्तु अब मेरी भी सुनो …..
स्त्री..है
बेशक एक शून्य
जिसे उचित स्थान दिया जाए तो
इजाफा करती है..
पुरुष के व्यक्तित्व मे
परिवार के अस्तित्व में
समाज के कृतित्व में
 
बशर्ते…

उसे महत्त्वपूर्ण मान रखा जाए

पुरुष के दाईं तरफ..

शास्त्रों ने उसे पुरुष का वाम पक्ष माना..

और कर दिया महत्वहीन.

भारत वर्ष ने दिया..

संपूर्ण विश्व को शून्य का ज्ञान

शून्य के ज्ञान के साथ है ज़रूरी

शून्य के स्थान का महत्व

शून्य बढाता है दस गुना….(10)

इकाई के महत्व को
बस उसे स्थान मिले सदा
इकाई के दाएँ तरफ….
हाथ तो दोनों ज़रूरी हैं,

पर प्रायः दाहिना हाथ ही
बाएं से ज्यादा महत्व रखता है.

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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