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तुम वृक्ष;हम जडें हैं तुम्हारी.(अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस)

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वैचारिक दुनिया के अज़ीज़ दोस्तों/पाठकों ,

अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस पर आप सभी का हार्दिक अभिनन्दन.

हम यह दिवस क्यों मनाते हैं ?प्रथम तो यह कि 365/366 दिनों की तारीखों में से कुछ विशेष मान कर under heaven-one feeling  के साथ समस्त जन की भावनाओं का शक्ति पुंज उस तारीख/दिन को महत्वपूर्ण बना देता है.8 मार्च नारी सशक्तिकरण के मायने ,उसके नए प्रतिमान की दिशा में शिद्दत के साथ जुड़ने का एक अवसर है.जीवन के व्यस्ततम क्षणों में एक विशेष दिन की भी काफी अहमियत होती है.

दूसरा विशेष कारण यह है कि नारी सशक्तिकरण,नारी जागृति,स्त्री-पुरुष समानता के अधिकार की रवि रश्मियाँ ,अक्सर नारी अत्याचार,अनाचार,उपेक्षा, शोषण,बेरूखी के घने मेघ से आच्छादित हो जा रही हैं.इन घने उमड़ते मेघ और उससे उपजी अतिवृष्टि को रोकने और उसकी विभीषिका से बचाव के लिए ‘वसुधैव संवेदना ‘की बेहद ज़रुरत है.यह दिवस इस दिशा में भी कारगर साबित हो सकता है.

स्त्री-पुरुष एक  दूसरे के बिना अपने अस्तित्व की कल्पना भी नहीं कर सकते आज ‘दो कदम हम;दो कदम तुम ‘के समभाव से समाज को उचित दिशा देने की ज़रुरत है .पुरुष विकास क्रम में कितना भी आगे बढ़ जाए पर उसे माता,बहन,बेटी,पत्नी के रूप में एक सशक्त आधार की ज़रुरत सदैव बनी रहेगी.अगर पुरुष एक विकसित वृक्ष है तो स्त्री उस विकास के लिए मज़बूत जडें हैं.

SDC14305तुम हरित,पल्लवित,पुष्पित वृक्ष

हम जडें हैं तुम्हारी

बढ़ने के लिए सदैव करती हैं संघर्ष

भूतल की गहराइयों में

चहुँ ओर की माटी मजबूती से थामे

हम लडती हैं पाषाणों से

चीरती हैं ,धरती का विशाल सीना

कभी अच्छे वक्त की नमी

कभी बुरे वक्त की तपिश

आहत होती हैं इस संघर्षमयी यात्रा में

पर तुम्हे एहसास तक होने नहीं देती.

हमारी इस कठिन यात्रा की

विकलता ,संघर्ष, सडन, तड़प से

बेखबर तुम ,

गर्व से मस्तक उंचा किये

विशाल नीले नभ के नीचे

अपने वजूद का एहसास करते हो

कभी अपने फूल,फल,पत्तियों,शाखों पर

इतरा भी उठते हो ………..

हमें भी कहाँ खबर होती है ,

कैसे सहा तुमने ,मौसम के थपेड़ों को

रोये कब पतझड़ में

खिलखिलाए किस कदर वसंत में

पर यह सच है कि पूरी तन्मयता से

हम अवशोषित करती रहती हैं

संपूर्ण सार माटी का

ताकि तुम बढ़ सको,पा सको संपूर्ण विस्तार

दे सको अपने अस्तित्व के अनुकूल

छाँव,फल,फूल और ताज़ी हवा

तृप्त कर सको औरों को …….

तुम्हारी वृद्धि , विकास से उपजी ऊर्जा

नीर बन
हमारी रगों में जीवन भरती है

इस हकीकत से रूबरू करती हैं

कि हमीं हैं एक-दूजे के

विकास और वजूद की वज़ह .

हाँ,बस एक इल्तजा है हमारी…………………………………

इन जड़ों में कभी दीमक ना लगने देना

हमारे खोखलेपन की आहट,

तुम्हारी जिजीविषा की तड़प बन जायेगी

कभी कोशिश ना करना

हमें जुदा करने की,

डर है कि तुम

सूखने लगोगे !!!!!!!!!!!

तुम्हारे वजूद का गौरवमयी इतिहास

बताने के लिए

बस ठूंठ बन ,

हम सब जीना नहीं चाहेंगी ……

अपने विकास यात्रा में तुम
कितना भी कटो,छटो
आहत हो
पर अगर हम मज़बूत हैं
तो तुम बार-बार कट-छंट कर भी
पुनः पनप जाओगे
वही हरीतिमा,वही विकास
पल्लवन,पुष्पं
हासिल कर मुस्कराओगे .

हमें मंज़ूर है…………. ?????

हमें मंज़ूर है

भूगर्भ की वो गुमनाम गहराइयां

रोशनी से महरूम; वो स्याह अँधेरे

पाषाण की वो कठोर सेज

क्योंकि…………………

इसी परिवेश में हम ज़िंदा हैं .

हमारी पहचान तो बस तुमसे है
संसार बेशक हमें
जानता,पहचानता है
तुम्हारे नाम से ………………………

पर प्रकृति का चिर सत्य यही है कि

तुम्हारी सांसें,तुम्हारा विकास

पल्लवन,पुष्पण

तुम्हारी हरीतिमा

तुम्हारा संपूर्ण अस्तित्व जुड़ा है

सिर्फ और सिर्फ हमसे

क्योंकि………

तुम वृक्ष तो हम जडें हैं तुम्हारी.

तुम वृक्ष तो हम जडें हैं तुम्हारी.

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