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अनुपम मंच की वैचारिक दुनिया से जुड़े मेरे प्रिय पाठकों/ब्लोग्गेर्स
यमुना की तरफ से आप सभी को दीपोत्सव के अवसर पर समृद्धि और खुशहाली की प्यार भरी शुभकामना
“आइये चले असत्य से सत्य की ओर,अहम् से वयं की ओर और अन्धकार से प्रकाश की ओर”
मैं प्रत्येक वर्ष दीपावली पर्व के शुभावसर पर यही सन्देश अपने बड़ों से सुनती आ रही हूँ पर इस शुभ पर्व के अवसर पर इस गूढ़ सन्देश के संग दो मुख्य बातें मेरे ज़ेहन में अवश्य उभरती हैं.
प्रथम यह कि परपराओं के वशीभूत मनाये जाने वाले इन पर्वों में समयानुकूल परिवर्तित होने की दिशा अवश्य होनी चाहिए पर वह बेहद विवेकपूर्ण,तर्कसंगत और एक सीमा तक हो तभी पर्व की प्रासंगिकता बनी रह सकती है.यह पर्व भगवान राम के १४ वर्ष के वनवास काटने के बाद वापस अयोध्या आने की खुशी के द्योतक के रूप में घी के दीप प्रज्जवलित कर मनाया गया था. कालान्तर में घी के दीपों का स्थान मोमबत्तियों ने भी लिया.आतिशबाजी,पटाखे तब तक ठीक रहे जब तक प्रदूषण की समस्या से धरती चीत्कार नहीं कर रही थी.आज वायु प्रदूषण के साथ ध्वनि प्रदूषण की विकरालता विचारणीय है .ऐसे में अतिशय आवाज़ और धुओं के साथ आतिशबाजी से पर्व को भयावह रूप देना किसी भी नज़रिए से उचित नहीं कहा जा सकता. इको फ्रेंडली और सुरक्षित दीपावली से इस पर्व की गरिमा और मकसद दोनों को मूर्त रूप दिया जा सकता है.चंद शब्दों में अगर पर्यावरण प्रदूषण को इस पर्व से सम्बंधित कर पुनरावलोकन किया जाए तो बस यही कहा जा सकता है ….
“आधुनिक दीवाली के खर-दूषण
ये दो हैं वायु और ध्वनि प्रदूषण”
इस पर्व पर एक साथ भगवान गणेश और देवी लक्ष्मी जी की पूजा भी सार्थक सन्देश के संग की जाती है.देवी लक्ष्मी धन संपदा से परिपूर्ण करती हैं पर उस धन संपदा को बुद्धिमानी से खर्च करने की सदबुद्धि भगवान गणेश देते हैं .अतः इस पर्व का एक सरल पर बेहद महत्वपूर्ण सन्देश है“ईश्वर प्रद्दत धन -संपदा और साधनों का अपव्यय और दुरुपयोग कभी ना किया जाए बल्कि इसकी एक-एक इकाई का भी सोच-समझ कर और विवेकपूर्ण ढंग से इस्तेमाल किया जाए.”
दूसरी बात यह कि दीपों की श्रृंखला से दूर जलता एक दीप बरबस मेरा ध्यान अपनी तरफ खींच लेता है.वह उस अमावस की रात इस भीड़ का हिस्सा नहीं होता पर वह प्रतिदिन ईश्वर के समक्ष जलता है.इस दीप का महत्व,सौंदर्य,प्रकाश का अनुभव या तो ईश्वर को होता है या फिर उसे जलता देख प्रेरित होने वाले साधक को.वह सजावट का दीप नहीं बल्कि निष्ठा और भक्ति भाव का दीप होता है .रोशनी की चकाचौंध में जब दीपावली की स्याह रजनी असंख्य दीपों की झिलमिलाती चुनरी ओढ़ लेती है तब वह नित्य जलने वाला दीप मुस्करा उठता है,सोचता है,“मैंने तो रोज़ तुम्हे उजली रोशनी देना चाहा पर या तो तुम्हारी चादर अत्यंत काली है या फिर मेरा प्रकाश ही नगण्य है जो तुम काली ही बनी रहती हो,जिससे तुम्हे सज्जित करने का मेरा प्रयास विफल साबित हो जाता है.”
सच है समाज में अन्याय,अज्ञान की निशा इतनी गहरी है कि रोज़ जलने वाले दीप नगण्य साबित हो रहे हैं.इस गहरी कालिमा को दूर करने के प्रयास में किसी विशेष अवसर पर कई दीप एक साथ जल कर शहीद हो जाते हैं पर उनकी शहादत व्यर्थ हो जाती है.निशा पुनः अपने शबाब के साथ उन असंख्य दीप को पराजित करती है.हाँ, ईश्वर के समक्ष निःस्वार्थ भाव से जलने वाला वह दीप कभी हार नहीं मानता है.उसे कभी दीपावली जैसे किसी विशेष अवसर की प्रतीक्षा नहीं रहती ,वह शाम ढलने के साथ ही जल उठता है,प्रकाश बिखेरता है,फिर लौ कम्कम्पाने लगती हैं ,बुझने से पूर्व तेज हो उठती हैं पर नित्य अपने अस्तित्व का भान कराने से वह कभी पीछे नहीं हटता है.
(यह दीपक ऐसे तमाम लोगों का प्रतीकात्मक वर्णन है जो बगैर किसी मान सम्मान और चर्चित होने के आकर्षण से परे अपने घर परिवार समाज देश और जग हित में नित्य जल रहे हैं.)
ईश्वर के सन्मुख रोज जलने वाला वह दीप मुझे प्रेरणा देता है—————-
घने तम को दूर करने क्यों न,मैं भी वह एक दीप बन जाऊं!
बन प्रतिनिधि रोशनी का ,धीमे- धीमे सहर तक जल जाऊं.
…………
रोशनी का लघु स्त्रोत हूँ तो क्या,मैं प्रभात की प्रतीक्षा करूँ
भोर की प्रथम किरण दिखने तक तो प्रकाश की सुरक्षा करूँ
…………..
रवि के अस्ताचल होते ही मैं,जिम्मा स्वकंधों पर उठा लूँ
नगण्य हूँ तो भी क्या हुआ,जलने का तो साहस जुटा लूँ
…………..
छोटी सी रोशनी ही मेरी,काश घने तिमिर को चीर जाए !
एक ही कदम की धीमी आहट, सन्नाटे में ज्यों गूंज जाए
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पूछे मुझसे जब कोई कि,क्यों चिराग ही तले अँधेरा है ?
उत्तर इतना बस मैं दे पाऊं,निस्वार्थ जलना धर्मं मेरा है
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पूछे बुझने के कुछ क्षण पूर्व,क्यों मेरा तेज बढ़ जाता है ?
कह दूँ कि अंत समय का सत्कर्म भी जीवन गढ़ जाता है
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मुझ नगण्य के नित्य जलने से,दीवाली रोज़ मन में छाये
रोशनी आत्म दान की निष्ठा बन लौ रूप मुझ में जगमगाए.
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मुझे जलता देख कर सितारे भी नभ पर झिलमिला जाएं
हर निशा हम एक दूजे को रोशनी के फरेब से बहला जाएं.
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“to celebrate the festival in its real sense
to enjoy it safely,ecofriendly & without tense
on this diwalee lets crackdown cracker
take a small step to save mother nature “
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“चित्र नेट से साभार “
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