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BLOG “एक लम्हा ही ज़िंदगी का बहुत होता है” का शेष अंश………. कविता की धारा में
“जीवन है सरल “यह तो मैंने कह दिया पर जीवन सरल रेखा(सरस,जीवंत) सी कैसे बने ?आसान सा हल है कि बिन्दुओं को सीधी दिशा में मिलाना है.जीवन वक्र रेखा(उबाऊ,बोझिल) सी ना हो.हम सभी ने एक बात गौर की है कि वक्र रेखा बनाने के क्रम में भी कई बार सरल रेखा सी आकृति बनने की पुरी संभावना होती है परन्तु हमारे हाथ भटक कर अन्य दिशा में चले जाते हैं.
जीवन के सन्दर्भ में यह भटकाव कई वज़हों से हो सकता है.जैसे अत्यधिक निराशा,स्वकेंद्रित मनोवृति,समाज के प्रति असंवेदनशीलता,आत्मविश्वास की कमी,सब कुछ त्वरित पाने की व्यग्रता इत्यादि.
किसी भी व्यक्ति की ज़िंदगी पूर्ण श्वेत और पूर्ण श्याम नहीं होती .यह दोनों रंगों का मिश्रण होता है और तदानुसार हलके या गहरे रंग उभरते हैं.यह भी सत्य है कि ईश्वर ने चुनाव की शक्ति महज़ मनुष्यों को ही दी है.तितली यह चयन नहीं कर सकती कि वह जल पर तैर सके,घोड़ा यह चयन कतई नहीं कर सकता कि वह नभ में ऊँची उड़ान भर सके. पर मनुष्य के पास विचारों की शक्ति होने के कारण विकल्प हैं कि वह किसी भी स्थिति का चुनाव कर सके;;वह अपनी बुद्धि,विचार और चिंतन के बल पर नभ में विचरण करे,जल पर तैर सके या फिर थल पर दौड़ सके.इसी प्रकार मनुष्य अपनी ज़िंदगी में श्वेत (सदगुण) और श्याम (दुर्गुण) रंगों में से किनका चुनाव करे.उसके जीवन के श्वेत-श्याम चित्र हलके रंग(जब सदगुण ज्यादा हों तो सफ़ेद रंग उभरेंगे) में उभरें या गाढे रंग(दुर्गुणों की अधिकता) में उभरें ?इस ग्रे रंग के हलके और गाढे shades के साथ ही जीवन में उत्थान और पतन की प्रक्रिया शुरू हो जाती है.
इस सही चयन की शक्ति के साथ हमें बस एक पुष्प की तरह स्वाभाविक और सहज हो खिलना है .हमारा काम अत्यंत गंभीर होकर यह सुनिश्चित करना नहीं कि हमारी खुशबू कितने लोगों तक पहुंचेगी, बल्कि सहजता और स्वाभाविकता के साथ जहां हैं वहीँ अपने लिए सही रंगों का चयन कर खुशी-खुशी अपना कार्य करना है.एक और महत्वपूर्ण बात कहना चाहूंगी कि हमेशा जोड़ने में ही भलाई है,तोड़ने में नहीं.तलवार हर घर की ज़रूरत नहीं होती पर छोटी सी सुई प्रत्येक घर की एक उपयोगी वस्तु होती है .आप किसी एक घर का उदाहरण नहीं दे सकते जहां सुई ना मौजूद हो .वर्त्तमान में जो समाज,देश तोड़ने के उपायों में व्यस्त है वह अपना ज्यादा नुकसान कर रहा है.अगर सभी अपनी सच्चाइयों से हटने लगते तो क्या इस धरती को एक भी विवेकानंद,राजाराम मोहन राय,बुद्ध ,या अन्य महान व्यक्ति मिल पाते?आप अपनी अच्छाइयों से कहीं नहीं हार रहे हो….बस एक बार गौर से देखो—-” अगर आप का परिवार,समाज देश एक अंश के लिए भी अच्छा है तो यह सिर्फ इस वज़ह से कि आप ही उस एक अच्छे अंश के लिए ज़िम्मेदार हो”.
गद्य के माध्यम से जो बात अनकही रह गयी वह पद्य के द्वारा कह रही हूँ………………………………….
कर सको तो यकीन करो,जीवन है अति सरल
सरलता से दूर हो,क्यों बनाएं इसे गरल ?
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नैतिकता,सदविचारों से,सजाते जो स्वरुप कमल
दुर्गम राह सुगम बना,मंजिल पा हो जाते सफल
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प्रेम,दया और मानवता की,बूंद-बूंद जब जाए डल
तब ही देख पाओगे इस,जीवन घट में अमृत जल
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सुधार नहीं ला सकते हैं,हारा जाता सत्य पल-पल
यह सोच-सोच कर कहो,क्यों खोये हम आत्मबल ?
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गर हैवानियत है ज़िंदा,तो इंसानियत भी है सफल
आओ एकजुट हो करें,सारे कुत्सित प्रयास विफल
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क्यूँ सोचें धारा है विपरीत,फंस हम रह जाएंगे बेकल
तैर साहस से तट छू लें,जीवन सरिता बहे कल-कल
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सिकंदर जैसे विजेता भी,आये और दिए वापस चल
ना हम हिम्मत हार बैठे,ना कमज़ोर किये मनोबल
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सच्चाई का नहीं ज़माना,क्यूँ यह विचार रखे अटल
क्यूँ संबल और आस टूटे,क्यूँ करें ये दीप्त नैन सजल
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लोभ के उच्च भवन में बसे,व्यग्र दिलों में है हलचल
कहे क्षणभंगुरता का सत्य,जो आज है ना रहेगा कल
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पाप-पुण्य का हिसाब जब,धरा पर ही होता है हर पल
तो स्वमन के दर्पण में क्यूँ,ना रखें छवि अपनी विमल
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जीवन में सतत प्रगति का,सदविचार ही एक है संबल
सत्कार्य ही सदा देते हैं, दूरगामी और शुभ प्रतिफल
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तम है कितना गहरा और,प्रकाश मेरा है इतना अल्प
नहीं सोचता है यह दीपक,ज्योति फैलाता है जल-जल
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कौन पढ़ेगा ये अनगढ़े शब्द,क्या है लिखने का प्रतिफल
बैठी करती रहूँ यह चिंतन,या बहाऊं बस स्याही अविरल
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सच्चे मन से ही हैं पुरे होते,मकसद ना जाने कपट- छल
मनु जीवन का उपहार मिला,क्या यही नहीं सुखद फल?
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